वो- क्यों, तुमने “साहेब बीवी और गैंगस्टर 3” देख ली?
मैं- हां।
वो- कहां देखी, हॉल में?
मैं- नहीं, मोबाइल में।
वो- तुम पाइरेसी कर रहे हो बेटा।
मैं- और क्या करूं? 200 रुपए का टिकट लेकर फिल्में देखने जाऊं?
वो- हां।
मैं- नहीं।
वो- क्यों?
मैं- इतने पैसे नहीं हैं मेरे पास।
वो- तो पाइरेसी करोगे।
मैं- और क्या करूं।
वो- ये गलत बात है।
मैं- तो क्या फिल्मों का करोड़ों कमाना सही है?
वो- अबे, इसमें क्या गलत है?
मैं- है।
वो- क्या?
मैं- भाई, हमारे देश में 200 रुपए का टिकट लेना सबके बस की बात नहीं है।
वो- अच्छा।
मैं- तुम एक बात बताओ। ये फिल्मों के टिकट का दाम 50 या 100 रुपए नहीं हो सकता है?
वो- अच्छा जी।
मैं- हम्म, ये फिल्मों का 100 करोड़ कमाना ज़रूरी है क्या?
जी हां, हम सब तकरीबन हर हफ्ते ही अखबारों या टीवी चैनल्स पर यह खबर देखते हैं कि फलां फिल्म ने 100 करोड़ तो फलां फिल्म ने इतने करोड़ की कमाई कर ली है। ये चीज़ सुनने या पढ़ने में भले ही अच्छी लगती हो लेकिन एक बात है जिस पर हम सबको गहराई से सोचना चाहिए।
इसे मुन्ना भाई के अंदाज में कहें तो ये बॉलीवुड फिल्मों का 100 करोड़ कमाना ज़रूरी है क्या? इस सवाल को सुनते ही ज़ुबान पर आता है, नहीं। यदि नहीं, तो ऐसा क्यों हो रहा है? कोई इस पर बात क्यों नहीं करता है? और कोई सवाल क्यों नहीं उठाता है?
देखिए, ये तो बड़ी सिंपल सी सच्चाई है। भारत में बहुत कम लोगों के पास इतने पैसे होते हैं कि वे हर हफ्ते 200 रुपए (एक मोटा-मोटा आंकड़ा) का टिकट लेकर फिल्में देखने सिनेमा हॉल जाएं। ऐसे में फिल्मों के शौकीनों को पाइरेसी का सहारा लेना ही पड़ता है।
पाइरेसी करना गलत है। इसमें कोई दोराय नहीं है। लेकिन कोई रास्ता भी तो नहीं बचता। फिल्मों की चर्चा उनकी रिलीज़ होने के पहले से लेकर उनके सिनेमा हॉल में आने के कुछ दिनों बाद तक चलती है। ऐसे में उस फिल्म के टीवी पर आने तक का इंतज़ार करना कोई व्यवहारिक बात तो नहीं है।
दरअसल, बात ये है कि 50 करोड़, 100 करोड़ या 200-300 करोड़ रुपए की कमाई बहुत होती है। बहुत नहीं, गैर-ज़रूरी होती है। जी हां, आप ही ज़रा सोचकर देखिए। हमारी आपकी तनख्वाह क्या होगी? हम सब कितना कमा लेते होंगे? (औसत रूप में) शायद, एक करोड़ रुपए की कमाई तो पूरे जीवन में ना कर पाते हों। तो फिर, ये फिल्म मेकर्स का करोड़ों कमाना कहां तक जायज है?
बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। अगर फिल्मों में इतनी बेतहासा कमाई ना होती तो इसमें काला धन लगने की खबरें भी नहीं आती। खबरें तो ऐसी भी आई हैं कि फिल्मों में गैर-कानूनी कामों में लिप्त कुछ लोगों का लंबे समय से पैसा लगता रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि फिल्मों की टिकटों के दाम 200 रुपए नहीं होने चाहिए। यदि इनका दाम 50 से 100 रूपए के बीच हो तब भी इनके मेकर्स पर्याप्त कमाई कर सकते हैं। और हां, फिलहाल के लिए जो कुछ चुनिंदा फिल्में घाटे में जाती हैं, उनका ज़िक्र अभी छोड़ देते हैं।