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पैसों की तंगी और प्यार में धोखे ने अमृता को ना चाहते हुए भी बना दिया सेक्स वर्कर

Sex Worker

Financial and Family problem led this girl to become a sex worker

मीटिंग के लिए पहले से ही मैं एक घंटा लेट हो गया था और इस बीच फोन पर लगातार हमारे आने का वक्त पूछा जा रहा था। यह एहसास भी दिलाया जा रहा था कि सभी लोग वक्त पर पहुंच गए हैं लेकिन उन्हें सूरत-बड़ौदा हाइवे पर लगने वाले जाम के बारे में क्या ही बताया जाए। मैं किसी तरह से साढ़े तीन घंटे बाद बड़ौदा पहुंचा, जहां मुझे सेक्स वर्कर्स के लिए काम करने वाले एक संगठन के साथियों से बात करनी थी। ऑफिस की पहली मंज़िल की अंधेरी सीढ़ियों से होते हुए हम उन साथियों के पास पहुंचे। हमने थोड़ी हंसी-मज़ाक के बाद उस स्टोरी पर  बातचीत शुरू की जिसका हमें लंबे वक्त से इंतज़ार था।

एक औरत के सेक्स वर्कर बनने के पीछे कई वजह हो सकती हैं। ज़बरदस्ती और ट्रैफिकिंग से इतर देखें तो, बदनाम कहे जाने वाले इस धंधे को आखिर एक औरत क्यों चुन लेती हैं।

एक सेक्स वर्कर की अनगिनत बहरूपिया पहचानों के बीच एक पहचान सच्ची है कि वो एक औरत है। तो चलिए झांकते हैं एक लड़की की ज़िन्दगी में जो अब सेक्स वर्कर या समाज के नज़र में ‘धंधेवाली’ भी बन चुकी है।

बातचीत की कड़ी जब शुरू हुई तब परिचय के दौरान सिर्फ उसका सरनेम ही समझ आया। उम्र से कोई 23-24 साल की लगी तो अचानक मन में ख्याल आया कि आखिर ये लड़की सेक्स वर्क में आई क्यों होगी! बहरहाल, ढाई घंटे की मीटिंग के बाद मन में आने वाले हज़ारों सवालों को एक उम्मीद सी दिखी जब मैंने पूछा कि अपनी कहानी सुनाओगी? चेहरे पर संकोच जैसी झलक बिखेरते हुए और फिर आत्मविश्वास के साथ कहा कि कहानी थोड़ी लंबी है सर, सुनने के लिए वक्त है न आपके पास? सवाल मानो चुनौती सी लगी, बहरहाल मैंने वो चुनौती स्वीकार कर ली।

ज़िन्दगी का सार एक घंटे में निचोड़कर रख दिया उस लड़की ने। उसके बारे में बात करते हुए मुझे ‘लड़की’ शब्द से संबोधित करना सही नहीं लग रहा था, इसलिए इस कहानी के लिए उसे अमृता नाम दे दिया। ये भी कितनी अजीब बात है कि एक सेक्स वर्कर के लिए अंधेरे कमरों में समाज के जिस्म से जो छिछला प्यार उमड़ता है, उजालों में वही समाज उसका नाम जानने तक से भी इंकार कर देता है।

बहरहाल, एक घंटे की चर्चा में नमी से लेकर, गुस्सा, प्यार, जुनून सब कुछ अमृता के दिल से आंखो पर उतर आया। ये कहानी सिर्फ एक लड़की के सेक्स वर्कर बनने भर की नहीं है बल्कि जाति, धर्म, संस्कार और रिश्तों में आए बदलावों की भी है।

अमृता के पिता ट्रक ड्राइवर थे और मां एक गृहणी, जो खुद कभी स्कूल नहीं गईं और शायद इसी वजह से शिक्षा के मुल्यों को नहीं समझ पाई। अमृता और उसकी बड़ी बहन ने भी स्कूल का मुंह नहीं देखा, बस देखा तो स्कूल जाते गली मोहल्ले के बच्चों को। वे बताती हैं कि जन्म प्रमाण पत्र ना होने की वजह से अमृता और उसकी  बहन स्कूल में एडमिशन नहीं करा पाई। गरीबी की मार भी  बड़ी वजह थी जिसके कारण दोनों बहने शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह गईं।

