जब हलक में हाथ डाल कांटे सजाए जाएंगे,
हम खून की उल्टियों से आज़ादी लिख आएंगे।
जब ज़ुबां हुकूमत के तलवे तले दबाए जाएंगे,
हमारे अल्फाज़ कील बन घाव कर आएंगे।
जब तख्त-ए-कैद में नज़रबंद किए जाएंगे,
हम सलाखों को भी बगावत सीखा आएंगे।
जब ज़ुबां पर हुकूमत के प्लास्टर चढ़ाए जाएंगे,
हम सीलन से अल्फाज़ों का सैलाब ले आएंगे।
जब हुकूमत के तकिए तले कैद किए जाएंगे,
हम करवटों में प्रतिकार कर आएंगे।
जब ज़ुबां सत्ता की आंच पर पिघलाए जाएंगे,
हम बेमौसम बारिश बन इन्कलाब ले आएंगे।
जब जिस्म गोलियों से छलनी किए जाएंगे,
हम शब्द बनकर वापस आएंगे।