सुन रहा हूं कि फिर किसी शहर में दंगा हो रहा है,
मेरा हिंदुस्तान सरेराह आज फिर नंगा हो रहा है
गुज़रता हूं जिस भी चौराहे से, तो मंज़र अजीब है
लगता है मेरे मुल्क को, महज़ दर्द ही नसीब है।
यहां कभी किसी की बेटी की इज्ज़त लूट जाती है
कभी किसी मासूम की सांसे ज़िस्म से रूठ जाती है।
कभी किसी घर का इकलौता चिराग छिन जाता है
कभी किसी औरत का उससे सुहाग छिन जाता है।
सुबह स्कूल गया बच्चा, शाम को अनाथ हो जाता है
ये वाकया कभी श्याम तो कभी सलीम के साथ हो जाता है।
मेरे भारत देश में खून सस्ता और पानी महंगा हो रहा है
मेरा हिंदुस्तान आज फिर सरेराह नंगा हो रहा है।
अब चारों तरफ महज़ धर्म के झंडे लहराते हैं लोग
अपने हिंदुस्तानी होने का धर्म भूल जाते हैं लोग।
ईश्वर अल्लाह एक ही है ये सत्य शायद भूल गए हैं
अश्फाक-बिस्मिल की दोस्ती भी शायद भूल गए हैं।
क्या इसी आज़ादी की खातिर, फांसी पर झूले थे कुछ लोग
अपने देश की खातिर अपना धर्म परिवार सब भूले थे कुछ लोग।
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई को आपस में चैन से रहने दो
मत करो इस मुल्क में दंगा, इसे सुकून से रहने दो।
इन हरकतों से घायल, आज मेरा तिरंगा रो रहा है,
सुन रहा हूं फिर किसी शहर में दंगा हो रहा है,
और मेरा हिंदुस्तान सरेराह आज फिर नंगा हो रहा है।