अमृता की मां शादीशुदा होने के साथ-साथ अपनी दोनों बेटियों को पाल भर रही थीं। मोहल्ले में खेलने के अलावा अमृता का ज़्यादा वक्त मां के साथ घर के कामकाज़ करने में गुजर जा रहा था। घर पर पिता की आमद बस कभी कभार की बात थी। वो दौर अमृता की जिंदगी में कभी नहीं आया जिसमें पिता का दुलार, मां का स्नेह और परिवार का साथ मिल पाता।

जब अमृता को निज़ाम से हुआ प्यार

अमृता जब 12 साल की थीं तब उन्हें निज़ाम से इश्क हो गया, जिसे वो प्यार से सोनू बुलाया करती थीं। 3 महीने का इश्क मानों अमृता की आंखों में आज भी तैर रहा हो। हमारी एक घंटे की बातचीत में या यूं कहें कि अभी तक की ज़िन्दगी में निज़ाम ही है जिसे अमृता ने बहुत प्यार किया। निज़ाम ने एक हद तक अमृता का साथ दिया और जब दोनों के प्यार के चर्चे माता-पिता के कानों तक पहुंची तब वहीं हुआ जो लगभग औसत प्यार करने वालों के साथ होता है। अमृता को इस कदर मारा गया कि शरीर के कई हिस्से सूज गए। गुस्से में आकर अमृता को उसकी मौसी के घर भेज दिया गया।

उम्र में बड़े लड़के से करा दी गई शादी

अमृता अपनी मौसी के घर हालातों के साथ समझौता करना सीख ही रही थी कि कुछ दिनों बाद एक फोन आता है और दूसरी तरफ की आवाज़ अमृता की बहन की होती है, जिसमें वो मां की हालत बहुत ज़्यादा खराब होने की सूचना देती है। अमृता जैसे ही घर लौटती है तो सबकुछ ठीक पाती है, लेकिन उस फोन में छुपी हकीकत का अंदाज़ा लगा पाती उससे पहले ही उसे अगली सुबह जबरन मंदिर ले जाकर 7 साल बड़े आदमी से शादी करा दी जाती है। लाख विरोध के बाद भी अमृता को अपना घर और परिवार बदलने के लिए मज़बूर होना पड़ता है।

बात करते हुए अमृता की आंखे कभी पूरी खुलती है तो कभी पलकें झुकाकर वो अपनी किस्मत को कोसती सी नज़र आती है। खैर, मुझसे बात करते हुए अमृता अपने पति पर हक जताते हुए कहने लगती है कि शादी के कुछ ही महीनों में एक बेहतर भविष्य की उम्मीद के लिए पति की हर जायज़ और नाजायज़ ज़रूरतें पूरी करती रही। कुछ ही महीनें में उसका सोया हुआ मर्द जाग गया और उसने मेरी बेइंतहां पिटाई शुरू कर दी। आलम यह हुआ कि छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी मैं अपने पति के सामने हाथ फैलाने से डरने लगी। ये सब होते-होते शादी को डेढ़ साल पूरा हो चला था और अब मैं गर्भवती हो चुकी थी। पिटाई झेलते-झेलते जब मेरा शरीर जवाब दे चुका था तब मैं अपने मायके लौट आई।

इसी बीच पेट में दर्द हुआ तो अमृता डॉक्टर के पास गईं। चेकअप के बाद यह बात सामने आई कि वो गर्भवती है। यूं तो अमृता नाबालिग थी , चेहरे और काया से कमसिन लगने की वजह से भी डॉक्टर ने रिस्क ना लेते हुए पुलिस को सूचना दे दी। मौके पर पहुंची पुलिस अमृता के माता- पिता को बिना कुछ पूछे थाने ले गई और नाबालिग की शादी कराने के ज़ुर्म में बंद कर दिया।

हालातों की मारी अमृता किसी नई मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती थी, वो जानती थी कि चाहे कितना ही जुल्म करें लेकिन माता-पिता ही सहारा हैं। अमृता भी पीछे-पीछे थाने पहुंच गईं और पुलिस को ये समझाने में कामयाब रहीं कि वो घर से भाग गई थी और अपनी मर्जी से शादी की, इसमें उसके माता-पिता का कोई दोष नहीं। ज़िन्दगी की सच्चाई और मजबूरियों को कई बार कानून के दायरों से बाहर रखने की जरूरत होती है, पुलिस ने भी यहीं समझा और दोनों को छोड़ दिया। गर्भपात संभव नहींं था, इसलिए अमृता ने बच्चे को जन्म देने का फैसला किया।

