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94 साल की उम्र में तमिलनाडु के दिग्गज नेता करुणानिधि का निधन

मुथुवेल करुणानिधि, ये नाम है उस दिग्गज का जिसके पीछे साढ़े छः दशक का असाधारण रूप से लम्बा और सफल राजनीतिक करियर है। अपने समर्थकों के बीच “कलैग्नार” यानी “कलाकार” नाम से पुकारे जाने वाले करुणानिधि का जन्म 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी (अब तमिलनाडु) के थिरुकुवाले गाँव में हुआ था। शुरू से ही कला और साहित्य में रूचि रखने वाले करुणानिधि तमिलनाडु की राजनीति के सबसे प्रमुख और प्रभावशाली नेता होने के साथ साथ तमिल सिनेमा में एक जाने माने लेखक और गीतकार रहे हैं। करुणानिधि का आज शाम निधन हो गया वो 94 वर्ष के थे।

करुणानिधि का राजनीतिक जीवन

अगर करुणानिधि के राजनितिक जीवन की बात की जाये तो इसकी शुरुआत सन 1938 में ही हो गयी थी जब महज 14 साल के करुणानिधि को जस्टिस पार्टी के अल्गारीस्वामी के भाषण ने कुछ इस कदर प्रभावित किया की उसी छोटी उम्र में ही वो उस वक्त मुखर रूप से चल रहे हिंदी-विरोधी आन्दोलनों का हिस्सा बने। हालांकि औपचारिक रूप से करुणानिधि का राजनीती में पदार्पण सन 1953 में हुआ।

उस वक्त तमिलनाडु के एक छोटे औद्योगिक शहर कल्लाकुडी का नाम बदल के एक पूंजीपति के नाम पे डालमियानागरम करना प्रस्तावित किया गया था। उस वक़्त तमिलनाडु में पेरियार के द्रविड़ राजनीतिक आंदोलन से जन्मे दलों को ये कदम हिंदी साम्राज्यवाद से प्रेरित गैर-हिंदी भाषियों पर हिंदी को बलपूर्वक थोपने की कोशिश लगी। इसके विरोध में होने वाले उग्र प्रदर्शनों में करुणानिधि एक युवा लेकिन महत्वपूर्ण चेहरा बन के उभरे और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। तब तमिल फिल्मों में स्क्रीनप्ले लिखने वाले करुणानिधि आने वाले समय में तमिलनाडु की राजनीति के दिग्गज बन के उभरनेवाले थे।

करुणानिधि ने द्रविड़ आंदोलन के पहले छात्र संगठन ‘तमिलनाडु तमिल मनावर मन्द्रम’ की शुरुआत की। 1953 में कल्लाकुडी आंदोलन में राजनीतिक पटल पर उभरने के बाद सन 1957 में 33 साल की उम्र में कुलितले विधानसभा सीट से डीएमके की और से पहली बार निर्वाचित हो के तमिलनाडु विधानसभा में गए। 1961 में वे DMK के कोषाध्यक्ष बने और 1967 में जब पार्टी सत्ता में आयी तो वो कैबिनेट में मंत्री बने।

1969 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अन्नादुरै के निधन के बाद करुणानिधि ने पहली बार मुख्यमंत्री पद संभाला और 1969 से 2011 तक वे भिन्न भिन्न कार्यकालों में 5 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके थे।

करुणानिधि के राजनीतिक प्रतिद्वंदी और विवाद

करुणानिधि के सबसे बड़े राजनितिक प्रतिद्वंदी बन के उभरे तमिल सिनेमा के बड़े अभिनेता एमजी रामचंद्रन। एक वक्त में करुणानिधि के मित्र और डीएमके में उनके साथी रहे एमजीआर ने अलग होकर अन्नाद्रमुक पार्टी बनाई और तब से आज तक वो डीएमके के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी बन के उभरे हैं।

करुणानिधि और विवादों का चोली दामन का साथ रहा है। भ्रष्टाचार के कई आरोप उन पर, उनके परिवार पर और उनकी पार्टी पर लगते आये हैं। सेतुसमुद्रम विवादों के दौरान भी उनका एक बयां जिसमे उन्होंने ने हिन्दू भगवान राम के होने पे प्रश्न उठाया था उसकी काफी आलोचना हुई थी।

