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कितनी सच है मोदी की हत्या की साजिश वाली बात

हमारे देश के प्रधानमंत्री के हज़ारों दुश्मन होंगे और ये भी संभव है कि कुछ लोग उन्हें मारने की साजिश रच रहे हों लेकिन क्या कोई इतनी बड़ी साजिश एक चिट्ठी के ज़रिये रचेगा? क्या कोई चिट्ठी में अपने प्लान के बारे में साफ-साफ लिखेगा? क्या कोई चिट्ठी में लिखकर ये बताएगा कि कैसे राजीव गांधी स्टाइल में पीएम मोदी पर हमला करना है? क्या कोई ये भी बता देगा कि पीएम मोदी के रोड शो पर हमला करना है? क्या कोई अपना और अपने साथियों का नाम भी चिट्ठी में लिखकर रखेगा?

सबसे बड़ी बात, क्या वो आदमी उस चिट्ठी को नष्ट करने की बजाये संभालकर रखेगा कि एक दिन जांच एजेंसियां उस तक पहुंच सकें?

ये सवाल इसलिये ज़रूरी हो जाते हैं क्योंकि एक चिट्ठी की वजह से ही देश के बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों, वकीलों, मानवाधिकार और दलित अधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और वकीलों को गिरफ्तार किया जा रहा है। विचारक और कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्नन गोंज़ाल्विस पर पीएम मोदी की हत्या की साजिश जैसा संगीन आरोप लगाया गया है।

इसी साल जून महीने में दलित कार्यकर्ता सुधीर धावले, वकील सुरेंद्र गाडगिल, सामाजिक कार्यकर्ता महेश राउत, सोमा सेन और रोना विल्सन को गिरफ्तार किया गया था। पुणे पुलिस ने दावा किया कि रोमा विल्सन के लैपटॉप से उन्हें एक चिट्ठी मिली है। किसी कॉमरेड प्रकाश के नाम लिखी गई चिट्ठी में हमले की पूरी प्लानिंग का ज़िक्र बताया जा रहा है। उसके बाद से जो हो रहा है वो आपके सामने है।

ऐसे में सवाल है कि जब बार-बार पीएम मोदी की हत्या की साजिश की खबरें सामने आती हैं तो प्रधानमंत्री क्यों हर जगह जाकर खुली जीप से हाथ हिलाकर रोड शो करते हैं? क्यों प्रधानमंत्री रैली के बाद भीड़ से हाथ मिलाने चले जाते हैं? क्यों प्रधानमंत्री विदेश में भारतीय मूल के लोगों के साथ सेल्फी क्लिक कराते हैं? क्यों लाल किले से भाषण के बाद बच्चों के बीच पहुंच जाते हैं? जब प्रधानमंत्री की जान को इतना ही खतरा है तो एसपीजी ने उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की अंतिम यात्रा में 5-6 किलोमीटर पैदल यात्रा की अनुमति कैसे दे दी? इस दौरान उनपर हमला हो जाता तो क्या होता? देश के प्रधानमंत्री की जान से भला यूं खिलवाड़ क्यों हो रहा है? क्या ऐसी भयंकर लापरवाही करने वाले उच्च सुरक्षा अधिकारियों को बर्खास्त नहीं कर देना चाहिये? क्या देश के गृहमंत्री को इस ओर ध्यान नहीं देना चाहिए था?

सवाल तो ये भी है कि जब साजिश वाली चिट्ठी जून में हाथ लग गई थी तो पुणे पुलिस इतने महीनों से कर क्या रही थी? अगर ये पांचों लोग साजिश में शामिल लग रहे थे तो पुलिस ने उन्हें फौरन गिरफ्तार क्यों नहीं किया? क्या इतने दिनों तक पुलिस उन्हें अपने कथित प्लान को एग्ज़िक्यूट करने का समय दे रही थी?

देश के पीएम की सुरक्षा से जुड़े मसले पर भी भला पुलिस इतनी भयंकर लापरवाही कैसे दिखा सकती है? मोदी ऐसे अकेले प्रधानमंत्री बन गये हैं जिनकी जान के पीछे इतने लोग पड़े हैं लेकिन वो फिर भी जान जोखिम में डालकर रोड शो कर-कर के वोट मांगते हैं। देश के प्रधानमंत्री की जान जोखिम में डालकर उनका चुनावी इस्तेमाल करने वाली बीजेपी को जनता माफ नहीं करेगी।

असल में देश के समाजसेवी, मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, लेखक और मुखर लोगों की गिरफ्तारी दिखाती है कि सरकार विरोधी आवाज़ों से कितना डरती है। असल में हत्या की साजिश की कहानी के पीछे विद्रोही आवाज़ को कुचलने की साजिश है।

आपको याद होगा, 15 जून 2004 को गुजरात में इशरत जहां, जावेद गुलाम शेख, अमजद अली राना और ज़ीशान जोहर को लश्कर का आतंकी बताकर अहमदाबाद पुलिस और एसआईबी ने एनकाउंटर कर दिया था। उस वक्त कहा गया था कि ये चारों गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी की हत्या करने जा रहे थे।

भीमा-कोरेगांव में दलितों पर हुए हमले में नामजद आरोपी और मास्टरमाइंड संभाजी भिड़े, जिन्हें पीएम मोदी गुरु जी कहकर संबोधित करते हैं, मस्त घूम रहे हैं। जिस पर कार्रवाई होनी चाहिए थी वो तो हुई नहीं उलटे दलित और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रास्ते से हटाया जा रहा है।

नरेंद्र मोदी जी, आप देश के प्रधानमंत्री हैं। आप सावधान रहिये, सतर्क रहिये और सुरक्षित रहिये। आप प्रधानमंत्री हैं इसलिये देश के लोकतंत्र का भी ख्याल रखिये। आपने काम किया होगा तो वोट मिल ही जाएगा, हमें यूं इमोशनल फूल तो ना बनाओ।

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