हमारी बातचीत के दौरान अमृता का मोबाइल कई बार बजा लेकिन अपनी जिंदगी की दास्तान सुनाने में वो इतनी मशरूफ हो चली थी कि उसे अपने माथे पर चमकते पसीने को हटाने का भी वक्त नहीं था। पीछे से रुक-रुककर महिलाओं का शोर आता तो वो मुंह सिकोरकर उस तरफ देखती और फिर से अपनी बात सुनाने लग जाती।

खैर, अमृता को मां के घर आए कुछ महीने बीत चुके थे, पति मायके में आकर धमका चुका था। इससे कहीं ज़्यादा माता-पिता भी लानत देते थे। अमृता के हालात बदतर होते गए। अनपढ़, शादीशुदा, गर्भवती और बेसहारा अमृता सारे सितम सहते हुए भी सिर्फ इस वजह से मायके में रह रही थी कि शायद बच्चा होने के बाद हालात बेहतर हो पाएं।

अमृता ने बेटे को जन्म दिया, जैसे ही ये बात अमृता ने मुझे कही, उसके चेहरे पर सुकून था। सुकून शायद इस वजह से कि बेटी होती तो स्थितियां ज़्यादा पेचीदा हो जातीं। हालातों का संतुलन बनाने के लिए अमृता अपने बेटे को शायद सहारे के तौर पर देख रही होगी, जिसका ज़िक्र उसने सामान्य बातों के दौरान किया। इस बीच एक और घटना अमृता के जीवन में घटी जिसमें उसकी बड़ी बहन को उसके पति ने तलाक दे दिया। अब वो भी अपने दो बच्चों के साथ उसी घर में आकर रहने लगी।

दूध के नाम पर बेटे को आखिर कब तक पानी में पाऊडर घोलकर पिलाती। छाती से दूध भी तब उतरता है जब मुंह से कुछ खाया जाता है। लिहाज़ा अमृता ने 7 रूपये प्रतिदिन के तनख्वाह पर चिक्की (गुड़ या चीनी की पट्टी) बनाने की कंपनी में काम करना शुरू कर दिया।

जब फिर से मिला निज़ाम का साथ

अमृता की ज़िन्दगी में मुहब्बत का पैगाम लिए एक बार फिर निज़ाम आया। कहते हैं ना पुराने इश्क से बेहतर कोई कंधा नहीं होता, जहां आप रो सकते हो, नए-पुराने दिनों के फर्क को जानकर और समझकर बयान कर सकते हो और कुछ अनकही जरूरतों को पूरा कर सकते हो। निज़ाम ने अमृता की हर हकीकत को अपने ज़िन्दगी की सच्चाई मान ली और उसे किराए पर घर दिलाया और उसके बेटे को अपना मानते हुए उसे शादी का प्रपोज़ल दिया।

लेकिन शायद अमृता की जिंदगी उसे कहीं और ही ले जाना चाहती थी। पिता वैसे भी कई दिनों में घर आते थे, लेकिन काल को उनका ये आना भी पसंद नहीं था। अब उनका आना हमेशा के लिए ठहर चुका था। अमृता निज़ाम में अपने बेटे के पिता को खोजने लगी। पेट पर बच्चे को खिलाना हो या अमृता की हर जरूरत को पहले ही भांप कर पूरा करना हो, सब निज़ाम को पता था।

अमृता और निज़ाम के बीच विलेन बनकर आया यह शख्स

निज़ाम और अमृता की नज़दीकियां बढ़े अभी कुछ ही वक्त हुए थे, लेकिन उनके रिश्ते के चमकते चांद पर ग्रहण की छाया मंडराने लग गई। जिस घर में अमृता अपनी मां और बेटे के साथ किराए पर रहती थी, उस मकान के मालिक के बेटे को अमृता और निज़ाम की नज़दीकियां पसंद नहीं थी। वो गाहे-बगाहे अमृता और निज़ाम के बीच दीवारें खड़ी करने के मौके ढूंढता रहता था। एक दिन उसे कामयाबी मिल गई। हुआ कुछ यूं कि मकान मालिक के लड़के ने अपनी बहन की बीमारी का बहाना बनाकर अमृता से निवेदन किया कि वो अस्पताल में एक रात उसके पास रूक जाए, बात बीमारी की थी तो अमृता ने हां कर दी।

