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ज़रूरी है कि देश की हवा साफ करने के लिए नीति आयोग और पर्यावरण मंत्रालय साथ आए

11 जुलाई 2018 को नीति आयोग ने एक परामर्श पत्र ‘ब्रेथ इंडिया’ नाम से प्रकाशित की और लोगों से इस पर कमेंट मांगे। हालांकि यह वाकई में एक स्वागत योग्य कदम है कि नीति आयोग जैसा प्रतिष्ठित संगठन वायु प्रदूषण पर गंभीर है लेकिन अभी भी यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि यह कोशिश सिर्फ शैक्षिक अभ्यास के लिये की गई है या फिर इसका संबंध केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) से है।

नीति को बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी है कि सारी कोशिशों को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम से जोड़ा जाये। इसी के संदर्भ में अगर देखें तो ‘ब्रेथ इंडिया’ पत्र में प्रकाशित बहुत सारे सुझावों को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में जोड़े जाने की ज़रूरत है। मसलन ब्रेथ इंडिया में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये 3 से 5 साल की एक निश्चित समय-सीमा के भीतर सभी प्रदूषण कारकों से निपटने की बात की गयी है। इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि सभी शहरों और क्षेत्रीय स्तर पर वायु प्रदूषण से निपटने के लिये कार्य योजना बनाने की ज़रूरत है। नीति आयोग के इस पत्र में यूरोपियन संघ द्वारा किये गए प्रयासों का भी उदाहरण दिया गया है जहां 2020 तक पीएम 2.5 के स्तर को 20 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक लाने का लक्ष्य रखा गया है।

नीति आयोग द्वारा जारी पेपर में प्रदूषण के सेक्टर आधारित कारकों की पहचान करके और उनसे उत्सर्जन घटाने के स्पष्ट लक्ष्य को शामिल करने की बात कही गयी है। यह वाकई में बेहद ज़रूरी हिस्सा है जिसके बिना शायद ही हम पूरे देश में नीला आसमान देख पायें।

तीसरी अहम बात यह कही गयी है कि वायु प्रदूषण के स्रोत को क्षेत्रीय आधार पर सैटेलाइट डाटा और वायु प्रदूषण निगरानी सिस्टम से जोड़ा जाये, जिससे कि प्रशासन और आम जनता इस बात को समझ सके कि प्रदूषण कहां से आ रहा है और कहां पर इसके लिये तुरंत कार्रवाई करने की ज़रूरत है।

इस परामर्श पत्र में सभी सार्वजनिक वाहनों और ऑटो रिक्शा को बिजली चालित बनाने की बात की गयी है और 2022 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सबसे प्रदूषित 10 शहरों में  डीजल को बंद करने (फेज आउट करने) के बारे में कहा गया है। यह वाकई में काफी प्रगतिशील सुझाव है और उसे दूसरे प्रदूषित शहरों में भी लागू करने की ज़रूरत है।

इन सबके अलावा इस पत्र में लगभग सभी बड़े प्रदूषकों की पहचान की गयी है और इनसे निपटने के लिये एक व्यवस्थित, व्यापक और समय सीमा के भीतर कार्य योजना लागू करने की बात भी कही गयी है।

हालांकि फिर भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनपर ‘ब्रेथ इंडिया’ पत्र में बात छूट गयी है। नीति आयोग एक कदम आगे बढ़कर शासन और नीति निर्माताओं के बीच एक प्रक्रिया की वकालत कर सकता था जो राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम को लागू करने में सहायक होते।

इसमें विभिन्न मंत्रालयों, प्राधिकरण और केन्द्र तथा राज्य सरकार के विभागों को शामिल किया जा सकता है। ज़्यादातर मामलों में देखा जाता है कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिये अलग-अलग विभागों जैसे बिजली उद्योग, परिवहन विभाग, राज्य तथा केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण मंत्रालय आदि में समन्वय का अभाव रहता है।

ब्रेथ इंडिया को योजना कहने की बजाय नीति आयोग इन सुझावों को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के ड्राफ्ट में अपने कमेंट के रूप में भी दर्ज कर सकता है, जिससे यह ज़ाहिर होता कि अभी भी पर्यावरण मंत्रालय पर ही वायु प्रदूषण को लेकर योजना बनाने तथा इसे कम करने की ज़िम्मेदारी है।

साथ ही इस पत्र में 10 सबसे प्रदूषित शहरों पर ही फोकस रखा गया है जबकि इसमें पूरे देश के क्षेत्र और शहरों को शामिल करना चाहिए था। क्योंकि 2016 के डाटा के हिसाब से देश के 230 शहर हैं जो राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरते। ये हालात तब है जब ज़्यादातर शहरों और ग्रामीण इलाकों की हवा की निगरानी ही नहीं हो रही है।

अगर नीति आयोग औद्योगिक इकाईयों और थर्मल पावर प्लांट से होने वाले उत्सर्जन को घटाने के लक्ष्य को थोड़ा और स्पष्ट तरीके से समय सीमा के भीतर रखता तो इससे प्रदूषण करने वाले सेक्टर को एक कठोर संदेश भेजा जा सकता था और इन उद्योगों को उत्सर्जन घटाने के लिये पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नये उत्सर्जन मानकों को लागू करने को मजबूर होना पड़ता।

यह गौर करने वाली बात है कि थर्मल पावर प्लांट को दिसबर 2015 में ही नये उत्सर्जन मानकों को लागू करने के लिये दो साल की मोहलत दी गयी थी, जिसे वे पहले ही पार कर गए हैं और अब वो 5 साल की मोहलत मांग रहे हैं, जिस पर हमारे स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है।

इन सबके बावजूद हालिया अखबारी खबरों में जिस तरह से पर्यावरण मंत्रालय ने 3, 5 और 10 साल का लक्ष्य रखकर शहरों और राज्यों के वायु प्रदूषण को कम करने की बात कही है वह काफी उम्मीदों भरा है और हम उम्मीद करते हैं कि सही रास्ते पर बढ़ेंगे। लेकिन अगर दूसरे सामाजिक संगठनों एवं सरकारी शोध संस्थानों के सुझावों को राष्ट्रीय वायु कार्यक्रम में शामिल किया जाता है तो वह और भी ज़्यादा उम्मीद देगा और इससे आने वाले समय में देशभर में हम प्रदूषित हवा से छुटकारा पा सकेंगे।

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