यूपी, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की सरकारों ने रक्षाबंधन के अवसर पर महिलाओं के लिए बसों में फ्री यात्रा का इंतज़ाम किया है। शनिवार की रात बारह बजे से लेकर रविवार की रात बारह बजे तक।
अगर रविवार की रात किसी औरत को बारह से ज़्यादा बज गये तो? वही बस-कंडक्टर, वही यात्री, वही लोग दुश्मन हो जाएंगे? पूछने लगेंगे कि औरत रात को अकेली कहां घूम रही है? इन्हीं सरकारों के नेता बयान देने लगेंगे कि ये यूरोप नहीं है, हिंदुस्तान है तो यहां की संस्कृति के हिसाब से टाइम देखकर निकलना चाहिए था।
रक्षाबंधन पर उपहार ये होता कि यही सरकारें मुज़फ्फरपुर, देवरिया जैसी जगहों पर हुए बालिकाओं के शोषण की ज़िम्मेदारी लेतीं, अपनी गलती मानती और सुधारने का वादा करती। पर नहीं, ऐसा कोई उपहार इन सरकारों ने नहीं दिया है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने तो राज्य की दो करोड़ महिलाओं को पत्र लिखा है। पोस्ट-ऑफिस में कार्यभार ज़्यादा होने की वजह से ये पत्र भेजे नहीं जा सके हैं। पत्र में वोट करने की अपील की गई है, अगली बार जीतने पर स्त्रियों को सुरक्षा प्रदान करने की बात की गई है। पिछले तीन बार से जब जीत रहे थे, तब सुरक्षा प्रदान करने में क्या दिक्कत थी? यहां से भी तो बालक-बालिकाओं के शोषण की खबरें आ रही हैं।
और ऐसा क्या जादू हो जाएगा कि इस बार वोट करते ही सारी महिलाऐं सुरक्षित हो जाएंगी? बच्चियां पढ़ेंगी, खेलेंगी और नौकरियां करेंगी?
हर साल रक्षाबंधन पर सरकारें ऐसी ही बोगस घोषणाएं करती हैं। ऐसा लगता है जैसे UN हर साल सीरिया, इराक या ऐसी ही किसी बर्बाद हुई जगह से किसी को उठा के कोई पुरस्कार दे रहा हो। और पुरस्कार के अगले दिन फिर बमबारी।
भाई साहब, आप किराये के पूरे पैसे लो, सौ डेढ़ सौ से इन महिलाओं पर कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। ये एक घर में बर्तन ज़्यादा मांज लेंगी और एक भैंस-गाय और पाल लेंगी पर रक्षाबंधन के दिन जिस सुरक्षा का अहसास दिला रहे हो, वो पूरे साल क्यों नहीं हो सकता? दिल्ली की सरकार का तो मान सकते हैं कि मेधावी परंतु निर्धन हैं ये लोग, पुलिस हाथ में नहीं है, लेकिन बस तो हाथ में है? कल के ही दिन बसों में छेड़खानी होगी, कम से कम उसी की जिम्मेदारी ले लो।
अगर वाकई में महिलाओं की इतनी ही चिंता है तो रक्षाबंधन के दिन कोई बलात्कार, कोई छेड़खानी नहीं होनी चाहिए। अगर कहीं पर भी ऐसी खबर आती है, तो इन सरकारों का सिर लज्जा से झुक जाना चाहिए। अगर कल के दिन भी सरकारें बलात्कार या छेड़खानी रोक लें, तो ये माना जा सकता है कि सरकारें गंभीर हैं।
परंतु सरकार बहादुर, ऐसा क्या है कि जैसे-जैसे आपके कानून बनते जा रहे हैं, लोग औरतों के लिए हैवान होते जा रहे हैं? इस स्थिति की स्टडी क्यों नहीं करवाते आप? रिसर्च की फंडिंग कम करने की क्या जल्दी है आपको? समस्या का समाधान तब निकलेगा जब पता चलेगा की समस्या है क्या और कहां है?
मनोचिकित्सालय क्यों नहीं खुलवाते हर जगह, जहां सामान्य मानवी के मस्तिष्क की जांच हो सके। जहां पता चल सके कि औरतों को लेकर कितने लोग सनकी हैं। आधार से सारी डिटेल ले रहे हो, लेकिन दागी लोगों के दिमाग की डिटेल नहीं। मार्क कर लेते उनको ताकि पुलिस सजग रहकर उनको अपराध करने से रोक सके।
बार-बार आपकी घोषणाओं में यही आता है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। आप ये क्यों नहीं समझ पाते कि औरतों को लेकर जो आपका रवैया है, उसी से ये दोषी उत्पन्न होते हैं। आप ने ही पाठ्यक्रम में औरतों को इंसान नहीं रहने दिया है। बचपन से ही ये लोग औरतों को इंसान ना समझने की गलती करते आ रहे हैं। अगर आप बाल्यकाल में ही ये चीज समझा दें तो कोई दोषी बनेगा ही नहीं।
अगर भारत की महिलाओं को उपहार ही देना है तो उन्हें रोडवेज़ बसों में होती छेड़खानियों से बचने का उपहार दें। जिनकी वजह से लड़कियां कॉलेज छोड़कर घर के चूल्हे चौके में लग जाती हैं। अगर यही हाल रहा तो मोदी जी ने लाल किले के भाषण में जो कहा था कि भारत का “पुरुषार्थ” ही मंगलयान अंतरिक्ष में ले जाएगा, सच होगी, उस “पुरुषार्थ” में लड़कियां शामिल नहीं होंगी।
उपहार दें कि समूचे भारत के बालिका गृहों की जांच होगी, समाज के पीड़ित तबके से आई सब बच्चियों के पढ़ाने की जिम्मेदारी लें। उन्हें वो समाज मुहैया कराएं जिसमें वो सांस ले सकें।
वैसे तो ये उपहार नहीं महिलाओं अधिकारों की बात है। और अधिकार कभी उपहार में नहीं लिए जाते वो हमें पैदा होते ही मिल जाते हैं। लेकिन फिर भी अगर आप उपहार देने को व्याकुल हैं तो हमें अच्छा और सभ्य समाज दें। ये एक दिन बोगस बस में फ्री की यात्रा नहीं।