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परीक्षा विभाग में जारी लूट-अनियमितता व अराजकता की जवाबदेही कौन लेगा ?

परीक्षा विभाग में जारी लूट-अनियमितता व अराजकता की जवाबदेही कौन लेगा
?

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय का परीक्षा विभाग लंबे समय से लूट-अनियमितता व अराजकता का केंद्र बना हुआ है। कुलपति बदल रहे हैं, परीक्षा विभाग के पदाधिकारी बदल रहे हैं, विश्वविद्यालय के पदाधिकारी बदल रहे हैं। लेकिन परीक्षा विभाग के साथ विश्वविद्यालय का अकादमिक-लोकतांत्रिक माहौल नहीं बदल रहा है।

मानो परीक्षा विभाग में लूट-अनियमितता-अराजकता बनाये रखना और छात्रों को तंग-तबाह करना, शिक्षा व लोकतंत्र की हत्या करना ही विश्वविद्यालय प्रशासन की जवाबदेही हो।

कुछ दिनों से दलितों-पिछड़ों के रहनुमा- सामाजिक न्याय के पक्षधर- ईमानदार चेहरों ने भी विश्वविद्यालय प्रशासन में जवाबदेही संभाली है। लेकिन खासतौर पर ऐसे दो महान शख्सियतों की न्यायप्रियता-ईमानदारी भी गुम हो गई है। ये दोनों ( डीएसडब्ल्यू – डॉ. योगेंद्र, कुलानुशासक – डॉ. विलक्षण रविदास) भी विश्वविद्यालय प्रशासन के भ्रष्ट – छात्र विरोधी चरित्र के भागीदार-हिस्सेदार बन कर रह गए हैं।

जरूर ही हम ऐसा नहीं कह रहे हैं कि परीक्षा विभाग से लेकर चौतरफा मची लूट-अनियमितता के ये दोनों भी निजी तौर पर लाभुक हैं। लेकिन जो चल रहा है, उसे के हिस्सेदार-भागीदार जरूर हैं।

यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि किन सरोकारों के कारण ये दोनों वहां पर बने हुए हैं। दोनों का सामाजिक सरोकार स्पष्ट नहीं दिख रहा है, तो साफ है कि निजी महत्वाकांक्षा-पद-प्रतिष्ठा ही दोनों कर्णधारों का सरोकार है।

चलिए अगर सामाजिक न्याय के नजरिए से यह कहें कि दोनों महान पुरूष दलितों-पिछड़ों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, तो ये दोनों और भी सवालों के घेरे में आते हैं। आखिर आप विश्वविद्यालय प्रशासन में रहकर सामाजिक न्याय का कौन सा एजेंडा लागू कर रहे हैं।

साफ है कि ऐसे विश्वविद्यालय में बहुसंख्यक छात्र दलित-पिछड़े समाज से आते हैं। विश्वविद्यालय में जारी लूट-अनियमितता-अराजकता की किमत दलित-पिछड़े समुदाय से आनेवाले छात्र ही चुकाते हैं।

कुछ सवालों पर इन दोनों के सरोकार की जांच हो जाती है।

परीक्षा विभाग में जारी लूट-अनियमितता-अराजकता को रोकने की दिशा में अभी तक क्या पहल हुआ है ?

* परीक्षा विभाग अब भी दलालों का अड्डा बना हुआ है। परीक्षा विभाग में जेनुइन काम से अंदर जाने से एक प्राध्यापक को रोक दिया जाता है, लेकिन दलालों का झुंड बेरोकटोक अंदर-बाहर करता है।

* गड़बडिय़ों-अनियमितताओं की जांच के लिए कमिटी दर कमिटी बनती है, लेकिन कमिटियों की रिपोर्ट दब जाती है।

* सर्वविदित है कि परीक्षा विभाग में निजी एजेंसी क्या करती है? लेकिन फिर भी निजी एजेंसी के हवाले ही काम दिया जा रहा है।

* परीक्षा विभाग विवादास्पद और आरोपी पदाधिकारी-कर्मचारी की बार-बार नियुक्ति होती है।

* बार-बार प्रश्न पत्र छपाई में गड़बड़ी हो रही है, प्रश्न पत्र छपाई नहीं होने पर परीक्षा स्थगित हो रहा है। लेकिन किसी को दोषी नहीं माना जा रहा है, न ही कोई कार्रवाई हो रही है।

* स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में आंतरिक परीक्षा में गड़बड़ी सामने आई है, जांच भी हुई। लेकिन अभी तक दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई है।

* अभी विवाद की शुरुआत डॉ. के के मंडल द्वारा परीक्षा विभाग में परीक्षा नियंत्रक और दलालों के यारी पर सवाल उठाने से हुई है। भागलपुर ही नहीं पूरा बिहार-देश तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय परीक्षा विभाग के कारनामों से अवगत है। फर्जी डिग्रियां बांटने का मामला भी बार-बार सामने आता है। लूठ-अनियमितता-अराजकता का स्थायी केन्द्र बना हुआ है, परीक्षा विभाग। लेकिन एक शिक्षक द्वारा सवाल उठाये जाने पर भी दोनों महानुभावों का बहुत है शर्मनाक रवैया सामने आता है। छात्रों का कितना सुना जाता है, साफ है। डॉ. के के मंडल द्वारा लगाए गए आरोपों किया सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सकता है। लेकिन दोनों महानुभावों ने परीक्षा नियंत्रक को बचाने और जायज आवाज को दबाने की ही कोशिश की।

* परीक्षा विभाग में रिपोर्टिंग करने गये एक पत्रकार पर कर्मचारी ने हमला बोल दिया। पत्रकार ने थाने में आवेदन भी दिया है, लेकिन शांति और अहिंसा के पुजारी कर्मचारी के इस अपराधिक कृत्य के पक्ष में हैं।

इसी क्रम में कुलपति ने बेशर्मी की हद पार कर दी है। परीक्षा विभाग के पदाधिकारियों में फेरबदल के आरोपों से इतर बता रहे हैं। मतलब भ्रष्टाचार-गड़बड़ी का आरोप कोई मायने नहीं रखता है।

चलिए, कुलपति के साथ आप दोनों को बेशर्मी के लिए सलाम!

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