मंगलवार को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने मंगलवार को देशभर में छापेमारी करने के बाद इन पांच लोगों को गिरफ्तार किया। पुलिस का आरोप है कि इनका नक्सल गतिविधियों से कनेक्शन है।
इन पांच लोगों में हैदराबाद के कवि और समाजसेवी वरवर राव, मुंबई के रहने वाले नागरिक अधिकार कार्यकर्ता अरुण फरेरा, वकील और समाजसेवी सुधा भारद्वाज, वर्नोन गान्जल्विस और गौतम नवलखा शामिल हैं।
गिरफ्तार 5 लोगों में तीन को आज अदालत में पेश किया जाएगा। सुधा भारद्वाज को अभी उनके फरीदाबाद के घर में ही नज़रबंद रखा गया है और उन्हें कल यानी गुरुवार को कोर्ट में पेश किया जाएगा।
कौन हैं गिरफ्तार ये पांच लोग
1. वरवर राव
वरवर राव को पुलिस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया है। दो महीने पहले जून में पुणे पुलिस ने वरवर राव के घर से मोदी की हत्या की साजिश के उल्लेख वाला एक पत्र बरामद किया था। इस पत्र में कथित तौर पर प्रधानमंत्री की हत्या पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तर्ज पर करने की बात कही गई है। हालांकि वो पत्र किसने लिखा है इस बात का पता नहीं चल सका है, पत्र लिखने वाले की पहचान सिर्फ ‘आर’ के रूप में की गई है।
साहित्यिक ब्रैकग्राउंड से ताल्लुक रखने वाले वरवर राव ‘वीरसम’ के अध्यक्ष हैं, ये क्रांतिकारी लेखकों का एक संगठन है। वरवर एक क्रांतिकारी कवि के रूप में भी पहचाने जाते हैं। वरवर राव पर कई बार नक्सलवाद को बढ़ावा देने का आरोप लग चुका है।
वरवर राव की इससे पहले भी कई बार गिरफ्तारी हो चुकी है। 1975 से 1986 के बीच रामनगर साजिश कांड के तहत कई आरोपों में उनकी कई बार गिरफ्तारी हुई थी। यह मामला करीब 17 सालों तक चला और अंनत: 2003 में उन्हें इस मामले से बरी कर दिया गया। इसके बाद 2005 में उन्हें आंध्र प्रदेश लोक सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किया गया लेकिन अगले साल 31 मार्च को वो मुकदमा निरस्त कर दिया गया और उन्हें अन्य सभी मामलों में ज़मानत मिल गई।
तेलगू ब्राह्मण परिवार में जन्मे वरवर राव के अब तक 15 कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।
2. सुधा भारद्वाज
पेशे से वकील और पिछले 30 सालों से ट्रेड यूनियन से जुड़ी सुधा भारद्वाज मज़ूदरों, किसानों, दलितों, आदिवासियों के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा से जुड़े रहते हुए इन्होंने भीलाई के माइन्स और प्लान्ट्स में काम करने वाले मज़दूरों के हकों के लिए भ्रष्ट नौकरशाहों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की है।
इसके साथ ही सुधा दलित और आदिवासी राइट्स के लिए भी लड़ती आई हैं। ये दलित और आदिवासियों के लिए भूमि, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार के लिए लगातार काम कर रही हैं।
सुधा नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली की विज़िटिंग प्रोफेसर और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ की राष्ट्रीय सचिव भी हैं। ये ‘जनहित लॉयर कलेक्टिव’ की संस्थापक भी हैं।
सुधा अपने कॉलेज के दिनों में ही मज़दूरों और किसानों के हक की लड़ाई में शामिल हो गई थीं। IIT में पढ़ने के दौरान बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल के मज़दूरों की बुरी स्थिति से वाकिफ होने के बाद इन्होंने उनके हक के लिए लड़ने का फैसला किया और 1986 में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा से जुड़ गईं। इनके हक को कानूनी रूप से आगे बढ़ाने के लिए ही सुधा ने वकालत की पढ़ाई की। सुधा ज़मीन अधिग्रहण के खिलाफ भी लड़ाई लड़ती रही हैं।
अमेरीकी नागरिकता के साथ जन्म लेने वाली सुधा ने 18 साल की उम्र में अमेरीकी नागरिकता त्याग दी थी।
रिपब्लिक टीवी ने इस साल 4 जुलाई को अपने एक कार्यक्रम में सुधा पर आरोप लगाते हुए कहा था कि सुधा ने किसी माओवादी को चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि देश में कश्मीर जैसी परिस्थिति पैदा करनी होगी। रिपब्लिक टीवी ने उनपर माओवादियों से पैसे लेने का भी आरोप लगाया था। हालांकि उस चिट्ठी का कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला और सुधा ने भी अपने ऊपर लगे इस आरोप को गलत ठहराया है।
3. अरुण फरेरा
मुंबई के मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फरेरा पेशे से वकील हैं। फरेरा की भी इससे पहले गिरफ्तार हो चुकी है। 2007 में उन्हें नक्सल गतिविधियों में शामिल होने की वजह से अरेस्ट किया गया था। हालांकि उन्हें बाद में सभी मामलों में बरी कर दिया गया था।
इन सभी घटनाओं के 4 साल बाद Unlawful Activities Prevention Act and the Arms Act के तहत फिर से उनपर 11 केस लगाए गए। उन्हें 2014 में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।
4. गौतम नवलखा
पेशे से पत्रकार, गौतम नवलखा पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) से जुड़े रहे हैं। साथ ही ‘इकनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली’ पत्रिका के संपादक भी रहे हैं।
गौतम ने लगातार कश्मीर के मुद्दों को अपनी लेखनी के ज़रिए उठाया है। गौतम ने खुद कई बार कश्मीर जाकर वहां के हालात को जानने के की कोशिश की है। जिसके ज़रिए वो समय-समय पर कश्मीरियों के अधिकारों और उनके साथ हो रहे शोषण के खिलाफ खुलकर आवाज़ उठाते रहे हैं। गौतम सुधा भारद्वाज के साथ मिलकर गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक कानून 1967 को निरस्त करने की मांग भी की थी।
हालांकि 2011 में उन्हें श्रीनगर एयरपोर्ट पर रोक दिया गया था और उन्हें कश्मीर में प्रवेश नहीं करने दिया गया। कश्मीर में अशांति फैलाने के आरोप में उनपर इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 144 के तहत चार्ज लगाया गया।
5. वर्नोन गान्जल्विस
वर्नोन को भी नक्सल गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में 2007 में गिरफ्तार किया गया था। वर्नोन Unlawful Activities (Preventions) Act and Arms Act के अलग-अलग सेक्शन के तहत 2013 में दोषी ठहराए गए थे।
वर्नोन पर लगातार नक्सलवाद को समर्थन देने का आरोप लगता रहा है। सुरक्षा एजेंसियों का आरोप है कि वह नक्सलियों की महाराष्ट्र राज्य समिति के पूर्व सचिव और केंद्रीय कमेटी के पूर्व सदस्य हैं। उनपर लगभग 20 मामलों में आरोप लगाए गए थे लेकिन सबूतों के अभाव में उन्हें 17 मामलों में बरी कर दिया गया।