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भीड़ को हिंसा करने का लाइसेंस कौन दे रहा है?

21 जुलाई का वह दिन मुझे याद है जब मैंने अपना फेसबुक अकाउंट लॉगइन किया था। उस दिन मैंने जो पोस्ट फेसबुक पर देखा, उसने मुझे अंदर तक हिला दिया था। मुझे लगता था कि नफरत की ज़हर जो न्यूज़ चैनल अपने AC वाली स्टूडियों से बैठकर फैला रहे हैं उसका असर सिर्फ अशिक्षित और बेरोज़गार लोगों तक ही पहुंचा है मगर उस दिन मैंने जो पोस्ट देखा वह कतई मेरे विचारों के अनुकूल नहीं था।

कोटा में इंजीनियरिंग की तैयारी कराने वाले एक शिक्षक ने समाज के एक विशेष तबके के खिलाफ जो शब्द लिखा था और जो व्याख्या की थी मैंने ऐसी आकांक्षा किसी शिक्षक से नहीं की थी। मैंने जब अपने उस शिक्षक की फेसबुक प्रोफाइल देखी तो मैं भौचक्का रह गया। शिक्षक का काम आने वाली पीढ़ी को एक नया रास्ता दिखाने का होता है। एक ऐसा रास्ता जिसपर चलकर वह देश, समाज और स्वयं का उद्धार कर सके।

हमारे देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और आवास हमेशा से ही गंभीर मुद्दे रहे हैं लेकिन समाज के उभरते हुए सोशल मीडिया के दौर में नफरत ने कब विकराल रूप ले लिया पता ही नहीं चला। हालांकि इसके लिए ना कोई आंदोलन हुआ है और ना ही किसी ने अपनी आवाज़ बुलंद की है।

भारत के मुसलमानों पर एक दबाव सा आ गया है कि तीज-त्यौहार हो या फिर कोई राष्ट्रीय पर्व हर मौके पर उनसे उनकी राष्ट्रीयता, उनसे उनकी देशभक्ति का प्रमाण मांगा जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ भीड़ का हिंसक रूप आए दिन देखने को मिल रहा है। जो घटनाएं सामने आ रही हैं उन्हें देखकर ऐसा लगता है, मानों भीड़ को हिंसा करने का लाइसेंस मिल गया हो।

गौर करने वाली बात यह है कि हिंसा करने वाली भीड़ ये मानने को तैयार नहीं होती कि वह हिंसा कर रही है। उन्हें लगता है कि उनकी ये हिंसा, हिंसा नहीं बल्कि देश भक्ति, धर्म भक्ति और समाज सेवा है।

मुझे नहीं पता है कि देश के राजनेता सत्ताधारी पार्टियां और बुद्धिजीवी वर्ग हमारे देश को किधर लेकर जा रहे हैं लेकिन न्यूज़ चैनलों पर आने वाली खबरें और डिबेट यह सब बताती हैं कि क्यों उनके पास भारत के युवाओं और किसानों के लिए कोई मास्टर प्लान नहीं है, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश की स्थाई स्थिति कैसे सुधारी जाए। कैसे रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य को बेहतर किया जाए। टीआरपी की हवस ने समाचार एजेंसियों को इस कदर अंधा कर दिया है। वह यह तक भूल गए हैं कि जो ज़हर, जो नफरत के बीज वह समाज में बो रहे हैं, जिस शैली से वह समाचारों की प्रस्तुति दे रहे हैं उनका असर क्या होगा।

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