जिन योजनाओं का ढिंढोरा पीटकर सरकारे चुनाव लड़ती और जीतती है। अगर उसी के बारे में उससे जुड़े लोगों को न मालूम हो तो अटपटा लगता है।
वेदर रिस्क मैनेजमेंट सर्विस प्राइवेट लिमिटेड नामक एजेंसी के सर्वे की माने तो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना क्या है इसके बारे में देश के लगभग 70 फिसद किसानों को पता ही नहीं है। एजेंसी ने इसके लिए उत्तर प्रदेश सहित आठ राज्यों में सर्वें कर निष्कर्ष निकाला है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का संचालन केंद्र में बीजेपी सरकार आने के बाद से किया जा रहा।
सरकार द्वारा इस योजना का संचालन इसलिए किया जा रहा है ताकि किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से हुई क्षति की भरपाई किया जा सके। इसके लिए रबी, खरीफ और जायद फसलों के लिए सरकार ने अलग-अलग प्रीमियम का प्रावधान किया है। इससे पहले यह योजना राष्ट्रीय बीमा योजना के नाम से चल रही थी। देश में किसानों की माली हालत को सुधारने के लिए इस तरह की योजनाओं की शुरुआत 1972 से की जा चुकी है। लेकिन फिर भी उनकी हालत में कोई ठोस सुधार नहीं नज़र आता।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस योजना का लाभ सिर्फ बीमा कंपनियों को हो रहा है। क्योंकि जबसे यह योजना प्रकाश में आई है तब से विवाद छिड़ा है। कई किसान हितैषी संस्थाओं ने इसको लेकर कहा था कि बीमा का लाभ कॉर्पोरेट कंपनियों को होगा किसानों को नहीं। फसलों की अधिक प्रीमियम होने के कारण अधिकतर किसान या छोटे किसान अपनी फसल का बीमा नहीं कराएगा। जिसके कारण इस योजना का लाभ बड़े किसानों को होगा। आकड़ों की माने ये तो बात साफ है कि योजना का लाभ सिर्फ बडे़ किसानों को ही हुआ है।
देश में सबसे ज़्यादा खराब हालात छोटे किसानो की है क्योंकि उनके जोतों का आकार छोटा है और प्राकृतिक आपदाओं के कारण सबसे ज़्यादा नुकसान उन्हीं को उठाना पड़ता है। जिससे वे कर्ज़ में डूब जाते हैं। कई सर्वे भी यह बताते हैं कि भारत में केसीसी (किसान क्रेडिड कार्ड) का सबसे ज़्यादा लाभ बड़े किसानों को हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार का मकसद क्या सिर्फ योजनाओं को संचालित करना है। कितने लोगों को इन योजनाओं से लाभ मिल रहा है उससे सरकार का कोई लेना देना नहीं या सरकारे योजनाओं के माध्यम से खुद को किसान हितैषी दिखाकर सिर्फ चुनाव जीतना चाहती है।