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भारतीय मुसलमानों को सबसे पहले इन्हें तलाक देने की ज़रूरत है

मुझे लगता है कि इस देश के मुसलमानों को एक तलाक मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को दे देनी चाहिए। एक तलाक, खुद को मुसलमानों का नुमाइंदा समझने वाले उन नेताओं को भी दे देनी चाहिए जो सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए रहनुमा बनने का ढोंग करते हैं और एक तलाक उन मौलानाओं को भी जो टीवी स्क्रीन पर बैठकर उलजुलूल बातें और हरकते करते हैं।

मुसलमानों को लेकर जो मूलभूत मुद्दे हैं उन पर सवाल ना उठाकर अपने वोट बैंक की पॉलिटिक्स के लिए या फिर अपनी नाक के लिए गलत का भी समर्थन करते हैं और कभी-कभी हद दर्जें तक कर देते हैं। अगर ऐसे ही कौम के आप सिपहसालार हो तो सच्चर कमेटी की सिफारिशें लागू करवाने की मांग क्यों नहीं करते? अभी सवाल है ट्रिपल तलाक का कि आखिर क्या वजह है कि ट्रिपल तलाक और हलाला जैसे घिनौने और नाजायज़ काम का समर्थन करने के लिए लोग इकठ्ठा हो जाते हैं।

मैं एक लॉ स्टूडेंट हूं और एक मुस्लिम भी। हमें जब मुस्लिम लॉ पढ़ाया गया तो उसमें ट्रिपल तलाक का नाम था। तलाक ए बिद्दत और बिद्दत का मतलब इस्लाम में होता है कि जो चीज़ शरीअत में नहीं है और बाद में समाज के लोगों द्वारा अपनी सुविधा के लिए शुरू की गई हो।

इस्लाम के अनुसार तलाक, अल्लाह को (मान्य) चीज़ों में सबसे नापसंदीदा चीज़ है यानी कि तलाक बहुत खराब है। तलाक का कॉन्सेप्ट इस्लाम में इसलिए है क्योंकि कोई भी मर्द या औरत जिनका की साथ रहना अगर मुश्किल हो गया है और अब कोई बात नहीं बन पा रही है तो फिर तलाक दी जा सकती है। यह एक तरह की सहूलियत थी जो आज से 1400 साल पहले दी गयी ताकि आप ज़बरदस्ती किसी रिश्ते में ना जकड़े रहें जो आपको मंज़ूर ना हो।

वो तलाक भी कुरआन में बताये गए तरीके के अनुसार हो। कुरआन का तरीका यह है कि हो सके जहां तक मतलब अंतिम अवसर तक पति पत्नी साथ रहने की कोशिश करें और फिर भी ना बने तो-

1. एक तलाक दे और फिर एक महीने का समय निकलने दे, उस एक महीने में पत्नी, पति के घर में ही रहेगी परंतु वो हमबिस्तर नहीं होंगे। इस एक महीने के दौरान उसके परिवार वाले और रिश्तेदार उन्हें समझाने की कोशिश करेंगे अगर वो मान जाते हैं और एक दूसरे के साथ रहने को राज़ी हो जाते हैं तब वो तलाक खत्म हो जाएगी यानि वो शादी बनी रहेगी।

2. अगर एक महीने में भी कोई सुलह नहीं होती है तो एक महीने बाद फिर से एक तलाक दी जाती है, उन्हीं सारी शर्तों के साथ जो पहले महीने में थी।

3. फिर अंतिम बार एक बार और तलाक दी जाती है यानि कि एक-एक महीने के अंतराल में तीन बार तलाक देना ही तलाक ए सुन्नत है। सुन्नत का मतलब जो पैगम्बर मुहम्मद साहब ने बताया वो तरीका।

हलाला क्या है?

