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धर्म और मज़हब के बाजार में ख़रिदारों की कमी नहीं, सतर्क रहें सावधान रहें

जब भी चुनाव नज़दीक आते है तो देश की राजनीति राम नाम के उस नाजुक घागे पर जा टिकती है, जिसे टूटने का खतरा हमेशा मंडराता रहता है और जब धागा टूटता है तो सरेआम दंगो को कोई रोक नहीं सकता। इन दंगो में मरते आम लोग ही है। आज तक कोई नेता दंगों में नहीं मरा। प्रशासन के हाथ भी बांध दिए जाते है क्योंकि सब लाचार हो जाते है सत्ता पर बैठे बेकार हो जाते है। कुछ राम के नाम पर मरने को तैयार हो जाते है तो कुछ राम के नाम पर मारने को तैयार हो जाते है। आखिर राम के नाम पर इतना क़त्लेआम क्यों , राम के राम पर इतना बवाल क्यों । ना तो राम के आदर्श ऐसे थे और ना ही वो ऐसा करते थे। राम के आदर्शों की धज्जियां उड़ाई जाती है लेकिन धर्म के नाम पर राम को बेचने वाले अपने आसान पर बैठ धर्म का पाठ पढ़ाते है। आज कल सरकार भी इन इन धर्म गुरुओं और बाबाओं के पास जाने से कतराती, न जाने कौन सा बाबा अपने दामन पे दाग छुपाए घूम रहा हो। इसलिए नेता ख़ुद ही मंदिर-मस्जिद के फेरे लगाने लगे है। और खुद को जनेऊधारी कहने लगे है।

सबसे बड़ी समस्या ये है कि हम आने वाली पीढ़ी को कैसा माहौल दे रहे है , क्या इस माहौल में वो ख़ुद को ऐसे नहीं ढालते जा रहे जहां सिर्फ एक दूसरे के धर्म के प्रति नफ़रत हो । ऐसे माहौल में हमारी आने वाली पीढ़ी  एक गहरी अंधरी खाई में जाती दिखाई दे रही है जहाँ से सिर्फ उच्च-नीच, जात-पात, धर्म-अधर्म ही दिखाई देगा। यही माहौल हम छोड़े जा रहे है जहाँ धर्म और मज़हब के लिए एक दूसरे को मारना ही कर्तव्य माना जायेगा।

बहरहाल ये सब हमारे देश के राज नेताओं या सत्ता के नशे में लीन हुक्मरानों को समझ में नहीं आता और ना ही वो समझना चाहते है और अगर समझ आ भी गया तो समझाना नहीं चाहते है । कुर्सी कैसे बचें बस यही समझ आता है। उनको आने वाली पीढ़ी की कोई परवाह नहीं परवाह है तो सिर्फ आने वाले चुनाव की, उन्हें तो बस अभी के लिए माहौल तैयार करना है । इसमें मीडिया का सबसे बड़ा योगदान है। मीडिया भी आज कल अपने कर्तव्यों को भूल चुकी है और पार्टियों की नुमाइंदगी कर रहीं है। कुछ न्यूज़ चैनल तो ऐसे है जो सीधे तौर पर हिंदुत्व को बढ़ावा देते है और कुछ ऐसे है जो विशेष मज़हब का पक्ष लेते है। ऐसे में लोकतंत्र  की बात भी कैसे की जा सकती है । हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते है और यहाँ सब एक सामान है और बापु ने भी तो धर्म निरपेक्ष देश कहा है और भारतीय संविधान के प्रतावना के अनुसार भारत एक सम्प्रभुता, सम्पन्न, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है। तो भी ये बवाल क्यों काटा जा रहा है।  राज नेता धर्म के नाम पर क्यों वोट लेना चाहते है, वोट ही लेना है तो अपने काम के आधार पर लीजिए। और जनता भी कितनी मासूम है इमोशन हो जाता है धर्म के नाम पे । नज़रिया बदलना होगा । नहीं तो ऐसे ही धर्म को, धर्म के नाम पर, धर्म के लिए, हम बंटते रहेंगे।  कोई कह गया है…………..ना हिन्दू बनें, ना मुसमान बनें

              ना पैगम्बर बनें, ना भगवाम बनें

              आओ ह़क अदा करें नमाज़ का

                  और गीता का ज्ञान बनें ।

              छोड़ो मज़हब और धर्म की बातें

           ऐ दिवान आओ मिलकर इंसान बनें ।।।

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