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क्यों विज्ञापन पर करोड़ों खर्च करने वाली सरकार मौलाना आज़ाद की विरासत नहीं संभाल पायी?

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की 125 वीं जयन्ती पर, 11 नवम्बर 2013 को भारत सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के तत्कालीन मंत्री श्री के. रहमान खान ने मौलाना आज़ाद की विरासत पर www.maulanaazadheritage.org वेब पोर्टल की शुरुआत की थी। वेब पोर्टल के शुरू किए जाने की खबर सरकारी समाचार एजेंसी, पत्र सूचना कार्यालय (Press Information Bureau) सहित अन्य अख़बारों में प्रकाशित हुई।

“द हिन्दू” ग्रुप के ऑनलाईन बिजनेस अख़बार “द हिन्दू बिजनेसलाईन” ने 11 नवम्बर 2013 को, मतलब लॉन्चिंग के दिन की ही अपनी ऑनलाईन रिपोर्ट में वेब पोर्टल का स्क्रीनशॉट साझा किया था, जिसमें होम, ओवरव्यू, लिगेसी, नॉलेज बैंक, गैलरी और कॉन्टेक्ट अस का ऑप्शन है। मतलब कि यह वेब पोर्टल आम पहुँच वाला एक प्लेटफॉर्म था जहाँ मौलाना आज़ाद के लेख, भाषण, किताबें, फोटोग्राफ्स, वीडियो सहित तमाम चीजें/सामग्री, जो उनकी विचारधारा को शैक्षिक स्तर तक समझने में मददगार होती, उपलब्ध थी।
अब हुआ यह है कि 11 नवम्बर 2013 को भारत सरकार द्वारा लॉन्च किया गया, एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के जीवन और उसके योगदान पर आधारित वेबसाइट नहीं खुल रही है।

http://www.maulanaazadheritage.org/ वेब पोर्टल का स्क्रीनशॉट

www.maulanaazadheritage.org लिंक पर जाने से जो पेज खुलता है, उस पर लिखा है कि यह डोमेन बिकाऊ है। सवाल यह है कि एक सरकारी वेबसाइट का डोमेन, जिसका अधिकतम वार्षिक किराया कुछ हजार रूपयों का होता है, बिकने क्यों लगा? प्रचार पर सैकड़ों करोड़ खर्च करने वाली सरकार ने मौलाना आज़ाद पर आधारित हेरिटेज वेबसाइट को क्यों बन्द कर दिया? क्या सरकार आजादी की लड़ाई की असली विरासत को मिटाकर फर्जी इतिहास फैलाना चाहती है? क्या मौलाना आज़ाद का हिन्दू-मुस्लिम एकता का कट्टर समर्थक होना सरकार को खटकता है? या सरकार उनकी इस्लाम धर्म की व्याख्याओं को डिजिटल स्पेश से गायब कर देना चाहती है?

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