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क्या हमारी आने वाली नस्लें भी पाकिस्तान से नफरत ही करेंगी?

क्या हमारी आने वाली नस्लें भी पाकिस्तान से उसी तरह नफरत करेंगी, जिस तरह से मौजूदा वक्त में हम लोगों को नफरत करने के लिए कहा जाता है?

अंग्रेज़ों भारत छोड़ो, साइमन गो बैक, भारत देश हमारा है। इन सभी नारों की गूंज अब फिज़ाओं में कहीं सुनाई नहीं दे रही थी। साल 1947 का वो वक्त जब आनन-फानन में ब्रिटेन से सिरिल रैडक्लिफ को बुलाया गया और उनसे कहा गया कि आपको भारत को दो हिस्सों में तकसीम करना है। जल्द-से-जल्द मुल्क का नक्शा देखें और बंटवारे की रेखा खींच दें।

सिरिल रैडक्लिफ

रैडक्लिफ ना तो इससे पहले कभी भारत आए थे और ना ही उन्हें यहां की संस्कृति के बारे में कुछ समझ थी। भारत के दो सबसे ताकतवर और सबसे ज़्यादा आबादी वाले राज्यों यानी पंजाब और बंगाल का बंटवारा किया जाना था। उनका काम महज़ बंटबारे की लाइन को खींचना था।

सिरिल ने भी वक्त ज़ाया ना करते हुए अपना काम करना शुरू किया और लाइन खींचकर भारत को दो हिस्सों में तकसीम कर दिया। जो सरहदें उन्होंने तय की, उससे लाखों हिंदुओं, सिखों और मुस्लिमों का गुस्सा भड़क उठा।

17वीं सदी की शुरुआत में भारत आए अंग्रेज़ अब मुल्क से जा चुके थे। 14 अगस्त, 1947 को भारत के जिस्म से जुदा होकर एक नया मुल्क बना ‘पाकिस्तान’। यह मुल्क पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से मिलकर बना और इन दोनों हिस्सों के बीच 1500 किलोमीटर में फैला भारतीय क्षेत्र था।

जिन्ना के ख्वाब की ताबीर पूरी हुई और नए मुल्क के पहले गवर्नर जनरल बने, जिन्हें पाकिस्तान की पहली राजधानी कराची में लॉर्ड माउंटबेटन ने शपथ दिलाई। लॉर्ड माउंटबेटन ने जब जवाहरलाल नेहरू को भारत के पहले वज़ीर-ए-आज़म  के रूप में शपथ दिलाई तो लाखों लोगों ने खूब जश्न मनाया।

15 अगस्त 1947 की सुबह का सूरज उग चुका था। सरहद की एक तरफ लाखों मुस्लिम और दूसरी तरफ हिंदू और सिख, अचानक अपनी ही ज़मीन पर पराये हो गए थे।

ज़रा तसव्वुर करें कि क्या बीती होगी उन लोगों के दिलों पर। दोनों देशों की नई सरकारें घबराहट और खूनी संघर्ष से सने इस विशाल पलायन को संभालने की स्थिति में नहीं थीं, नतीजतन लाखों के घर उजड़ गए और लाखों लोग मारे गए।

हर तरफ मार-काट जारी थी, कहीं कोई किसी की आबरू को तार-तार कर रहा था तो कहीं घर लूटे और जलाए जा रहे थे। कुछ लोग भूख से तड़पकर दम तोड़ रहे थे तो बच्चे अपनी-अपनी मांओ की आगोश में दम तोड़ रहे थे। हर तरफ से ‘वा वैला’ की एक सदा फिज़ाओं में गूंज रही थी। इंसान जानवर से भी बत्तर बन चुका था। हिंदू-मुस्लिम के नाम पर जो कत्लेआम किए गए उसका तसव्वुर भी आपके लिए मुहाल होगा।

फोटो साभार- Wikipedia

इतिहासकार मानते हैं कि 5 लाख से ज़्यादा लोगों को मौत की आगोश में सुला दिया गया। कई हज़ार महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ। 1 करोड़ से ज़्यादा लोग पल भर में शरणार्थी बन गए। बंटवारे में मिले ये ज़ख्म कुछ ऐसे थे जिनका भरना बहुत मुश्किल था। सियासत ने धर्म का सहारा लेकर भारत के सीने पर बंटवारे का ऐसा कुंद खंजर चलाया कि 70 साल बीत जाने के बाद भी उस ज़ख्म से खून आज भी रिस रहा है। बात यहीं पर मुकम्मल नहीं होती है। अब शुरू हुआ  सरहदों पर जंगों का दौर।

अक्टूबर 1947 में भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर पहली जंग छिड़ गई।  जिसके बाद 1965 ऑपरेशन जिब्राल्टर हुआ, 1971 में एक नया देश ‘बांग्लादेश’ बना। 1999 में भारत-पाकिस्तान का तीसरा युद्ध हुआ जिसे कारगिल युद्ध के नाम से जाना जाता है।

दिसंबर 2013 में इंटरनैशनल फिजिशंस फॉर द प्रिवेंशन ऑफ न्यूक्लियर वॉर (आईपीपीएनडब्ल्यू) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह कहा गया,

यदि भारत-पाकिस्तान में एक और युद्ध हुआ और उसमें परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया गया तो शायद धरती पर मानव सभ्यता का ही अंत हो जाएगा।

रिपोर्ट के मुताबिक, परमाणु युद्ध वैश्विक पर्यावरण और कृषि उत्पादन पर इतना बुरा प्रभाव डालेगा कि दुनिया की एक-चौथाई जनसंख्या यानी दो अरब से ज़्यादा लोगों की मौत हो सकती है। ऐसा भी हो सकता है कि भारत और पाकिस्तान के साथ ही चीन की भी पूरी की पूरी मानवजाति खत्म हो जाए।

70 बरस बीत चुके हैं लेकिन दोनों मुल्को के बीच आज भी सरहद पर आए दिन खूनी खेल जारी रहता है। सियासत ने धर्म के नाम पर नफरत का ऐसा चिराग जलाया है, जो ठंडा ही नहीं होता है। दोनों मुल्कों की आवाम एक दूसरे से दिल मिलाना चाहती है। नफरत की इस चिराग को ठंडा करना चाहती है लेकिन कुछ लोग अपनी सियासत के चलते, नफरत की चिराग में हिंदू-मुस्लिम का तेल डालकर इंसानियत को आग लगाने में आज भी लगे हुए हैं।

मेरा दोनों मुमालिक के लोगों से सवाल है, “क्या हिंदुस्तान और पाकिस्तान दुनिया में एक दोस्ती की मिसाल नहीं बन सकते हैं”। इस दौर में ज़िन्दगी बेहद मुख्तसर सी होती जा रही है। इंसानियत का वजूद खतरे में दिखता है मुझे। एक बड़े युद्ध की ओर दुनिया जाती दिखायी देती है। क्यों ना दोनों देश दोस्ती की ऐसी मिसाल कायम करें कि आने वाली हमारी नस्लें हमें एक बेहतर इंसान समझे।

इतिहास गवाह है कि नफरत और जंग से नुकसान के सिवाय किसी को कुछ नहीं हासिल हुआ है। बात को उर्दू के मशहूर शायर बशीर बद्र साहब का एक शेर कहकर खत्म करना चाहूंगा।

सात संदूकों में भर कर दफ्न कर दो नफरतें

आज इंसां को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत

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नोट- लेखक नेहाल रिज़वी hallaboltoday.com के सब-एडिटर हैं।

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