तलाक को और ज़्यादा मुश्किल बनाने के लिए इसमें यह भी कहा गया कि आप तब तक फिर से साथ नहीं रह सकते जब तक पत्नी की अपनी इच्छा से किसी शादी करने के बाद उसके पति की मृत्यु हो जाये या किन्हीं सामान्य कारणों से उससे भी तलाक हो जाये। फिर वो पुराने पति से पुनः निकाह कर सकती है और इस प्रक्रिया को हलाला कहते हैं। यह सब इत्तेफाक से होना चाहिए और इस प्रक्रिया के माध्यम से यह बताया गया था कि आप बिना सोचे समझे अगर तलाक का फैसला कर लेते हैं तो आप दोनों का वापस साथ आना कितना मुश्किल है।

आजकल कुछ धर्म के ठेकेदारों ने हलाला को एक धर्म में गली की तरह बना दिया है, जिसके तहत ट्रिपल तलाक दे दी जाती है और फिर तलाक देने वाले पति को अपनी गलती का एहसास होता है कि मुझसे गलती हुई है। मैं अपनी पत्नी के साथ फिर से रहना चाहता हूं, तब पत्नी को किसी और मर्द से शादी पूरी करवाई जाती है (शादी पूरी होने का मतलब जिस्मानी तौर पर) और शर्म की बात यह है कि यह सब एक साजिश की तरह होता है। इसमें सबकुछ तय होता है यहां तक कि कुछ लोगों ने तो इसे धंधा तक बना लिया है, जिसमें वो किसी और की तलाक शुदा पत्नी से शादी कर एक रात साथ गुज़ारने के लिए पैसे ले लेते हैं और अगले दिन तलाक दे देते हैं, ताकि पुराने पति-पत्नी फिर से शादी कर सकें। मेरा दीन ऐसा तो नहीं था, यह क्या रास्ता बनाया है आपने एक मर्द की गलती गुस्से या मज़ाक की सज़ा उसकी पत्नी को और वो भी किसी और के साथ एक रात गुज़ारना आखिर क्यों?

आज से 1400 साल पहले आए इस्लाम में महिलाओं के पहली बार अधिकार और मुकाम तय किये गए। बेटियों को जिस ज़माने में लोग ज़िन्दा दफना दिया करते थे उस वक्त में बेटियों को रेहमत का दर्ज़ा दिया गया। पत्नी के अधिकारों को सुनिश्चित किया गया। विधवाओं से विवाह किया गया। बेटियों की शादी से पहले इजाज़त लेनी शुरू की गई। खुद पैगम्बर मुहम्मद साहब ने अपनी बेटी फातिमा से पूछकर अली के साथ निकाह करवाया था लेकिन आज कुछ लोगों की नीच राजनीति के कारण इस्लाम की छवि महिलाओं का शोषण और उत्पीड़न और महिलाओं का दमन करने वाले धर्म के रूप में बनती जा रही है, जिसके ज़िम्मेदार वही लोग हैं जो इसके संरक्षण का दावा करते हैं।

तलाक उनकी सुविधा के लिए बनाया गया ताकि वो ज़ुल्म करने वाले पति को ना सहन करें और तलाक दे सकें और हलाला एक बाध्यता बनाई कि आप गुस्से में आकर तलाक दे देंगे तो आपकी शादी होना बहुत मुश्किल हो जाएगी। यहां तक कि महिलाओं को भी कुरआन में तलाक देने का अधिकार दिया गया है जिसे ‘खुला’ बोलते हैं।

यह पितृसत्तात्मक समाज जिसे महिलाओं को अधिकार देना पसंद नहीं है और खुद का आधिपत्य और दबदबा बनाये रखना चाहता है वो इस तरह के तलाक के तरीकों को लोगों के बीच प्रचारित नहीं करता है। कुछ लोग जिन्हें ना तो धर्म से मतलब है ना इंसानियत से मतलब है और ना अपनी बहन बेटियों के अधिकारों से मतलब है और वो लोग पूरी की पूरी कौम को बरगलाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

आखिर क्यों उस चीज़ को बचाने में लगे हैं जो धार्मिक ही नहीं है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा था कि जो धार्मिक नहीं है वो संवैधानिक कैसे हो सकता है? मुझे ना जाने क्यों अभी पीके फिल्म का पीके किरदार याद आ रहा है, जो कहता था कि यह रॉन्ग नंबर है। बिलकुल यह रॉन्ग नंबर है आपके नेता मसीहा रहनुमा जो भी हैं, अगर आपसे इस नाम पर वोट मांगने आते हैं तो उन्हें कहियेगा कि यह रॉन्ग नंबर है। आप हमारे बच्चों की शिक्षा की बात कीजिये, आप हमारे स्वास्थ्य की बात कीजिये, आप हमारे जीवन स्तर को ऊपर उठाने की बात कीजिये, आप सच्चर कमेटी को लागू करवाने की बात कीजिये। इ रॉन्ग नंबर वाली बात मत कीजिये।

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