अमृता मकान मालिक के बेटे के दोस्त के साथ अस्पताल की तरफ निकल पड़ी और अचानक देखती हैं कि रास्ते में निज़ाम और मकान मालिक का बेटा उन्हें मिल जाता हैं। निज़ाम आगबबूला होकर सवाल करता है कि रात को कहां जा रहे हो? अमृता कुछ कहतीं कि इससे पहले मकान मालिक के लड़के का दोस्त निज़ाम को बताता है कि अमृता को एक रात के 2000 रूपये दिए हैं। पूरी रात वो साथ बिताने वाले हैं

निज़ाम बिना कारण जाने अमृता को सड़क पर ही मारने लग जाता है और उसे बहुत बुरा भला कहकर छोड़ जाता है। अमृता को हकीकत समझने में देर नहीं लगी कि ये पूरा प्रपंच मकान मालिक के लड़के द्वारा रचा गया है, जिसमें बहन की बीमारी से लेकर निज़ाम को झूठी कहानी बताने की बात तक एक सोची समझी साजिश के तहत किया गया काम था। अमृता, निज़ाम को खोना नहीं चाहती थी इसलिए उसने अपनी सफाई देने की भरसक कोशिश की, लेकिन शायद निज़ाम को अमृता से ज़्यादा मकान मालिक के लड़के की बात पर यकीन हो गया था।

अमृता की जिंदगी में बसंत का दौर बीत चुका था, जो पतझड़ मुहाने पर खड़ा था अब उसने जिंदगी में दखल अंदाज़ी शुरू कर दी थी। हर सुबह काम पर निकलते हुए मकान मालिक के लड़के की शक्ल देखना एक बड़ी घिनौनी मजबूरी बन गई थी और अब ये मजबूरियां ही अमृता की ज़िन्दगी में होने वाले बदलावों की कहानी लिखने वाली थी। निज़ाम का जो थोड़ा बहुत सहारा था, वो भी जा चुका था। चाहे वो बच्चे को अपने पेट पर खिलाने का हो या अमृता के परिवार को आर्थिक मदद का। इस बीच मकान मालिक के लड़के की फब्तियां इतनी बढ़ती जा रही थी कि अमृता को अब खीझ सी होने लगी थी।

ऐसे बन गईं अमृता सेक्स वर्कर

मैंने सवाल किया कि आखिर एक बच्चे की मां, जो शायद इस काम के बारे में रत्ती भर भी ना जानती होगी, अभी उम्र से भी नाबालिग होगी, कैसे इस धंधे में आ गई? जवाब में अमृता ने बताया कि चिक्की बनाने के दौरान कुछ महिलाओं से दोस्ती हो गई थी जो ज़्यादा पैसे कमाने की बात अक्सर कहा करती थीं, लेकिन उस वक्त शायद अमृता को ज़्यादा अधिक पैसों की जरूरत नहीं थी। मैंने पूछा कि क्या तुम ज़्यादा पैसे कमाने के लिए यौनकार्य में आई? उसने जवाब ना मे देने की जगह सीधा जवाब दिया, ‘गुस्से में’। बचपन में माता पिता की पिटाई, शादी, हिंसा, कम उम्र में बच्चा, प्यार में धोखा, बाल मजदूरी। अमृता को लगा कि सबकुछ तो दिखा दिया जिंदगी ने अब जिंदगी को अपने तरीके से जीना है। धंधेवाली के तौर पर बदनामी तो मिल ही चुकी, अब धंधेवाली बनकर ही दिखाना है।

अमृता के सेक्स वर्क में आने का कारण बेशक कई लोगों को हजम ना हो, लेकिन अमृता उन सभी वजहों के विरोध में खड़ी होती नज़र आती है जिन्हें सेक्स वर्क में आने की वजहें मानी जाता है। मसलन ज़बरदस्ती, ट्रैफिकिंग, मजबूरी, बेचना खरीदना इत्यादि। बहरहाल, कहानी यही खत्म नहीं हुई। अमृता बताती हैं कि वो शुरूआत में बहुत एहतियात के साथ अपनी सहेलियों के बताए ठिकानों पर जाती जो कि घर से काफी दूर होते थे और काम निपटा कर वापस लौट आती। हफ्ते भर में दो से तीन लोगों के साथ सेक्सवर्क करने भर से ही घर का गुजारा चल रहा था। बेटे का दूध, मां की दवाई और खुद के पहनने के लिए कपड़े वगैरह के लिए अब तरसना नहीं पड़ता था।

