रेप कल्चर में हमारा समाजीकरण लगभग सभी एजेंसियों से इसी तरह होता है कि हम लड़कियों के लिए हरियाली, दर्शन, जुगाड़, सेटिंग, वेकैंसी जैसे शब्द इस्तेमाल करते है, और बस शब्द ही नहीं है हम उन्हें यही समझते भी है।
किसी लड़की को देखकर तुरन्त आंखों ही आंखों में उसके कपड़ो के अंदर अंदर तक झांक लेते है, उसकी पूरी तस्वीर स्कैन करते है और दिमाग मे उसकी नग्न छवि बना लेते है यही नहीं उसके साथ बलात्कार करने की संभावना तक तलाश लेते है।
रेप कल्चर में हमारा समाजीकरण जिस तरीके से होता है की बाते हम कहते सुनते है, लिखते हैं, जो गाने सुनते है फ़िल्म देखते है, इस कल्चर में जो भी सीखते करते है वो सब कुछ हमारे अंदर एक पोटेंशियल रेपिस्ट पैदा कर रहा होता है।
तो मेरे दोस्त तुम्हे लड़कियां इसीलिए हरियाली, माल, वेकैंसी, जुगाड़, सेटिंग लगती है क्योंकि इस रेप कल्चर में तुम जानवर बन रहे हो। अगर इंसान बनते तो लड़कियां भी तुम्हें इंसान लगती, जानवर हो इसीलिए हरियाली लग रही है।
दोस्त अपने समाजीकरण की जांच करो, अपने अंदर विकसित होते रेपिस्ट का मुकाबला करो। जो चीज़े सीखी जा सकती है उन्हें भुलाया भी जा सकता है और नई चीज भी सीखी जा सकती है तो कोशिश करो इंसान बनने की और समझो लड़कियां कोई वेकैंसी नहीं हैं।
कोशिश करके देखो थोड़ा समय लगता है मगर यकीन मानो इंसान होना एक अच्छा अनुभव है और तब शायद ये दुनिया भी थोड़ी बेहतर हो जाये।