महाभारत का एक अहम हिस्सा हिंदू समाज मे #पूजनीय घोषित है जिसे भगवतगीता कहा जाता है ।
इस धार्मिक पुस्तक में हिंसा ,कर्मकांड और वर्ण व्यवस्था के समर्थन में ईश्वरीय भय दिखाकर #शूद्र_और_स्त्री को मूर्ख बनाये रखने का सारा सामान है ।
महाभारत के युद्ध का मुख्य कारण द्रौपदी को माना जाता है ,जिसने दुर्योधन को ‘अंधे का अंधा’ कहा ,जिसके चलते उस ने अपना बदला लेने के लिए द्रौपदी को दरबार मे #नंगा करना चाहा ।
औरत का यह अपमान उस कालखण्ड का सबसे नीच कृत्य था ।
अचरज की बात यह कि इस बात पर एक भी श्लोक भगवतगीता में कहीं नही ।
अगर वक्ता या लेखक युद्ध भूमि में अर्जुन को सिर्फ ये याद दिला देते कि
‘अबे गधे ! जिन्हें तुम अपना समझ रहे हो ,ये वही लोग हैं जिन्होंने तुम्हारी बीवी को भरी सभा मे नंगा किया था ,तो भी इतनी ही हिंसा होती ” और इस आख्यान में ईश्वरीय भय का #तड़का नही लगाना पड़ता ।
मगर साजिश ,भय कायम करके भविष्य की #लूट निश्चित करने की थी ।
हिंसा ,कर्मकांड , पाखण्ड के साथ साथ काश ! वो दो लाइन नारी आबरू पर भी समझाते ,ताकि उन्हें पढ़कर रेप ,छेड़छाड़ ,नंगा करने की प्रवृति भविष्य में कुछ हद तक कम हो पाए ।
आखिर मातृशक्ति को नंगा करने का प्रयास किसी युद्ध की #विभीषिका से कम नही है ।
लेकिन इस कुकृत्य को न केवल नजर अंदाज किया ,बल्कि इससे दो कदम आगे गीता में #स्त्री_विरोधी चेहरा दिखाते हुए समस्त नारी को #पापयोनि भी घोषित कर दिया ।
काश ! अठारह अध्याय में कही तो अपनी दो माताओं के ख्याल करते हुए #ममत्व_का_सम्मान किया होता ।
अपनी 16000 रानियों के लिए कोई दो प्यार के शब्द ,
या उनका शुक्रिया ,
कि बिना तलाक के भी वो इजाजत देती रही नई नई शादियों की …
अपनी प्रेयसी के लिए दो शब्द भी अठारह अध्यायों में कहीं भी नही !!!
क्या ये उनका नारी-विरोधी व्यक्तित्व नही है ????
इतनी बड़ी धार्मिक पुस्तक में स्त्री के हक ,अधिकार ,सोच,भावना ,सम्मान को कोई जगह नही ????
फिर क्यों ढोये जा रही हैं महिलाएं इस अन्यायपूर्ण पाखण्ड को ????
खुद के अस्तित्व को अपने हाथों मिटाती नारी शक्ति के इस आत्मघाती कदम को #धार्मिक_उपक्रम कहना ठगी है ।
धर्म के नाम पर हत्याओं पर तो खूब चर्चा होती रही हैं ,फिर
अपने आसपास ,अपने घर परिवार में हो रही
ये सामूहिक आत्महत्या हमें क्यों दिखाई नही देती ????
मेरी विनती है …..
हे मातृशक्ति !!!
मत करो अपने घर मे भागवत पाठ , कलश यात्रा ,व्रत ,जागरण आदि
ताकि द्रोणाचार्य के चेलों से लेकर दुःशासन तक समाज मे पैदा होने बन्द हो जाएं ।
जब तक गीता है ,
तुम कहीं गांधारी बनोगी ,कभी कुंती ,
कभी गंगा ,कभी माद्री ,
कभी द्रौपदी ,
कभी अम्बा ,अम्बिका ,अंबालिका ,
या फिर सत्यवती …..।
तुम्ही ने धर्म को पाल पोषकर बड़ा किया ,धर्म के रक्षक जने हैं इतने ताकतवर बनाये हैं कि वो धर्म युद्ध जीत सके । नारी जाति पर आधिपत्य जमा सके ,उन्हें बांधकर रख सके ,
और धर्म की जीत के #जश्न में रौंद डाले नारी अस्मिता को, जो हर पुरुष ने अपने हिसाब से छुपाकर रखी है इज्जत बनाकर तुम्हारे ही बदन में कहीं ,
और जिसकी तुम सिर्फ और सिर्फ पहरेदार मात्र हो ,अवैतनिक गुलाम की माफ़िक ।
अपने ही शरीर की मालिक नही तुम ….
इसमें अगर कुछ ऊँच नीच हो गयी तो
तुम्हारे सगे ,प्रिय और अपने स्वजन ही ,
तुम्हे आग लगा देंगे ,काट डालेंगे
या फिर जिंदा जमींदोज कर देंगे ।क्योंकि यही तो उनका धर्म कहता है ,#शास्त्रानुसार यही धर्म है नारी का भी ,
यही कर्त्तव्य है ,जिसे ताउम्र तुम ढोती रही हो , अपने व्रत ,प्रार्थना ,वेदनाओं में माँगा है तुमने किसी अनजान शक्ति से ।
इतिहास गवाह है ,धर्म की हार का क्षोभ भी नारी-अत्याचार से निकलता है तथा
धर्म की जीत का झंडा भी नारी की मांसल देह पर ही गाड़ा जाता है ,
क्योंकि शास्त्रों में इंगित स्त्रीधर्म के चलते एक नारी ने खुद इजाजत दी है दूसरी नारी को नोचने की ,नंगा करने की ।
#सुरेन्द्र_अम्बेडकर