हर साल सावन के महीने में कांवड़ लाने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। इस प्रथा की शुरुआत भले ही अच्छी नियत और सच्ची भक्ति के साथ हुई हो परन्तु समय के साथ-साथ ये प्रथा शिव भक्ति के नाम पर गुंडागर्दी और कांवड़ियों की दबंगई में बदल गई है।
स्थानीय प्रशासन और सरकार द्वारा दिए जाने वाले महत्व जो कि धार्मिक प्रथा के नाम पर कांवड़ियों को दिए जाते हैं आज कुछ भक्तों को असामाजिक गतिविधियों की ओर लेकर जा रहे हैं। इन भक्तों को लगता है कि धार्मिक गतिविधियों के नाम पर इनकी किसी भी प्रकार की क्रिया को वैधता और स्वीकृति मिलनी चाहिए।
हर रास्ते पर इनके लिए अलग से जगह दी गई है ताकि ये आसानी से आगे बढ़ सकें परन्तु फिर भी ये झुंड में हुड़दंग करते अपनी मनमर्ज़ी से आगे बढ़ते हैं, ट्रकों में तेज़ आवाज़ में बजते गानों पर रोड के बीचों बीच नाचते हैं बिना किसी की परवाह किए।
इनके हुडदंग को पुलिस भी मौन होकर देखती है और इनके लिए रास्ता बनाती हुई चलती है। इस सबके बीच में हम जैसे नौकरीपेशा लोगों का क्या कि रोड पर लगे ट्रैफिक जाम की वजह से ऑटो रिक्शा में दुगना किराया देकर देरी से काम पर पहुंच रहे हैं और बेचारे उन लोगों का क्या जो ये दुगना किराया नहीं दे सकते वो कुछ दिनों के लिए काम पर जाना छोड़ दें?
आज मेरे खुद के अनुभव से मैं डर गई जब कश्मीरी गेट फ्लाईओवर के पास कांवड़ियों का एक झुंड हाथ में डंडे लिए ऑटो में डंडे मार-मार के अपने लिए रास्ता बना रहा था। पूरा रास्ते में ट्रैफिक जाम था। लोग असहाय, पुलिस भी असहाय बस देख रही थी। सब कोस तो रहे थे इस प्रथा को, पर क्या करें धर्म की मोहर जो लगी है इसपर, कोई कुछ नहीं करेगा। प्रशासन को चाहिए कि कुछ तर्क पूर्ण निर्णय ले और कुछ नियम बनाए जिससे आमजन को हर साल ये परेशानी ना झेलनी पड़े।