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“बीफ खाने से अगर बाढ़ आती तो आज केरल नहीं पूरा भारत डूबा होता”

some irresponsible people attributing Kerala floods to beef eating

केरल त्रासदी से इस वक्त हर कोई वाकिफ है। पिछले कुछ दिनों से यहां प्रलय का माहौल बना हुआ है, हर तरफ मौत का राज है, मौत वहां खुले आम घूम रही है। वहां के लोग बड़ी परेशानी में हैं।

अगर हम केरल को इस बाढ़ से पहले देखते हैं तो यहां लोग काफी खुशनुमा थे। कल तक जिन जगहों पर टूरिस्ट का आना जाना होता था और जो दर्शन मन मोहक थे आज वो मौत का मुंह बना हुआ है।

मैं खुद जब केरल गया था, तो हमने भी एक वॉटरफॉल देखा था। वहां जाकर हम लोगों को काफी खुशी हुई थी और हमने उस दृश्य को काफी एंज्वॉय भी किया था लेकिन अब जो तस्वीर उस वॉटरफॉल की सामने आई है उसको देखकर मैं सहम सा गया हूं कि कल क्या था और आज क्या है?

अब इस भयानक त्रासदी में भी कुछ कट्टरपंथी अपना मतलब हल करने पर तुले हुए हैं, कुछ लोग इसे जस्टिफाई कर रहे हैं कि केरल में बीच सड़क पर गाय को काटा गया था तो ये उसी का श्राप लगा है। ये लोग दूसरों से ये अपील भी कर रहे हैं कि केरल के लोगों की मदद मत करो वो नाम के हिन्दू हैं वो गाय खाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि सिर्फ हिन्दुओं की मदद की जाए देशद्रोहियों (मुस्लिम) को फंसे रहने दिया जाए।

अगर ये बात सच है कि गाय के काटने से त्रासदी का सामना करना पड़ता है तो अब तक तो पूरे भारत को तबाह हो जाना चाहिए था क्योंकि भारत पूरे विश्व मे बीफ एक्सपोर्ट में पहले नम्बर पर है।

मैं कहना चाहता हूं उन गन्दी मानसिकता वाले लोगों से कि वहां कोई और नहीं फंसा हुआ है, वहां एक कॉमन मैन फंसा हुआ है, वो ना ही हिन्दू है और ना ही मुसलमान, वो है तो सिर्फ इंसान।

और हां किसी को क्या खाना है, क्या पहनना है, इसके लिए आप लोगों को मशवरा देने की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है,
अगर आप लोग केरल के लोगों के लिए कुछ नहीं कर सकते तो कम-से-से कम ईश्वर के लिए जो लोग बचाव कार्य में प्रशासन का सहयोग कर रहे हैं या फिर नॉर्थ इंडिया से जो लोग अपने स्तर पर रकम जमा करके केरल के लोगों के लिए मुख्यमंत्री या किसी एनजीओ के ज़रिये वहां मदद कर रहे हैं, कम-से-कम उन्हें तो आप गुमराह करने की कोशिश मत करें।

उन्हें आप खुले मन से काम करने दीजिए वो लोग सिर्फ इसलिए वहां काम कर रहे हैं या मदद कर रहे हैं क्योंकि वो इंसानियत को पहचानते हैं।

केरल बाढ़ के प्रति सरकार का भी ढुलमुल रवैया

किसी राष्ट्र के लिए आपदा केवल सूखा या बाढ़ नहीं होती बल्कि ऐसी परिस्थिति में उस राष्ट्र के सत्ताधारियों की खामोशी भी किसी आपदा से कम नहीं होती। प्राकृतिक आपदा केरल में आयी है मगर आपदा का एक रूप केंद्र सरकार की नीतियों में भी साफ देखा जा सकता है। ऐसी परिस्थितियां सरकारों के चाल चरित्र और चेहरे को उजागर कर देती हैं।

केरल में जो आपदा आयी है उसपर धीरे-धीरे काबू पाया जा रहा है और जल्द ही स्थिति सामान्य हो जाने की संभावना है मगर सरकारों की नीयतों पर जो आपदा आयी है उसके खत्म होने की सम्भावना तो दूर-दूर तक नहीं दिखायी देती।

जब भी कोई नई सरकार आती है तो हर्ष उल्लास के साथ लोग स्वागत करते हैं लेकिन बाद में लोगों को ये आभास होता है कि जिस सरकार के आने पर वो खुशियां मना रहे थे दरअसल वो एक आपदा थी जो राष्ट्रवाद का चोला ओढ़े हुए थी जिसके चेहरे से नकाब केरल की प्राकृतिक आपदा ने हटा दिया है।

केरल में प्राकृतिक आपदा के बाद जल्द ही पानी कम हो जाएगा लेकिन इस लोकतंत्र के कर्णधारों के कर्म को देखकर जो पानी नाक से ऊपर आ चुका है वो किसी बड़े जन आंदोलन के बिना कम होना नामुमकिन है।

ईश्वर से प्राथना है कि ईश्वर जल्द-से-जल्द केरल की परेशनियों को दूर करके केरल के लोगों को अमनो सुकून नसीब फरमाए ।

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