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कुलदीप नैयर, सरकार के करीबी होकर भी उनकी आलोचना करने वाले पत्रकार

हेडलाइन पढ़कर अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि हम कुलदीप नैयर जी की बात कर रहे हैं। कल 95 वर्ष की उम्र में कुलदीप नैयर जी की मृत्यु हो गई, वो कई सालों से खराब सेहत से जूझ रहे थे और बुधवार देर रात अचानक उनकी सेहत ने जवाब दे दिया।

कुलदीप नैयर की मृत्यु भारतीय पत्रकारिता जगत के लिए बड़ा धक्का है। वो भारतीय पत्रकारिता के पितामह थे, उनकी कमी शायद ही कोई पूरी कर पाए।

आज के दौर में जब पत्रकार, नेताओं के हाथों बिक रहे हैं, वे अपनी कलम को भी गिरवी रख रहे हैं, उस दौर में कुलदीप नैयर की कमी बहुत खलेगी। मंत्रियों के करीबी और विश्वासपात्र बनकर भी कैसे मंत्रियों की गलत नीतियों की आलोचना की जाए ये कुलदीप नैयर से सिखा जा सकता है।

कुलदीप नैयर तत्कालीन गृह मंत्री गोविंद बल्लभ भाई पंत और लाल बहादुर शास्त्री के सूचना सलाहकार भी रह चुके थे। जब तक कुलदीप उनके सूचना सलाहकार थे तब तक तो वो  मीडिया में उनकी छवि बनाने में लगे रहे। कई बार तो लोग उन्हें उनके नाम से नहीं बल्कि यह कहते हुए उनके बारे में बोलते थे, “अरे ये तो वही है ना जो बल्लभ भाई पंत का गुणगान मीडिया में करवाता है?”

वो शास्त्री के सबसे करीब थे। उन्होंने खुद अपनी किताब “एक ज़िंदगी काफी नहीं” में लिखा है कि उनका शास्त्री से आत्मीय लगाव था। शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कुलदीप शाम में उनके साथ बैठकर देश की आर्थिक और राजनीतिक पहलूओं पर उनके साथ बातें किया करते थे।

राजनीतिक लोगों से इतने करीब होने के बावजूद भी वो उनकी आलोचना करने से हिचकिचाते नहीं थे। ताशकंद बातचीत के लिए शास्त्री जी कुलदीप नैयर को भी अपने साथ वहां लेकर गए थे। कुलदीप वहां की पल-पल की जानकारी अपनी प्रेस एजेंसी यूएनआई के पास पहुंचा रहे थे।

इसी बीच उन्होंने शास्त्री जी की आलोचना करते हुए कुछ लेख भी यूएनआई में छपवा दिए, इस पर शास्त्री जी कुलदीप नैयर पर उखड़ गए। उन्होंने कुलदीप पर आरोप भी लगाया कि वो उनके करीब होने के बावजूद भी सरकार के अनुकूल लेख नहीं लिख रहे हैं?

कुलदीप नैयर ने खुद अपनी किताब में लिखा है कि वो पत्रकारिता में गलती से चले आए हैं। वो वकालत के पेशे में जाना चाहते थे। जिसके लिए उन्होंने लाहौर यूनिवर्सिटी से लॉ में डिग्री भी हासिल की, लेकिन इससे पहले कि वो अपने गृहनगर सियालकोट में खुद को वकील के रूप में अधिकृत करवाते, उससे पहले ही भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हो गया।

बंटवारे के बाद वो दिल्ली चले आएं और फिर उर्दू पत्रकारिता “अंजाम” में रोज़ी-रोटी चलाने के लिए उन्होंने नौकरी शुरू कर दी।

बाद में महान शायर हसरत मोहानी की सलाह पर कि उर्दू का भारत में कोई भविष्य नहीं है वे अंग्रेज़ी पत्रकारिता की ओर मुड़ गए और अंग्रेजी पत्रकारिता पढ़ने अमेरिका चले गए। वहां उन्होंने पत्रकारिता से एमएससी किया। पत्रकारिता की डिग्री लेकर लौटने पर उन्हें पीआईबी में नौकरी मिल गई।

आगे यूएनआई, स्टेट्समैन, इंडियन एक्सप्रेस आदि में भी उन्होंने काम किया और अपने काम से प्रसिद्ध होते चले गएं। एक्सप्रेस में उनका स्तम्भ ‘बिटवीन द लाइंस’ सबसे ज़्यादा पढ़ा जाने वाला स्तम्भ था।

उन्होंने एक बार कहा था कि मैं पत्रकारिता के पेशे में शुरुआत (आगाज़) की बजाए अंत (अंजाम) से दाखिल हुआ इसलिए वो हमेशा कहते थे कि मेरे सहाफत (पत्रकारिता) का आगाज़, अंजाम (अंत) से हुआ है।

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