पुलिस, ये शब्द पढ़ते ही हमारे और आपके दिमाग में एक वर्दी पहने हुए शख्स की एक तस्वीर खिंचती है। दिखने में हमारे और आपके ही जैसा एक शख्स लेकिन हमारे समाज का सर्वाधिक निन्दित और सर्वाधिक प्रशंसित इंसान। जिसकी निंदा भी खूब होती है और तारीफ भी खूब होती है।
पुलिसवालों का चरित्र चित्रण करने वाले उन्हें कई तरह के तमगे देते हैं, घूसखोर, 100-100 रुपए में बिक जाने वाले, भ्रष्ट, बेईमान, ज़ालिम। असल में हम और आप बचपन से पुलिस की यही परिभाषा तो सुनते चले आ रहे हैं।
एक कहावत जो सबसे ज़्यादा कही जाती है वो ये कि पुलिसवालों की ना दोस्ती अच्छी और ना ही दुश्मनी। ये सूक्ति लिखने वाला कौन था? कौन था जिसने हमारे और आपके दिलों में ये बात भर दी कि पुलिसवाले अच्छे नहीं होते। क्या इस बात पर यकीन किया जा सकता है कि वर्दी पहनने वाले शख्स के अंदर दिल नहीं होता।
खैर बात बहुत लंबी है। मीडिया में काम करते हुए मैंने पुलिस वालों की कई तस्वीरें देखी हैं, लाठीचार्ज करते हुए पुलिसवाले, शराब के नशे में झूमते पुलिसवाले, स्टेज पर अश्लील ठुमकों पर सीटियां बजाते हुए पुलिस वाले, फोन पर धमकी देते हुए पुलिसवाले, गालियां देते हुए पुलिसवाले लेकिन इन सबको भी इसलिए स्वीकार किया क्योंकि ये भी हमारे समाज का ही हिस्सा हैं। हम इनसे खुद को अलग नहीं कर सकते।
इन सबसे अलग कई बार पुलिस वालों ने ही मिसालें पेश की हैं, घायलों को अस्पताल पहुंचाया है, खोए हुए लोगों को उनके परिवार से मिलवाया है, भीषण बारिश में भींगते हुए ट्रैफिक पर कंट्रोल किया है।
अपनी नौकरी तो वो करते ही हैं लेकिन ज़रा सी लापरवाही की वजह से उन्हें सस्पेंड भी होना पड़ता है। पलभर में ट्रांसफर हो जाते हैं। ये वो सारी बातें हैं जो हम और आप सब जानते हैं। इनमें कुछ ऐसा नहीं है, जो आपको ना पता हो।
आप सोचिए कि आप अपनी बाइक पर या अपनी कार पर वकील, पत्रकार, सत्ताधारी दल का नेता लिखवाकर, पार्टी का झंडा लगाकर चलते हैं तो आप किस जुनून में होते हैं, आपको लगता है कि ज़िले की पूरी पुलिस आपकी जेब में है। आपसे टकराने वाला, आपसे बोलने वाला कोई नहीं। आप सड़कों पर फर्राटा भरते हुए निकलते हैं। अगर आप कुछ नहीं हैं तो अपने मोबाइल में किसी ना किसी प्रभावशाली का नंबर रखते हैं, पूरे गर्व से फोन मिलाते हैं और जब पुलिस का कोई शख्स कभी-कभी सम्मान में तो कभी दवाब में उस शख्स के कहने पर आपसे कुछ नहीं कह पाता तब आपके चेहरे पर एक अभिमान वाली हंसी होती है। आपको लगता है कि आपने खाकी को अपने कदमों में झुका लिया और वहां खड़े पुलिस वाले सब देखते रहते हैं, चुपचाप। वो आपसे कुछ नहीं कह सकते हैं क्योंकि आप तो प्रभावशाली हैं। अधिकारियों का मनोबल तोड़ने का काम हमेशा सत्ता ने किया है और पुलिस के बेहतर काम का क्रेडिट हमेशा सरकारों ने लिया है।
एक IPS अधिकारी एक अदने से विधायक, जातीय समीकरणों की राजनीति कर रहे मंत्री और सांसद के सामने ऐसे खड़े रहते हैं, जैसे पढ़ लिखकर मेहनत करके अधिकारी बने एक शख्स पर एक नेता भारी हो। यही विडंबना है, हमारे समाज की।
अंध विरोध में इतने अंधे मत हो जाइए कि आपको सिर्फ नकारात्मकता ही दिखे। आप, हम और पुलिस तीनों समाज का ही हिस्सा हैं, आगे की बात फिर कभी कहूंगा। आज बस इतना कहूंगा कि हकीकत को जाने बिना, सच को परखे बिना और झूठ को बेपर्दा किए बिना कोई भी सोच, कोई भी विचारधारा ना बनाएं, किसी के भी बारे में। बाकी सच, सच ही रहेगा।