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SC-ST कानून और आरक्षण सवर्णों को अच्छा क्यों नहीं लगता?

Protest Against SC-ST Act

एसटी-एससी एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन

हमारे देश में आरक्षण का इतिहास काफी पुराना रहा है। अंग्रेज़ों के शासन काल के दौरान सन् 1882 में जब हंटर कमीशन आया, उसी वक्त एक प्रकार से आरक्षण का आगाज़ हो चुका था। भारत में इस कमीशन के आते ही यहां कुछ लोगों द्वारा निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा के साथ सरकारी नौकरियों में सभी के लिए आनुपातिक आरक्षण की मांग की गई। यह वो दौर था जब आधुनिक भारत में आरक्षण एक विषय बन गया तथा इसकी समय-समय पर मांग भी की जाने लगी।

गौरतलब है कि “भारत सरकार अधिनियम-1909, 1919 एवं 1935” में आरक्षण का प्रावधान भी किया गया। वर्तमान में आरक्षण के जिस अंश पर देश के कुछ हिस्सों में सरगर्मी देखी जा रही है, वह 1989 का ‘अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति’ (अत्याचार-निरोधक) अधिनियम है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसमें नरमी लाने को लेकर एक टिप्पणी भी की गई थी जिसका दलितों ने विरोध किया था और अब बीते 6 सितंबर को सवर्णों द्वारा भारत बंद किया गया। सवर्णों के मुताबिक कानून का बहुत दुरुपयोग हो रहा है और इसकी कठोरता को कम करने की मांग की जा रही है।

हम सदियों से यह देखते आ रहे हैं कि सवर्णों  द्वारा दलितों को हमेशा ही दबाया गया है, उनका हर प्रकार से शोषण और दमन किया गया है। आरक्षण लागू करने की वजह भी यही थी जिससे दलितों का शोषण कम हो और उन्हें कानून द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाए, जिससे वे भी मुख्य धारा में शामिल हो सकें। इसका अच्छा परिणाम भी सामने आया है लेकिन फिर भी स्थिति वैसी नहीं है जैसी होनी चाहिए। आज भी ऐसी बातें निकलकर सामने आती हैं जब किसी दलित लड़के को उसकी शादी में घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया जाता है, सवर्णों के मुहल्ले से किसी दलित को उसकी बारात नहीं ले जाने दिया जाता है, और यहां तक कि दलितों के साथ मारपीट भी की जाती है, चाहे वह दलित महिला भी क्यों ना हो।

सवर्णों का मत है कि एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है लेकिन उन्हें यह भी ध्यान देना चाहिए कि आज भारत में ज़्यादातर कानूनों का ही दुरुपयोग हो रहा है। हमें और इस देश की व्यवस्था दोनों को यह सोचना चाहिए कि अगर इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है, तब किसी दूसरे तरीके से इसके दुरुपयोग को रोका भी जा सकता है।

एससी-एसटी कानून इसलिए भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि ऐसे मामलों में अक्सर पीड़ित के द्वारा अपराधी के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई जाती है। कई मौकों पर शिकायत यदि दर्ज हो भी जाती है, तब हम सभी पुलिस के रवैये के बारे में जानते हैं। अगर हम कुछ आंकड़ो पर गौर करें तो पता चलता है कि

इन आंकड़ों पर गौर करने के बाद अब हमें यह सोचने की ज़रूरत है कि इतने कठोर कानून के होते हुए भी दलितों के खिलाफ जब इतने अत्याचार हो रहे हैं, तब कानून में नरमी लाले के बाद क्या होगा? हमें एक बार इस सवाल पर विचार करना ही चाहिए।

सवर्णों की ओर से कहा जा रहा है कि सामाजिक नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की आवश्यक्ता है। हां, आरक्षण अगर आर्थिक आधार पर करना हो, तब सबसे पहले यह व्यवस्था बनानी चाहिए कि भारत से आधिकारिक तौर पर जाति-व्यवस्था को बिल्कुल खत्म कर दिया जाए तथा सभी जातियों को मिलाकर एक ही जाति बना दी जाए। जिससे दलितों को जाति के नाम पर हर जगह ज़लील ना होना पड़े। लेकिन यह आसन नहीं है क्योंकि जातीय, सामंतवादी एवं गैर-बराबरी की सोच हमारे समाज में कूट-कूट कर भरी है।

अगर ऐसा नहीं होता है तब आरक्षण को खत्म करने के बारे में सोचा भी नहीं जाना चाहिए तथा इसका आधार सामाजिक ही रहना चाहिए ना कि आर्थिक।

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