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बिहार पुलिस शराब की चेकिंग के नाम पर ट्रेन में सब्ज़ी वालों से कर रही वसूली

हमारे देश में भ्रष्टाचार की जड़ें किस कदर फैली हुई हैं, इस बात का अंदाज़ा अमूमन हम सभी को है। आए दिन राशन कार्ड बनाने से लेकर सड़क बनवाने तक और रेल टिकट कटवाने से लेकर हवाई जहाज उड़ाने तक लगभग हर जगह हम में से कई लोगों का भ्रष्टाचार से सामना होता है।

अभी पिछले महीने मुझे भी कुछ ऐसा ही अनुभव अपनी रांची-पटना यात्रा के दौरान हुआ। टिकट ना मिलने की वजह से मुझे हटिया-पटना सुपर फास्ट एक्सप्रेस की जनरल बोगी में बैठकर यात्रा करनी पड़ रही थी। मेरे बगल के कंपार्टमेंट में 4 महिलाएं और 2 पुरुष बैठे थे। उनके पास करीब 6 टोकरियां थीं। उनकी बातों से ज्ञात हुआ कि वे सारे बिहार के जहानाबाद ज़िले के रहने वाले दैनिक सब्ज़ी/फल विक्रेता हैं, जो हटिया से चढ़े थे।

रात करीब 3 बजे के आसपास जब ट्रेन गया जंक्शन पर रुकी, तो एक साथ कई पुलिसवाले हमारी बोगी में आ घुसे। ज्ञात हो कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से पड़ोसी राज्यों से बिहार में प्रवेश करनेवाली लगभग सभी ट्रेनों और बसों की चेकिंग की जाती है।

लेकिन, सच्चाई तो ये है कि शराब की चेकिंग के नाम पर गरीब सब्ज़ी विक्रेताओं से वसूली की जाती है। ट्रेन में चढ़ी उन महिला सब्ज़ी विक्रेताओं से बात करने पर मुझे पता चला कि हटिया से पटना तक सफर करने के क्रम में उन्हें हर दिन (या फिर जब भी वे इस रूट में यात्रा करती हैं) करीब छह जगहों पर-हटिया, बोकारो, गोमा, कोडरमा, गया और पटना- दस रुपये से लेकर पचास रुपये तक का सुविधा टैक्स (फल-सब्ज़ी की टोकरियों को ले जाने का ज़ुर्माना) भरना पड़ता है, जबकि रेलवे के एक वरिष्ठ विभागीय अधिकारी से जब मैंने इस बारे में पूछताछ की तो पता चला कि रेल में सामानों की संख्या या भार के अनुसार टैक्स वसूली का ऐसा कोई नियम नहीं है। बशर्ते कोई मालवाहक सामान या पार्सल ना हो।

अब ज़रा आप ही सोचिए, जिन बेचारे गरीब फल-सब्ज़ी विक्रेताओं की दिनभर की कमाई ही दो-तीन सौ रुपये की हो, अगर उन्हें हर रोज़ 50-60 रुपये सुविधा टैक्स के नाम पर रिश्वत देनी पड़े, तो प्रशासन या प्रशासनिक तंत्र पर वे किस तरह भरोसा कर पायेंगे और उससे कितना और किस हद तक न्याय की उम्मीद रख पायेंगे।

वहीं इन पुलिसवालों को जिस चीज़ (शराब) की चेकिंग की ड्यूटी मिली हुई है वहां ये कितने गंभीर और संवेदनशील हैं उसका अंदाज़ा महज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि आज बिहार के लगभग सभी प्रमुख शहरों खासतौर से सीमावर्ती शहरों में आये दिन सैकड़ों लीटर देशी और विदेशी शराब पकड़ी जा रही है। साथ ही, शराब पीये लोगों की गिरफ्तारी की खबरें लगभग हर दिन हर अखबार के पन्नों पर देखने को मिल जाती हैं।

सच तो यह है कि बिहार में शराबबंदी कानून पुलिस की कमाई का बेहतरीन ज़रिया बन गया है। अगर किसी गरीब के पास से शराब ज़ब्त हुई, तो उसे पुलिसिया कार्यवाही की धमकी देकर पैसे ऐठे जाते हैं और अगर कोई मालदार आदमी गिरफ्त में आ गया, तो उसकी खबर दबाने के नाम पर उससे वसूली की जाती है। इस गोरखधंधे में मीडिया वालों की भी कम चांदी नहीं है। खबरों को दबाने या उजागर करने के एवज़ में वे भी इसका अच्छा-खासा फायदा कमाते हैं।

खैर, वसूली के इस धंधे से आये दिन मेरी तरह आप भी ज़रूर रूबरू होते होंगे। कभी ऑटोवाले से तो कभी किसी रिक्शेवाले से। कभी किसी खोमचे वाले से तो कभी किसी सब्ज़ी विक्रता से। पुलिसिया धौंस दिखाकर निचले स्तर से लेकर ऊपरी स्तर तक कुछ अपवादों को छोड़कर, गैर-कानूनी वसूली का यह धंधा केवल बिहार में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में फल-फूल रहा है।

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