मेरे जहां में हुई सुबह नई,
रौशन हुआ हर किनारा यहां
आंधी चली इंकलाब की
आज़ाद हुआ वजूद यहां।
काफिले चले अपनी राह पे
कायनात हुई तामीर यहां
एक ज़मीन के टुकड़े हुए
आवाम को मिले मुल्क यहां।
नई सरपरस्ती में उम्मीद जगी
कायम रही सोच यहां
अपनी शख्सियत को बनाने में
दिलों के हुए बंटवारे यहां।
फिरदौस की आस में
मज़हबी हुई ज़िन्दगी यहां
बादल छाए खलिश के
अंधेरे में है इंसान यहां।
आज़ाद हुए वतन कई
गिरफ्त में है सोच यहां
मना लो खुशी एक दिन की
कल से आज़ाद कौन यहां।