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राजस्थान में भाजपा के नये सेनापति ‘सैनी’ कितने कारगर

16 अप्रेल को राजस्थान प्रदेशाध्यक्ष के पद से वसुंधरा के बेहद नज़दीकी नेता अशोक परनामी ने बीजेपी आला-कमान के कहने पर इस्तीफा केंद्रीय नेतृत्व को सौंप दिया। पूरे 73 दिनों के उतार चढ़ाव के बाद प्रदेशाध्यक्ष पद को उसका पदाधिकारी ‘मदनलाल सैनी’ के रूप में मिला।

मदनलाल सैनी प्रदेशाध्यक्ष की मैराथन में गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुनराम मेघवाल, अरुण चतुर्वेदी, श्रीचंद कृपलानी और ओम बिड़ला जैसे नामों को पीछे छोड़ मोदी-शाह और वसुंधरा की फाइनल चॉइस के रूप में सामने आये। हालांकि यहां पर भी हर बार की तरह वसुंधरा के सामने केंद्रीय नेतृत्व को झुकना पड़ा।

भाजपा के नए प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी को अशोक गहलोत (जिनके स्वजातीय वोटों का राजस्थान की राजनीति पर व्यापक प्रभाव है) के तोड़ के रूप में भी देखा जा रहा है।

पूर्व भारतीय मज़दूर संघ के अध्यक्ष रह चुके सैनी वर्तमान में राज्यसभा सांसद होने के साथ ही भाजपा किसान मोर्चे के प्रदेशाध्यक्ष भी हैं।
राजस्थान के गरीबों एवं किसानों के ह्रदय में विशेष स्थान रखने वाले सैनी विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिये तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं।

गजेंद्र सिंह शेखावत के प्रदेशाध्यक्ष बनने पर जाट वोट बीजेपी से छिटक सकते थे वहीं अर्जुन राम मेघवाल के प्रदेशाध्यक्ष बनने पर जाट एवं राजपूत वोट बीजेपी से छिटक सकते थे। ऐसे में गैर राजपूत,जाट एवं दलित चेहरा होने के कारण सैनी जातिगत समीकरणों को अधिक कुशलता से साध पाएंगे।

घनश्याम तिवारी (जिनका ब्राम्हण वोटों पर प्रभाव है) सैनी के पुराने एवं अच्छे मित्र हैं अतः अपनी अलग पार्टी बनाने के बावजूद भी उनके बीजेपी में वापस आने के आसार लगते हैं।

कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर, पद्मावत फिल्म एवं गजेंद्र सिंह शेखावत की प्रदेश में उपेक्षा के कारण नाराज़ चल रहे राजपूत समाज को मनाने का बड़ा ज़िम्मा सैनी के कंधों पर रहेगा। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा “राजपूत समाज हमेशा से ही भाजपा के साथ जुड़ा रहा है। मैं लोकेंद्र सिंह कालवी से भी मिला हूं” ये मुलाकातें क्या रंग लाती हैं यह तो समय ही बेहतर बता पायेगा लेकिन राजपूत समाज के मूड की बात करें तो राजपूतों से (जो कि बीजेपी के पारंपरिक वोटर है) बीजेपी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

राजस्थान की जनता एंटी इनकंबेंसी के चलते हर पांच साल में अपनी सरकार बदलती ही है, यह राजस्थान की फितरत भी है। राजस्थान की इस फितरत से बचने के लिए सैनी कह रहे हैं कि खराब परफॉर्मेन्स वाले मंत्रियों एवं विधायकों का टिकट काट दिया जायेगा। एक अनुमान के मुताबिक एंटी इनकंबेंसी से बचने के लिए इस बार सैनी 100 से अधिक मौजूदा विधायकों का टिकट काटने के मूड में हैं।

लेकिन साथ ही सैनी ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि वसुंधरा ही भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगी और बहुमत की स्थिति में वे ही मुख्यमंत्री बनेंगी।

पिछले पौने पांच वर्षों के दौरान सचिन पायलट ने भी प्रदेश में उम्दा मेहनत की है। ‘मोदी से बैर नहीं महारानी तेरी खैर नहीं’, ‘रानी हमसे डरती है, पुलिस को आगे करती है’, ‘कमल का फूल हमारी भूल’, ‘वसुंधरा मुक्त राजस्थान’ जैसे नारे भी इन दिनों राजस्थान में परवान पर हैं। इन सबके बीच सैनी के लिए 2018 विधानसभा चुनाव का समर फतह करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। अगर मदनलाल सैनी ये चुनावी किला फतह करने में सफल हो जाते हैं तो निसंदेह प्रदेश स्तर पर ही नहीं बल्कि केंद्रीय स्तर पर भी उनका कद काफी अधिक बढ़ जायेगा।

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