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भगत सिंह की तस्वीरें शेयर से पहले उन्हें पढ़ना भी ज़रूरी है

कल पूरे भारत ने अपने महान स्वतंत्रता सेनानी और यूथ आइकन शहीद ए आज़म भगत सिंह का जन्म दिवस मनाया। भारत के इतिहास में भगत सिंह का नाम और उनका त्याग हमेशा अमर रहेगा। उनका त्याग, बलिदान भरा जीवन हमेशा हमें क्रांति प्रतिवाद की प्रेरणा देता है।

इन दिनों भगत सिंह के नाम की मार्केटिंग खूब हो रही है लेकिन इसमें अव्वल संघ परिवार के लोग रहे हैं। दक्षिणपंथी संगठन आरएसएस और उनके लोग भगत सिंह के मूल सिद्धांतों और उनके साहित्य को सीधे-सीधे खारिज़ करते हैं लेकिन उनकी राष्ट्रवादी छवि को दुष्प्रचारित करके अन्य लोगों को राष्ट्रवाद का सर्टिफिकेट देते हैं जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है।

हम जब भगत सिंह को पढ़ते हैं तो वहां ब्राह्मणवाद, सामंतवाद और पूंजीवाद के खिलाफ विद्रोह नज़र आता है। हम जब भगत सिंह को पढ़ते हैं तो वहां संकीर्ण जाति और वर्ण व्यवस्था के खात्मे की क्रांति चिंगारी बिगुल बजती हुई दिखती है और शायद यही कारण है कि भगत सिंह के विचारों से आरएसएस और अन्य दक्षिणपंथी संगठन के लोग  झुलस जाते हैं। आज हम आप लोगों को शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के कुछ लेख बताएंगे कि उनका जाति संप्रदायवाद, पूंजीवाद और धर्म की संकीर्ण सांप्रदायिक विनाशकारी राजनीति पर कैसा विचार था।

धर्म  पर शहीद-ए-आज़म भगत सिंह-

1928 में ‘किरती’ में लिखे अपने आलेख ‘धर्म और हमारा स्वतंत्रता संग्राम’ में वह लिखते हैं, “बात यह है कि क्या धर्म घर में रहते हुए भी लोगों के दिलों के भेदभाव नहीं बढ़ाता? क्या उसका देश की पूर्ण स्वतंत्रता हासिल करने तक पहुंचने में कोई असर नहीं पड़ता? बच्चे से यह कहना कि ईश्वर ही सर्वशक्तिमान है मनुष्य कुछ भी नहीं है, मिट्टी का पुतला है, बच्चे को हमेशा के लिए कमज़ोर बनाना है। उसके दिल की ताकत और उसके आत्मविश्वास की भावना को नष्ट कर देना है।”

अपने थोड़े बाद के लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूं?’ में वह कहते हैं, “तुम जाओ और किसी प्रचलित धर्म का विरोध करो, जाओ किसी हीरो की, महान व्यक्ति की, जिसके बारे में सामान्यतः यह विश्वास किया जाता है कि वह आलोचना से परे है क्योंकि वह गलती कर ही नहीं सकता, आलोचना करो तो तुम्हारे तर्क की शक्ति हज़ारों लोगों को तुम पर वृथाभिमानी का आक्षेप लगाने को मज़बूर कर देगी।”

 साम्प्रदायिक दंगों  पर शहीद-ए-आज़म भगत सिंह 

जून, 1928 के ‘किरती’ में छपे लेख ‘सांप्रदायिकता पर भगत सिंह’ और उनके साथियों के विचार में भगत सिंह लिखते हैं, ”भारतवर्ष की दशा इस समय बड़ी दयनीय है। एक धर्म के अनुयायी दूसरे धर्म के अनुयायियों के जानी दुश्मन हैं। अब तो एक धर्म का होना ही दूसरे धर्म का कट्टर शत्रु होना है। यदि इस बात का अभी यकीन ना हो तो लाहौर के ताज़ा दंगे ही देख लें। किस प्रकार मुसलमानों ने निर्दोष सिखों, हिन्दुओं को मारा है और किस प्रकार सिखों ने भी वश चलते कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह मार-काट इसलिए नहीं की गयी कि फलां आदमी दोषी है, इसलिए कि फलां आदमी हिन्दू है या सिख है या मुसलमान है। बस किसी व्यक्ति का सिख या हिन्दू होना मुसलमानों द्वारा मारे जाने के लिए काफी था और इसी तरह किसी व्यक्ति का मुसलमान होना ही उसकी जान लेने के लिए पर्याप्त तर्क था। जब स्थिति ऐसी हो तो हिन्दुस्तान का ईश्वर ही मालिक है।

ऐसी स्थिति में हिन्दुस्तान का भविष्य बहुत अन्धकारमय नज़र आता है। इन ‘धर्मों’ ने हिन्दुस्तान का बेड़ा गर्क कर दिया है और अभी पता नहीं कि यह धार्मिक दंगे भारतवर्ष का पीछा कब छोड़ेंगे। इन दंगों ने संसार की नज़रों में भारत को बदनाम कर दिया है और हमने देखा है कि इस अन्धविश्वास के बहाव में सभी बह जाते हैं। कोई बिरला ही हिन्दू, मुसलमान या सिख होता है, जो अपना दिमाग ठंडा रखता है। बाकी सबके सब धर्म के यह नामलेवा अपने नामलेवा धर्म के रौब को कायम रखने के लिए डंडे लाठियां, तलवारे-छुरे हाथ में पकड़ लेते हैं और आपस में सर-फोड़-फोड़कर मर जाते हैं। बाकी कुछ तो फांसी पर चढ़ जाते हैं और कुछ जेलों में फेंक दिये जाते हैं। इतना रक्तपात होने पर इन ‘धर्मजनों’ पर अंग्रेज़ी सरकार का डंडा बरसता है और फिर इनके दिमाग का कीड़ा ठिकाने आ जाता है।

