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कॉंग्रेस में आपसी गुटबाज़ियों के बीच BJP फायदा ना उठा ले जाए

कॉंगेस पार्टी में नेतृत्व को लेकर सवाल तो बहुत पहले से ही उठ रहे हैं और इस बात की बानगी पार्टी में समय-समय पर दिखाई भी देती है। वर्तमान में भी इस समस्या को कॉंग्रेस में देखा जा सकता है।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जहां बीजेपी सत्ता पाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है, वहीं उसके वरिष्ठ नेताओं से लेकर क्षेत्रीय नेता चुनाव प्रचार के लिए सक्रिय हो चुके हैं।

लेकिन कॉंग्रेस अपनों की गुटबाजी व कश्मकश के बीच फंसी हुई है। यही कारण है कि पार्टी अभी तक तीनों राज्यों में सीएम उम्मीदवारों की घोषणा नहीं कर पाई है। पार्टी के अंदर सबको एक साथ लेकर चलने की समस्या खड़ी हो गई है। समय रहते अगर कॉंग्रेस सीएम उम्मीदवारों की घोषणा नहीं करती है तो उसे तीनों राज्यों में सत्ता से भी बेदखल होना पड़ सकता है। कॉंग्रेस द्वारा पूर्व में हुई गलतियों से भी सबक नहीं लिया जा रहा है। गुजरात चुनावों में उसकी हार का कारण सीएम उम्मीदवार की घोषणा ना करना भी था।

मध्यप्रदेश में कॉंग्रेस की बात करें तो वहां पर ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच ठनी हुई है। अगर ज्योतिरादित्य को सीएम उम्मीदवार बनाया जाता है तो कमलनाथ व दिग्विजय सिंह पार्टी से नाराज़ हो सकते हैं। और उनकी नाराज़गी कॉंगेस पर भारी पड़ सकती है।

वहीं राजस्थान की बात करें तो यहां भी पार्टी सचिन पायलट और पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बीच ठनी हुई है। यही हाल पार्टी के साथ छत्तीसगढ़ में भी है। यहां पर भूपेश बघेल व सत्यनारायण शर्मा और टीएस सिंह देव के बीच सीएम उम्मीदवार बनने की जंग चल रही है।

चुनाव से पहले अगर कॉंग्रेस को दोबारा सत्ता में आना है तो उसे राज्य के वरिष्ठ नेताओं की साथ वार्ता करनी चाहिए ताकि इस समस्या का हल निकल सके। कॉंग्रेस को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को विश्वास दिलाना चाहिए। नहीं तो कॉंग्रेस के वजूद को भी लेकर सवाल उठने लगेंगे, तीन राज्यों के चुनाव इसलिए भी कॉंग्रेस के लिए अहम माने जा रहे हैं। अगर पार्टी के प्रदर्शन यहां खराब होता है तो इसका असर लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।

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