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केरल बाढ़ पर कविता: “जीवन का अंत नहीं”

मेरा अंत है, तुम्हारा अंत है

लेकिन यह जीवन अंतहीन है,

बाढ़ में, अकाल में, फसाद में भी

शिशु जन्म लेते हैं, केरल के कोप में भी,

शिशु जन्म लिए थे कोसी के प्रलय में भी,

लाशों से पटी हुई भूतल के बीच भी

जीवन का अंत नहीं।

 

जलमग्न पड़ी धरा के बीच

रेल की पटरियों पर

वृक्ष की साखों पर

गाड़ियों के ऊपर

इमारतों की छत पर

 

जीवन चलता है

संबंध बनते हैं

शिशुओं के नाम रखे जाते हैं

जीवन का अंत नहीं।

 

यह चलायमान है

पेट की आग, भूख-प्यास के साथ,

सुबह की शौच, दोपहर की हलचल,

रात की नींद और हर महीने की मासिक चक्र के साथ

त्रासदी के बीच भी,

यह अंतहीन जीवन चलता है

अपनी ज़रूरतों के साथ,

जीवन का अंत नहीं।

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फोटो साभार- फेसबुक

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