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जब अखबार में छपा था, “सूरत नहीं सीरत के लिए पसंद हैं अटल बिहारी”

Why Atal Bihari Vajpayee was popular Among Youth

मेरी पढ़ाई सरस्वती शिशु मंदिर और विद्या मंदिर में हुई, यह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इनडाइरेक्ट रूल वाली संस्था से चलने वाले स्कूल हैं। हुआ यह कि मेरे बचपन में हम लोग गोंडा की हाऊसिंग कॉलोनी में रहते थे और शहर के दो स्कूलों में कॉलोनी के बच्चे पढ़ने भेजे जाते थे-फातिमा और सरस्वती।

फातिमा बहुत दूर था और हमलोग छोटे थे, रिक्शे से उतनी दूर भेजना किसी के परिवार को ठीक नहीं लगता था, तो आस-पास के सभी बच्चों का एडमिशन सरस्वती में करा दिया गया।

सरस्वती के पास में जीजीआईसी और टामसन कॉलेज है। थोड़ी दूर पर हनुमान गढ़ी, बगल में पुराना किला और आगे एक मज़ार है।

यह किसी लोकसभा चुनाव के करीब का समय था। पूरे शहर में बहुत भीड़ थी। स्कूल पहुंचने पर पता चला कि आज अटल बिहारी वाजपेयी आ रहे हैं, बृजभूषण शरण सिंह के समर्थन में वोट मांगने के लिए। स्कूल से ही टामसन कॉलेज में चल रहा भाषण सुनाई दे रहा था। उनके उस भाषण के बाद जनता ने इतनी तालियां बजाई थीं कि बृजभूषण शरण सिंह ने अपना भाषण बेहद छोटा रखा और उसमें भी चुटकुले सुनाये। बाकी इतिहास है।

भाषण खत्म होने से पहले ही हम लोगों को छुट्टी दे दी गयी ताकि भीड़ से बचते हुए सब घर पहुंच जाएं, लेकिन बाहर निकलते-निकलते अटल जी का हेलीकॉप्टर उड़ता दिखाई पड़ा। हम सब हो-हो करते हाथ हिलाते रहे। फिर धीरे-धीरे स्कूल से घर की ओर चल पड़े।

मज़ार तक पहुंचे ही थे कि एक युवा ने हम सबको रोक कर कहा कि वह फलां अखबार से है। उसने और पता नहीं क्या-क्या पूछा बस फिलहाल एक सवाल याद है कि इनकी तो सूरत भी इतनी अच्छी नहीं फिर भी इतने लोग क्यों पसंद करते हैं? मैंने कहा सूरत से क्या होता है, काम तो कुछ अच्छे किये हैं।

अगले दिन अखबार ने हमलोगों के नाम के साथ छापा “सूरत नहीं सीरत के लिए पसंद हैं अटल बिहारी”

उसके कुछ सालों बाद हमलोग कई और शहरों में रहे। चुनाव के समय की रैलियों में “अबकी बारी, अटल बिहारी” से “दृष्टि अटल पर, वोट कमल पर” जैसे नारे अजान और मंदिर में मंत्रोचारण की तरह हर तरफ सुनाई पड़ते रहे।

अटल बिहारी वाजपेयी कूच कर चुके हैं। एक अच्छा नेता चला गया है। पिछले कई सालों में एक-दो बार ही उनका नाम सुनने-पढ़ने को मिलता था और भाजपा-संघ के विरोधियों का यह तर्क भी रहता था कि ये वही लोग हैं जिन्होंने अटल बिहारी (ज़्यादातर के लिए अटलजी) को भी भुला दिया है।

लोग कहते मिलते थे कि कोई बीमारी हो गयी है शायद। अब कयासों को पूर्ण विराम लग गया है। श्रद्धांजलि भी लेफ्ट-राइट-सेंटर हर तरफ से दी गयी। शव यात्रा की भीड़ देख बहुत लोगों को महात्मा गांधी की शव-यात्रा के चित्र याद आ गए।

सोशल मीडिया पर लोगों ने अपने विचार रखे। कविताएं शेयर की गयी। पुरानी तस्वीरें सामने आयीं और कुछ बयान भी।

पूर्व पत्रकार और पूर्व आप नेता आशुतोष ने भी अटल जी की राजनीतिक उपलब्धि गिनाते हुए उन्हें श्रद्धांजली दी। रिटायर्ड आई.पी.एस. विजय शंकर सिंह ने अटल जी के जीवन के कई संस्मरण लिखे और शेयर किये। पूर्व डीजीपी उत्तर प्रदेश पुलिस सुलखान सिंह ने अटल जी से हुई अपनी मुलाकातों की चर्चा की।

दैनिक हिंदुस्तान के राजीव कटारा, गढ़वाल पोस्ट के सतीश शर्मा, न्यूज़ 18 के प्रतीक त्रिवेदी, आज तक के पाणिनि आनंद और ईश्वर सिंह सबने कुछ ना कुछ लिखा जो नोस्टालजिक था।

लेखक और दलित चिंतक कंवल भारती ने अपना संस्मरण लिखा और अटल बिहारी को ब्राह्मण और मनुवादी कहा। दलेल बेनबाबाली (ऑक्सफोर्ड) सहित कई लोगों ने अटल बिहारी को संघी-कुसंघी लिखा। देश-दुनिया के तमाम नेताओं ने अपनी उपस्थिति-अनुपस्थिति में कुछ ना कुछ कहा।

पाकिस्तान के साथ युद्ध और उसके बाद भी सम्बन्ध सुधारने की कवायद, पोखरण परमाणु परीक्षण और लता मंगेशकर को भारत रत्न दिलाना भी अटल बिहारी वाजपेयी के ही कर्म हैं।

अटल जा चुके हैं, मैंने भाजपा के विरोध में भी काफी कुछ लिखा है और अटल जी बारे में लिखते समय इस बात की कतई चिंता नहीं है कि कोई क्या कहेगा, सोचेगा। जितना जान-समझ सकता था, उसके हिसाब से सीरत तब भी पसंद थी, और अब भी। बाकी लगा कि विरोध में भी उतनी ही सच्चाई है तो और खंगालूंगा और फिर कभी लिखूंगा।

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