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जब समाज मौन और सत्ता गैरज़िम्मेदार हो तो हर औरत फूलन क्यों ना बने?

हमेशा लगा कि अपराध के लिए पहली ज़िम्मेदारी समाज की होती है। विशेषकर बलात्कार, यौन शोषण या स्त्री विरोधी अपराध पहले एक सामाजिक अपराध है और हमेशा तर्क भी इसी इर्द- गिर्द में रहा। लेकिन समाज मृतप्राय हो गई बिना बात समाज- समाज करते रहे हैं।

आरा (बिहार) निर्वस्त्र स्त्री के साथ 20 से 25 लोग साथ- साथ चल रहे हैं और जो साथ नहीं चल रहे थे वे प्रत्यक्षदर्शी बने रहे हैं। ये लोग समाज थे।

ब्रजेश ठाकुर की बालिका गृह में बलात्कार होता रहा और आने-जाने वाले लोग और स्थानीय खामोश रहे। वह समाज था जो खामोश रहा।

जब फूलन देवी को निर्वस्त्र कर कुएं से पानी भरवाया गया, वहां जो तमाशबीन रहे वह समाज था।

सीता की अग्निपरीक्षा, समाज की इच्छा थी।

वैभवशाली साम्राज्य हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र की सभा में जो मौन थे, वह समाज था।

कुल मिलाकर जब -जब स्त्री की बात हुई समाज वैचारिक रूप से दरिद्र रहा है, उसने अपनी दरिद्रता दिखाई।

तो समाज की बात क्या करें!

अब सत्ता की तरफ देखते हैं,

योद्धाओं से भरी सभा में कृष्ण शांति प्रस्ताव पर बोल रहे थे “इस युद्ध को रोक लीजिए महाराज, कुलवधु द्रौपदी के वस्त्रहरण का सवाल इतिहास दुर्योधन, दुशासन, अंगराज कर्ण या गांधार नरेश शकुनि से नहीं करेगा। इतिहास आपसे सवाल करेगा यह सभा आपकी है।”

यह तंत्र नीतीश कुमार का है। सवाल उनकी तरफ देखकर किया जाएगा, उनसे किया जाएगा। पुलिस चौकी को जानकारी क्यूं नहीं मिलती कि एक भीड़ आगे बढ़ रही है, तंत्र इतना कमज़ोर है!

जब समाज मौन और तंत्र गैरज़िम्मेदार हो, तो हार मानना, घुटने टेकने, के बजाए अगर कहीं आशा नज़र आती है तो वह है फूलन देवी।
फूलन मतलब संघर्ष
फूलन मतलब लड़ो
फूलन मतलब किसी के भरोसे नहीं
फूलन मतलब अपनी लड़ाई खुद लड़ो

फूलन का नाम आते ही लोग बहुत असहज हो जाते हैं। फिर तर्क शुरू हो जाता है:

जैसे
फूलन बदला की प्रतीक हो सकती है लेकिन वह रास्ता समाधान की तरफ नहीं था।

फूलन का रास्ता न्याय की तरफ था। जब व्यवस्था और समाज न्याय ना दे तो लोग दम तोड़ देते हैं, फूलन तो लड़ गईं।

जैसे
फूलन में सत्ता की चाटूकारिता थी। फूलन जैसी तमाम महिलाओं को सत्ता के शीर्ष पर होना चाहिए जो आंख में आंख डाल कर कहे “हां मैं ही फूलन हूं, मैं ही तार-तार हुई लेकिन यहां तुम्हारा “blur the face of victim” नहीं चलेगा। मैं सर्वाइवर हूं”

जैसे
किसी औरत को फूलन ना बनना पड़े। बिल्कुल किसी औरत को फूलन ना बनना पड़े। फूलन देवी बनने से पहले की वेदना किसी मादा को ना मिले। लेकिन हर दिन मिल रहा है। कहानी थोड़ी अलग होती है, पात्र अलग होते हैं, वेदना वही है!
फिर उस तकलीफ के बाद हर मादा फूलन हो जाए!

जिन्हें फूलन से फिर भी तकलीफ हो तो भारत मां को ही याद कर लें। कारण हर बेटी की लाज (Modesty) देश की लाज है।

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