मुझे लगा अमृता की कहानी यहां खत्म हो गई, मगर उसकी ज़िन्दगी में एक पहलू और भी थी जिसे बताए बिना वो नहीं रह सकती थी। टेबल पर ना जाने कौन चाय रखकर चला गया था अब वो इस कदर ठंडी हो चुकी थी कि चाय के ऊपर पानी सरीखा कुछ दिखने लगा था, लिहाज़ा निवेदन के बाद दो चाय टेबल पर आ गई। जिस तरह अमृता और मेरी बातचीत में ठहराव आया उसी तरह अमृता अब उस दौर में थीं जहां से उसकी जिंदगी को कुछ ऐसे साथी मिलने वाले थे जो अभी इस वक्त मेरे सामने बैठे थे। चाय की चुस्कियों में बातें फिर से शुरू हुई।

अमृता की उम्र तकरीबन 17 से थोड़ी ही ज़्यादा थी लेकिन कमज़ोर शरीर की वजह से अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि वो नाबालिग ही है। अमृता के संबंध सेक्सवर्क करने वाली कुछ अन्य महिलाओं से भी होते चले गए हालांकि उनमें से कुछ ऐसे भी थे जिनसे सिर्फ फोन पर नाता होता था। क्लाइंट अमृता के पैसे उसे देता और कमीशन उसे जिसने काम दिलाया है।

इस बीच अमृता की मुलाकात रिया नाम की महिला से होती है। अमृता ने बताया कि ना जाने क्यों, रिया से पहली मुलाकात में ही एक जुड़ाव हो गया। रिया ने अमृता से पहली मुलाकात में सेक्सवर्क के बारे में कुछ नहीं पूछा, जिसकी वजह से अमृता को आश्चर्य तो हुआ ही, मगर खुशी भी हुई। अपने से तकरीबन 15 साल से ज़्यादा उम्र की रिया के साथ कुछ ही दिनों में अमृता की दोस्ती हो गई। अब अमृता का ज़्यादा वक्त रिया के साथ उसके घर पर गुज़रने लगा। रिया के परिवार के हर सदस्य के साथ अमृता खूब घुल मिल गई। अमृता ने अपनी पूरी कहानी रिया के परिवार को सुनाई, जिसकी वजह से उसे हमदर्दी के साथ प्यार भी मिला।

अमृता अब अपने बच्चे को भी रिया के घर लाने लगी। अमृता ने काम तो बंद नहीं किया मगर वो हैरान थी कि रिया की तरफ से अभी तक उसे कुछ काम क्यों नहीं मिला क्योंकि उसने रिया के बारे मे जो सुना था उससे रिया एकदम अलग थी। अमृता इस तरह ज़्यादा दिमाग नहीं लगाना चाहती थी इसलिए उसने रिया से कह ही दिया ‘दीदी कुछ काम हो तो दिला देना’। रिया को समझने में जरा भी देर नहीं लगी कि अमृता किस काम की बात कर रही है। रिया ने अमृता से कहा कि ‘बच्चे को ढंग से पाल, काम करने के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है।‘ अमृता के लिए ये सुनना थोड़ा अजीब था लेकिन उसे और उसके बच्चे को इतना प्यार मिल रहा था कि वो उस घर को छोड़कर सिर्फ रात को ही जाती थी। कभी कभार वो ‘कुछ काम है’ का बहाना बनाकर रिया के घर से जाया करती, उसी बीच वो सेक्सवर्क करके वापस लौट आती। रिया इस बात को जानती थी लेकिन उसने उसे रोका नहीं, लेकिन खुद भी काम नहीं दिया।

रिया का घर, अमृता का परमानेंट ठिकाना सरीखा हो चला था। वो रात को अपने घर अपनी मां के साथ सोने भर जाती थी। रिया ने कई बार कहा कि मां को भी उसके घर ले आ, मगर अमृता को ना जाने कौन सा संकोच रोक रहा था। रिया के पास अमृता को आते-आते तकरीबन 1 साल बीत चुका था। अब अमृता ने रिया को बार बार बोलना शुरू किया कि वो उसे काम दिलाए, रिया ने अपनी तरफ से अमृता को पहला काम दिलाया जिसमें उसे एक जवान लड़के के साथ वक्त बिताना था। रिया ने काम को बड़े दायरे में रखा, हफ्ते भर में 2-3 काम अमृता को रिया की तरफ से मिलने लगे। पैसे भी अच्छे थे, इसलिए अब अमृता ने बाहर काम करना छोड़ दिया। कुछ महीनों बाद रिया की बात का असर हुआ और अमृता मकान मालिक के बेटे की फब्तियों से हमेशा के लिए आजाद हो गई। उसने रिया के घर के पास ही एक मकान किराए पर ले लिया।

