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मुखर्जी नगर में किरायेदार स्टूडेंट्स को लूटने के लिए अपनाए जाते हैं कई पैंतरे

अगस्त 2018 में नई दिल्ली के मुखर्जी नगर में प्रॉपर्टी डीलर द्वारा कथित तौर पर एक छात्र की पिटाई का मामला प्रकाश में आया था, जिसके बाद वहां के छात्रों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन भी किया था।

ऐसी आम घटना इसलिए खास बन जाती है, क्योंकि इन इलाकों में रहने वाले तकरीबन 90 फीसदी लोगों को ऐसी घटनाओं से दो चार होना पड़ता है।

आइए पूरा मामला जानते हैं-

मुखर्जी नगर में प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए कई निजी संस्थान चलते हैं, जिनमें सिविल सेवा, एसएससी और बैंकिंग परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों की संख्या ज़्यादा है। जिसके कारण पास के इलाके जिनमें नेहरू विहार, गांधी विहार, गोपालपुर, निरंकारी कॉलोनी, वज़ीराबाद गांव जैसे इलाकों में किराए के मकान की काफी मांग रहती है।

ऐसे में प्रॉपर्टी डीलरों के द्वारा कमरे दिलवाने के लिए मोटी रकम वसूल की जाती है जो अमूमन पांच हज़ार से पंद्रह हज़ार तक होते हैं, जो उनसे एकमुश्त लिए जाते हैं। यानी अगर आप इन इलाकों में दो कमरों का सेट लेना चाहते हैं तो आपको कम-से-कम पच्चीस से तीस हज़ार रुपये एक बार खर्च करने होंगे, जो छात्र के लिए परेशानी का सबब होता है। ऐसे में छात्र रूम पार्टनर रखते हैं और रूम बार-बार बदलने से परहेज़ करते हैं।

कुछ ऐसे पहलू भी हैं जिसे जानना ज़रूरी है, जैसे-मुखर्जी नगर, नेहरू विहार, गांधी विहार में 75 फीसदी मकान ऐसे हैं जिसकी सारी ज़िम्मेदारी प्रॉपर्टी डीलरों के भरोसे उनके मकान मालिकों ने छोड़ रखी है और उनके लिए बस उनका मकान एक आय का माध्यम है और कुछ नहीं।

ऐसे में ये लाज़मी है कि किरायेदार किस भी परेशानी के लिए प्रॉपर्टी डीलर के पास जाते हैं, जबकि प्रॉपर्टी डीलर मकान मालिकों से बात करने की बात करता है और परेशानी का हल नहीं निकल पाता।

इन इलाकों में  किराए के मकान में परेशानियों की सूची लम्बी है जो कभी खबरों में देखने को नहीं मिलती है। ऐसे कुछ तथ्यों पर नज़र डालते हैं।

इन इलाकों में ’10 फीसदी वार्षिक वृद्धि’ का एक नियम है, जिसे कुछ छात्र आम भाषा में काला कानून कहते हैं। इसके तहत हर वर्ष किराए की राशि में 10 फीसदी की वृद्धि कर दी जाती है, जिससे हर वर्ष किराए की दर में एक हज़ार से लेकर डेढ़ हज़ार तक वृद्धि होती है।

ऐसे मामले यहां आम है, जिसमें बिजली बिल के नाम पर लोगों से 7-8 रुपये प्रति यूनिट की दर से रकम वसूली जाती है जो सरकारी दर से दुगना है। ऐसे में किराए का दबाव और भी बढ़ जाता है।

छात्रों की माने तो यहां पानी के बिल के नाम पर जो वसूली की जाती है, उसमें मकान मालिक द्वारा पूर्व में बकाये का भुगतान भी वर्तमान में रह रहे किरायेदारों से लिया जाता है। कुछ इनसे भी गंभीर मामले हैं, जैसे मकान की मरम्मत कराने के नाम पर मकान खाली कराकर दोबारा उन्हीं मकानों को किराए पर लगाकर प्रॉपर्टी डीलर अच्छी खासी कमाई ब्रोकरेज चार्ज के नाम पर करते हैं।

ऐसे मामले कहीं-ना-कहीं छात्रों के आम जीवन में परेशानी पैदा करते हैं और उनके सपनों को पूरा करने में बाधा डालते हैं। लिहाज़ा ऐसे मामलो में ‘दिल्ली रेंट कण्ट्रोल एक्ट 1958‘ में अभी भी कई सुधार करने होंगे। हालांकि कई ऐसे प्रयास किये गए ताकि इस पुराने कानून को समयानुसार प्रभावी बनाया जा सके।

मगर दिल्ली वालों के लिए ये वाक्य सही साबित होता है “दिल्ली अभी दूर है” जो कि प्रसिद्ध सूफी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, उनके शागिर्द अमीर खुसरो और दिल्ली के तत्कालीन शासक गयासुद्दीन तुगलक से सम्बंधित है।

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