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“श्रद्धा-भक्ति के नाम पर 2-4 लोग मर भी गए तो क्या फर्क पड़ता है”

सावन का महीना आते ही आपको हर जगह कांवड़ उठाए और भगवा कपड़े पहने लोगों का समूह या यूं कहूं कि हुडदंग करता हुआ समूह उत्तर भारत के लगभग हर क्षेत्र की सड़कों पर मिल जाएगा।

सबसे पहली बार मां से पूछने पर उन्होंने बताया था कि ये भोले बाबा के भक्त होते हैं, बड़ी कठिनाई से, पैदल चलकर, बड़ा कष्ट भोगते हुए बहुत दूर तक जाते हैं। बड़ी श्रद्धा आ गई मेरे बाल मन में, वो कांवड़िए ही भगवान का रूप लगने लगे थे।

पर श्रद्धा उड़ते देर ना लगी, जब मैंने साइकिल से स्कूल जाना शुरू किया तो इन भक्तों की गाड़ियों ने बड़ा परेशान किया मुझे। बॉलीवुड गानों की तर्ज़ पर भगवान के गाने बनाकर ये रास्ते में कहीं भी अपना ट्रक रोककर नाचते और लड़कियों को देखकर इशारे करते।

गुस्सा बड़ा आता पर कर क्या सकते थे। 10 में से 9 लोग तो उनके पीछे पागल थे। जैसे-तैसे बड़े हुए, पढ़ाई करने उत्तर भारत से थोड़ा दूर गए तो ये सब पीछे छूट गया। पर अब दिल्ली में बसते ही फिर वो सब सामने आ गया।

कांवड़ियों की वजह से ट्रैफिक जाम है, स्कूल बस 5-5 घंटे तक एक ही जगह फंसी है, एम्बुलेंस को रास्ता नहीं है। ये कैसी श्रद्धा है, मेरी समझ से एकदम दूर है।

हाल ही में दिल्ली के मोती नगर में एक दंपति की कार से ज़रा सा छू जाने पर कांवड़ियों ने उनकी कार को बीच सड़क में लोहे की रॉड और डंडों से तहस नहस कर दिया। ऐसी ही कई हुडदंग हरकतें इस सावन के महीने में हर साल होती है।लोग मरते हैं तकलीफ में होते हैं पर श्रद्धा-भक्ति के नाम पर 2-4 लोग मर भी गए तो क्या है, इतना तो चलता है। है ना??

मेरठ के ADGP और कमिशनर हेलीकॉप्टर से कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा कर रहे हैं। ये सब क्यों होता है, क्यों चलता है और कब तक चलेगा ये समझ नहीं आता।

ज़ुर्म भगवा रंग की आड़ में हो या हरे रंग की आड़ में, मुजरिम हमेशा मुजरिम ही है। पर कब तक इस देश के लोग और उच्च पदों पर विराजमान लोग धर्म की काली पट्टी बांधकर आंखों वाले अंधे बने रहेंगे ये नहीं पता।

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