रोज़ ट्रेनों में, बसों में ठूंस कर,
कभी बैठकर या कभी घंटों खड़े होकर
धूप, बारिशों- तूफां से दुपहियों पर लड़कर
उन्मादियों से खुद को बचा
मनचलों की नज़रों से छुपकर
दफ्तरों को जायेंगे,
जी तोड़ मेहनत भी करेंगे,
और कमाए पैसों पर टैक्स भी भरेंगे,
ढहते पुलों, मंज़िलों, कारखानों की गिरती चिमनियों में दबेंगे,
और रास्ते के गड्ढों में भी गिरेंगे,
कभी बच्चों के सोने के बाद ही घर को पहुंच पाएंगे,
और कभी शायद नहीं भी
कभी दफ्तर पूरी जवानी ले मानेगा
कभी शायद इज्ज़तों आबरू भी गंवानी पड़ेगी
फिर अचानक किसी दिन, खून और पसीने से कमाए
सिक्के ‘खोटे’ करार दिए जायेंगे
और देशभक्ति के पाठ भी पढ़ाये जायेंगे।
एटीएम की लम्बी कतारों में वक्त भी बिता आएंगे
मुल्क परस्ती के पैमाने जब झेल जाये सारे
तो फौजियों से मुकाबले भी कराये जायेंगे
कोठियों, हवेलियों में रहने वाले,
अवामी मकां पर शराब-ओ-भांग भी बेचने वाले,
नाम के नुमाइंदों से जब सवाल किये जायेंगे
तो जवाब में वापस सवाल ही पाएंगे
और फिर आज्ञाकारी नागरिक ये बताये जायेंगे
कि अय्याश हो तुम,
और गद्दार भी हो,
मुल्क से इश्क नहीं है तुम्हें शायद
इसलिए हर बात पर सवाल करते हो
और ज़रूरत से ज़्यादा ही बोलते हो।