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जानिए आलोकिक दुनिया का रहस्य।

आपको यह जान कर हैरानी होगी के इस दुनिया में आपका अपना सिर्फ एक वो परमात्मा है। जो न तो किसी मंदिर,मस्जिद,गुरूद्वारे और ना ही किसी गिरजाघर में उपस्थित है, वो परमपिता-परमात्मा हम सब के साथ हर वक़्त हर पल रहता है। मगर, हम इतने नादान है के उसे बाहर ढूँढ़ते फिरते है। और जब उसकी खोज नहीं कर पाते तो बहार-मुखी करम-कांडो में फस जाते है। नतीजा यह निकलता है के हम उसके असली रहस्य से और भी दूर चले जाते है। वो ना तो देव है, ना कोई पीर है, और ना ही कोई महात्मा है वो तो बस परमात्मा है जो हमारा असली वजूद है और जिसे मनुष्य जीवन में आने के बाद हम भूल जाते है अपने सुख में तो हम उसे भूल जाते है। मगर, जैसे ही दुख की एक हलकी सी चिंगारी हमारे दामन को छूती है तब हमे उसकी याद आती है।आखिर, कोण है यह परमात्मा? और हमारा इससे क्या सम्बंद है? तो सुनिए परमात्मा वो आलोकिक शक्ति है जिसका व्याख्यान कोई नहीं कर सकता “गुरु नानक देव जी ने फ़रमाया “आद सच, जुगाद सच, नानक होसी भी सच।।”

वो परमात्मा युगो से सत्य था, आज भी केवल व्ही सत्य है और आगे भी व्ही सत्य रहेगा बाकि सभ ने नाश हो जाना है। ऐसे ही और बोहत से महापुरषो ने हमे असली सत्य की पहचान करनी चाही मगर, हम नहीं माने हमे तो बाहरी दुनिया जयादा लुभाती है इसमें हमारा भी कोई दोष नहीं हम बचपन से भगवन को ऐसे की देखते आ रहे है क्यों की हमारे माता-पिता ने भी यही देखा और उसे सत्य समझ कर पत्थरों की पूजा की क्यों की हमे उसी से अपने की शांति मिलती है।
अब सवाल यह उठता है? की उसे कैसे पाया जाये तो उसे पाने के लिए न तो जंगलों-पहाड़ों में घूमना है और ना ही उपवास कर के खुद को कष्ट देना है। उस अलौकिक शक्ति को हम अपने घर में बैठ कर अंतरध्यान हो कर मैडिटेशन के जरिये भी जान सकते है जिसे संत महापुरषो ने अद्यात्मिक्ता से प्राप्त किया है और पूर्ण रूप से उसी के हो गए। यह रास्ता कठिन जरूर है मगर नामुमकिन नहीं। संतमत का यह रास्ता अचम्भों से भरा हुआ है जो की पूर्ण गुरु के बिना हमे कोई नहीं बता सकता जो गुरु खुद सच खंड पहुंच चूका हो केवल व्ही हज़ारों युगो से बिसहरी रूहों अपने निज धाम पहुंचा सकता है। जिस गुरु का ज्ञान अधूरा हो को कभी किसी रूह को परमात्मा से नहीं मिला सकता जो गुरु अभ्यास कर के सब खंडो ब्रह्मांडो का भरमण कर चूका हो अर्थात जो परमात्मा का ही अंश हो, और हमे सतनाम के समुन्दर में मिलने की विधि बता कर काल के जाल से हमेशा के लिए निकल देता है ।गुरु वो अनमोल हीरा है जो अपनी चमक से हमारी भी आँखों को प्रकाश देख पाने की शक्ति से अवगत करता है, वो प्रकाश जो कई युगो से हमारी आत्मा का इंतज़ार कर रहा है। तभी संतों ने असलियत की और इशारा करते हुए कहा है,
“क्यों भटकता फिर रहा तू ऐ तलाशे यार में।
रास्ता शहराग में है दिलभर पै जाने के लिए ।।
नकली मंदिर मस्जिदों में जाये सद अफ़सोस है ।
कुदरती काबे का साकिन दुःख उठाने के लिए ।।
कुदरती काबे की तू मेहराब में सुन गोर से ।
आ रही धुर से सदा तेरे बुलाने के लिए”

अर्थात जिससे तू बाहर इन नकली इमारतों में ढूंढ़ता फिरता है जो कहि और नहीं बल्कि तेरे ही अंदर शूप कर बैठा है जिससे तू बेखबर है।

“न सुख विच ग्रहस्त दे न सुख षड गया।
सुख है विच विचार दे सांता सरन पेयां।।”

अर्थात न तो सुख ग्रहस्त जीवन यानि भोगी जीवन में है और ना ही योगी जीवन में जब हम सब कुछ छोड़ कर उस एक की खोज में जंगलों-पहाड़ों में निकलने का विचार करते है तो वो भी व्यर्थ है क्यों की हमारे इस दुनियावी शरीर को दो वक़्त की रोटी, कपड़ा, और सर ढकने के लिए शत तो चाहिए। तो हमे सुख की प्राप्ति दोनों अवस्थाओं में नहीं हो सकती, हमे सुख केवल संतों के बताये रास्ते पे चल कर ही मिल सकता है, जब हम अपने गुरु की कही बातों पे अमल और विचार करेंगे। सब को उसी एक का रूप समाज कर ज़ात- पात से ऊपर उठ कर अपने पांच शत्रुओं ( काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार) को शेड आपने आत्मा को पूर्ण रूप से परमात्मा के सपुर्द करदेंगे। केवल तभी हमारे दुखों का अंत हो सकता है और हमे बार-बार जनम मरण के इस चक्रर्वियू से हमेशा के लिए मुक्ति मिल सकती है।

सोनिआ ढींगरा
अस्सिटेंट प्रोफेसर (ग्राफ़िक डिज़ाइन)
चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी

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