हम सभी चाहते हैं कि हमारे आस-पास के लोग अच्छे हों, लोग मिलजुल कर रहें, एक दूसरे के साथ अच्छा व्यवहार करें, ज़रूरत पड़ने पर लोग एक दूसरे की मदद करें।
ये तो अभी हमें सपने जैसा लगता है लेकिन आने वाले समय में हम चाहेंगे कि ये सिर्फ सपना बनकर ना रह जाए। हम सभी को मालूम है कि हम कोई भी काम करके ही सीखते हैं। इस सिखने की प्रक्रिया में अपने खुद के अनुभव का एक बड़ा योगदान होता है।
ये बात स्पष्ट है और जैसा हम सभी जानते हैं कि हमारे आस-पास के बच्चे आने वाले भविष्य हैं और आगे वे ही हमारे समाज का नेतृव करने वाले हैं। ये बच्चे बड़ी तेज़ी से कोई भी चीज़ सीखते हैं।
मैं सीखना शब्द बार-बार इसलिए प्रयोग कर रहा हूं क्योंकि हमारे आस-पास के बच्चे वही सीखेंगे जो वह अपने आस-पास के लोगों को करते हुए देखेंगे और समाज में वैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा वे लोगों को करते हुए पाएंगे। अगर सरल तरीके से देखा जाए तो हम आस-पास के लोगों के साथ अभी जैसा व्यवहार करते हैं वैसा ही हमारे आस-पास के बच्चे भी आने वाले समय में व्यवहार करेंगे।
मतलब कि अगर प्रेम के बीज हम बोएंगे तो प्रेम ही निकलेगा और अगर स्वार्थ की बीज बोएंगे तो स्वार्थ ही निकलेगा। बात एकदम सरल है कि हमारा भविष्य हमारे ऊपर निर्भर करता है।
आज मैं इस विषय पर इसलिए बात कर रहा हूं क्योंकि आप सभी जानते हैं कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में इन सब बातों की कोई जगह नहीं है, वह तो किसी के द्वारा लिखी गयी हुई किताबों के शब्दों को रटकर अंक लाने तक ही सीमित है और हम चाहते हैं कि इस व्यवस्था से हमारे देश का कल्याण हो जाए और हमारे देश में बुद्धिजीवियों का निवास हो। इसलिए शिक्षा कैसी होनी चाहिए इसपर सोचने की ज़रूरत है।
अंत में किसी बुद्धिजीवी का कहा हुआ वाक्य लिख रहा हूं, उन्होंने कहा था कि हमें अपने बच्चों की शैक्षिक क्षमता के साथ उन्हें व्यस्त नहीं बनना चाहिए बल्कि हमें उन्हें दयालू होना सिखाना चाहिए। उन्हें दूसरों की मदद करना सिखाएं। उन्हें दूसरों को प्रोत्साहित करना सिखाएं। उन्हें दूसरों के बारे में सोचने के लिए सिखाएं। उन्हें दूसरों का सम्मान करने के लिए सिखाएं। इस तरह वे दुनिया को बदल देंगे।