करुणानिधि और इंदिरा गाँधी और काँग्रेस के बीच भी काफी तनातनी का वातावरण रहा है। 1975 में लगायी गयी इमरजेंसी के दौरान करुणानिधि की पार्टी एकलौती सत्तारूढ़ पार्टी थी जिसने इमरजेंसी का विरोध किया था। हालाँकि इस से पहले करुणानिधि ने इंदिरा गाँधी के बैंको के राष्ट्रीकरण करने पर उनका समर्थन दिया था।

करुणानिधि और लिट्टे के बीच के सम्बन्ध भी विवादों का कारण रहे हैं। राजीव गाँधी की लिट्टे द्वारा हत्या के बाद करुणानिधि की सरकार को प्रशासन करने पे असक्षम मान बर्खास्त कर दिया गया था। एक इंटरव्यू में करुणानिधि ने लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन को अपना मित्र भी बताया था।

करुणानिधि के राजनीति की विचारधारा

करुणानिधि तमिलनाडु में पेरियार द्वारा चलाये गए ब्राह्मणवाद विरोधी आन्दोलनों से जन्मी विचारधारा और राजनीति का हिस्सा रहे हैं। अगर हिंदी पट्टी के लोगों को पेरियार और करूणानिधि के बीच के संबंधों को समझाना हो तो ये कहा जा सकता है कि जो सम्बन्ध बिहार में जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन और नीतीश कुमार और लालू यादव का रहा है या फिर उत्तर प्रदेश में जो सम्बन्ध राम मनोहर लोहिया के समाजवादी विचारधारा से अभी की समाजवादी पार्टी का रहा है वैसा ही सम्बन्ध पेरियार और करुणानिधि का माना जा सकता है।

तमिलनाडु में गैर ब्राह्मण और पिछड़ी जाति की राजनीति जिसका उद्गम पेरियार के समय से हुआ उसे ही आगे बढ़ाने का दावा करुणानिधि द्वारा किया जाता रहा है। लेकिन करुणानिधि के आलोचकों का कहना है कि वो अब पेरियार के दिखाए रास्ते से अलग हटकर वोट बैंक की राजनीति के लिए जातिगत समीकरणों का इस्तेमाल करने लगे थे। इसके अलावा आये दिन करूणानिधि और उनकी पार्टी द्वारा ब्राह्मणवादी प्रतीकवाद का इस्तेमाल वोटरों को रिझाने के लिए करना पेरियार की विचारधारा के ठीक विपरीत माना जाने लगा था।

DMK में वंशवाद औऱ करुणानिधि पर भ्रष्टाचार का आरोप

इसके अलावा करुणानिधि का एक और पक्ष आलोचना का शिकार होता रहा था और वो था उनका वंशवाद को बढ़ावा देना। अपने बेटे स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी बनाने की वजह से खुद की पार्टी में भी उन पर पार्टी हित से ज़्यादा अपने परिवार को तरजीह देने के आरोप लगाए जाते रहे थे। हालांकि उनके समर्थकों का कहना था कि स्टालिन ने अपने दम पे ग्रासरुट लेवल से अपना राजनितिक करियर बनाया।

करुणानिधि और उनकी पार्टी पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगते रहे हैं। इंदिरा गाँधी की सरकार ने भ्रष्टाचार के मामले में कदम उठाते हुए एक बार करुणानिधि की सरकार को बर्खास्त भी किया था। सन 2001 में चेन्नई में बन रहे फ्लाईओवर में होने वाले घोटालों के लिए उनको जेल भी जाना पड़ा है। संप्रग की सरकार में हुए 2जी घोटालों में द्रमुक के सांसद कनिमोझी और ए राजा को अभियुक्त बनाया गया था। हालांकि CBI अदालत ने दोनों को इस मामले से बरी कर दिया था।

करुणानिधि का राजनीतिक करियर कई उतार चढ़ावों और विवादों से भरा रहा लेकिन इन सारे विवादों के बीच ये “कलाकार” तमिलनाडु और देश की राजनीति में सबसे लम्बे समय तक सक्रिय रहा। ये बात सच है कि समय समय पर अपने राजनीतिक आदर्शों और विचारधारा से करुणानिधि अलग हटते रहे लेकिन तमिलनाडु की राजनीति में पिछड़े वर्गों की मज़बूत हैसियत के होने के पीछे इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। इनके निधन से वाकई एक युग का अंत हुआ है और पेरियार के आंदोलनों में अपनी जड़ें रखने वाली राजनेताओं की खेप अब करुणानिधि के साथ ही समाप्त हो चुकी है।

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