यहां तक देखा गया है, इन दंगों के पीछे साम्प्रदायिक नेताओं और अखबारों का हाथ है। इस समय हिन्दुस्तान के नेताओं ने ऐसी लीद की है कि चुप ही भली। वही नेता जिन्होंने भारत को स्वतंत्रता कराने का बीड़ा अपने सिरों पर उठाया हुआ था और जो ‘समान राष्ट्रीयता’ और ‘स्वराज्य-स्वराज्य’ के दमगजे मारते नहीं थकते थे, वही या तो अपने सिर छिपाये चुपचाप बैठे हैं या इसी धर्मान्धता के बहाव में बह चले हैं।

सिर छिपाकर बैठने वालों की संख्या भी क्या कम है? लेकिन ऐसे नेता जो साम्प्रदायिक आन्दोलन में जा मिले हैं, ज़मीन खोदने से सैकड़ों निकल आते हैं। जो नेता हृदय से सबका भला चाहते हैं, ऐसे बहुत ही कम हैं और साम्प्रदायिकता की ऐसी प्रबल बाढ़ आयी हुई है कि वे भी इसे रोक नहीं पा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि भारत में नेतृत्व का दिवाला पीट गया है।

यदि इन साम्प्रदायिक दंगों की जड़ खोजें तो हमें इसका कारण आर्थिक ही जान पड़ता है। असहयोग के दिनों में नेताओं व पत्रकारों ने ढेरों कुर्बानियां दीं। उनकी आर्थिक दशा बिगड़ गयी थी। असहयोग आन्दोलन के धीमे पड़ने पर नेताओं पर अविश्वास-सा हो गया, जिससे आजकल के बहुत से साम्प्रदायिक नेताओं के धन्धे चौपट हो गए हैं। विश्व में जो भी काम होता है, उसकी तह में पेट का सवाल ज़रूर होता है। कार्ल मार्क्स के तीन बड़े सिद्धान्तों में से यह एक मुख्य सिद्धान्त है। इसी सिद्धान्त के कारण ही तबलीग, तनकीम, शुद्धि आदि संगठन शुरू हुए और इसी कारण से आज हमारी ऐसी दुर्दशा हुई, जो अवर्णनीय है।”

ब्राह्मणवादी वर्ण व्यवस्था और जाति पर शहीद-ए-आज़म भगत सिंह

भगत सिंह जाति के सवाल पर जून, 1928 को किरती में प्रकाशित लेख ‘अछूत समस्या’ में लिखते हैं, “क्योंकि एक आदमी गरीब मेहतर के घर पैदा हो गया है इसलिए जीवन भर मैला ही साफ करेगा और दुनिया में किसी तरह के विकास का काम पाने का उसे कोई हक नहीं है, ये बातें फिज़ूल हैं। इस तरह हमारे पूर्वज आर्यों ने इनके साथ ऐसा अन्यायपूर्ण व्यवहार किया तथा उन्हें नीच कहकर दुत्कार दिया एवं निम्नकोटि के कार्य करवाने लगे। साथ ही यह भी चिन्ता हुई कि कहीं ये विद्रोह ना कर दें, तब पुनर्जन्म के दर्शन का प्रचार कर दिया कि यह तुम्हारे पूर्व जन्म के पापों का फल है।

अब क्या हो सकता है? चुपचाप दिन गुज़ारो। इस तरह उन्हें धैर्य का उपदेश देकर वे लोग उन्हें लम्बे समय तक के लिए शांत करा गए लेकिन उन्होंने बड़ा पाप किया। मानव के भीतर की मानवीयता को समाप्त कर दिया। आत्मविश्वास एवं स्वावलम्बन की भावनाओं को समाप्त कर दिया। बहुत दमन और अन्याय किया गया। आज उस सबके प्रायश्चित का वक्त है।”

वह खुली अपील करते हैं, “संगठनबद्ध हो अपने पैरों पर खड़े होकर पूरे समाज को चुनौती दे दो। तब देखना, कोई भी तुम्हें तुम्हारे अधिकार देने से इंकार करने की ज़ुर्रत ना कर सकेगा। तुम दूसरों की खुराक मत बनो। दूसरों के मुंह की ओर ना ताको। लेकिन ध्यान रहे, नौकरशाही के झांसे में मत फंसना। यह तुम्हारी कोई सहायता नहीं करना चाहती, बल्कि तुम्हें अपना मोहरा बनाना चाहती है। यही पूंजीवादी नौकरशाही तुम्हारी गुलामी और गरीबी का असली कारण है इसलिए तुम उसके साथ कभी ना मिलना। उसकी चालों से बचना। तब सब कुछ ठीक हो जायेगा।

तुम असली सर्वहारा हो। संगठनबद्ध हो जाओ। तुम्हारी कुछ भी हानि ना होगी। बस गुलामी की जंज़ीरें कट जाएंगी। उठो और वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध बगावत खड़ी कर दो। धीरे-धीरे होने वाले सुधारों से कुछ नहीं बन सकेगा। सामाजिक आन्दोलन से क्रांति पैदा कर दो तथा राजनीतिक और आर्थिक क्रांति के लिए कमर कस लो। तुम ही तो देश का मुख्य आधार हो, वास्तविक शक्ति हो। सोए हुए शेरों! उठो और बगावत खड़ी कर दो।”

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