Site icon Youth Ki Awaaz

केरल फंड को लेकर UAE के सामने देश की गरिमा गिरने का ज़िम्मेदार कौन है?

केरल में आई बाढ़ के नाम पर जिस तरह की राजनीति की जा रही है वो भारत जैसे देश को शोभा नहीं देती है। केरल में फंड को लेकर जिस तरह का विवाद हुआ उसे हम एक तरफ बाढ़ और दूसरी तरफ राजनीति कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

सयुंक्त अरब अमीरत (यूएई) की सरकार द्वारा जिस फंड को दिया ही नहीं गया था उसके नाम पर राजनीति शुरू हो गई थी। कई समाचार पत्रों ने भी बिना प्रमाणिकता के खबर को प्रकाशित किया। इसके बाद यूईए सरकार को प्रेस रिलीज़ जारी करके यह बताना पड़ा कि उनकी सरकार ने केरल बाढ़ के लिए कोई राहत फंड जारी नहीं किया गया है।

इस पूरे मुद्दे की अगर हम पड़ताल करें तो कई बिंदु सामने आएंगे। पहला कि भारत सरकार 2004 के बाद से ही प्राकृतिक आपदाओं के लिए विदेशों से आने वाले फंड नहीं लेती है। भारत सरकार ऐसा इसलिए करती है ताकि वह पूरे विश्व को संदेश दे सके कि वह विपरीत परिस्थितियों से निपटने के लिए हम सक्षम हैं। इसकी शुरुआत 2004 से हो चुकी है। हालांकि सरकार की इस नीति में यह भी कहा गया है कि अगर घरेलू संसाधन कम पड़ेंगे तो विदेशी फंड स्वीकार किए जा सकते हैं।

दूसरी बात, भारत सरकार ने कहा था कि अगर कोई देश राहत फंड जारी करता है तो इसे विनम्रता पूर्वक मना कर दिया जाएगा। हां, यह ज़रूर है कि भारत सरकार की तरफ से कहा गया था कि अगर कोई देश आपदा प्रभावितों की मदद करना चाहता है तो वो देश में संचालित एनजीओ के ज़रिए कर सकता है। इसलिए इस मुद्दें को लेकर राज्य सरकार भी घेरे में है कि आखिर सरकार ने बिना प्रमाणिक जांच के ही इस खबर को कैसे फैला दिया।

शायद राज्य सरकार ऐसा करके केंद्र सरकार को नीचा दिखाना चाहती हो या फिर राज्य सरकार को डर सता रहा था कि केंद्र में विराजमान भारतीय जनता पार्टी फंड के नाम पर राजनीति ना कर सके। आने वाले कुछ दिनों में केरल में राज्य चुनाव होने हैं और राज्य में पिनाराई विजयन की कम्युनिस्ट सरकार है इसलिए सत्ता विरोधी लहर को भी राज्य सरकार अपने पक्ष में करना चाहती हो।

खैर, इस फंड को लेकर जो भी बात हुई है, उसकी वजह से यूएई के सामने देश की गरिमा गिरी है। इसलिए केंद्र व राज्य सरकारों को चाहिए की इस तरह कि घटनाओं को आने वाले समय में घटित ना होने दिया जाए।

Exit mobile version