अमृता को फिर मिला प्यार में धोखा

मैंने अमृता से पूछा क्या फिर तुम्हें प्यार नहीं हुआ? जवाब आया, हां अबकी बार फौजी से प्यार हुआ। दरअसल फौजी, जिसका नाम आशीष था, उम्र में अमृता से कोई 3-4 साल बड़ा होगा। उनकी पहली मुलाकात काम के सिलसिले में ही हुई थी जिसके बाद आशीष सीधे अमृता को कॉल करके बुलाने लगा और इसी तरह अमृता की नज़दीकियां आशीष से बढ़ने लगी। यह बात जब रिया तक पहुंची तो उसने आशीष को बुलाकर अमृता से शादी करने के लिए कहा। आशीष ने भरोसा दिलाया कि वो अमृता से शादी करके उसके बच्चे को भी अपनाएगा। अमृता ने अपनी जिंदगी की सारी कहानी आशीष को बता दी थी, जिसका ज़िक्र उसने रिया से बातचीत के दौरान भी किया। ना जाने क्यों, रिया को आशीष की बात पर यकीन नहीं हुआ, जिसके लिए उसने अमृता को आगाह करने की कोशिश की तो, अमृता को ठीक नहीं लगा।

अमृता कहती हैं कि सर शायद मैंने रिया दीदी को समझा होता तो एक बार फिर से धोखा नहीं खाती। दरअसल आशीष की पोस्टिंग अमृता के शहर में ही थी जिसकी वजह से दोनों में गहरी नज़दीकी हो चली थी। अमृता को अब आशीष के पैसों से नहीं, उसके प्यार से संतुष्टि मिलने लगी थी। आशीष के कहने पर भी उसने काम तो नहीं छोड़ा, मगर कम जरूर कर दिया, जिसके लिए रिया और अमृता के बीच फासले बढ़ते गए। अमृता जब भी आशीष से शादी के लिए कहती तो वो कहता कि छुट्टियों में जाकर अपने घर पर बात करेगा। लेकिन ऐसा कहते कहते 4 महीने से ज़्यादा बीत चुके थे।

इस बीच आशीष को अपने घर जाने का मौका मिला, जहां से हालातों में बहुत गहरा बदलाव आया। जहां शहर में साथ ना रहने पर भी पूरे समय दोनों फोन पर बात किया करते वहीं आशीष के घर जाने पर दिन में दो बार, एक बार, दो दिन में एक बार, हफ्ते में दो बार जैसे हालात हो गए। आशीष ने अमृता को फोन करने को मना किया इसलिए अमृता को सिर्फ आशीष के कॉल का ही आसरा होता। गाहे बगाहे जब भी फोन पर बात होती तो अमृता के सवालों में शादी की बात अहम होती। आशीष हमेशा कहता, सही वक्त आने पर बात करेगा।

एक महीना, फोन पर कम होती बातचीत और इंतज़ार में बीत गया। एक दिन नशे में सराबोर शाम ने अमृता को हिम्मत दी और अमृता ने आशीष को फोन कर दिया। दूसरी तरफ से किसी महिला की आवाज़ सुनकर अमृता हिचकिचाई नहीं हालांकि आवाज़ जरा मंदी हो गई। मुझे आशीष से बात करनी है, ज़रा बात करा दीजिए-अमृता ने फोन पर कहा। दूसरी तरफ से आवाज़ आई वो तो अभी खेत गए हैं, आप कौन बोल रही हैं। मैं अमृता हूं और आप? मैं उनकी पत्नी बोल रही हूं। अमृता को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ, फिर पूछ बैठी कौन? मैं उनकी पत्नी बोल रही हूं, आपको क्या काम है उनसे-महिला ने जवाब के साथ सवाल भी पूछा लिया। अमृता ने फोन बिना काम बताए काट दिया।

कितने ही सवालों ने जैसे अमृता को घेर लिया। आखिर कब हुई होगी आशीष की शादी। क्या वो पहले से ही शादीशुदा था। क्या उसने मुझे धोखा दिया। क्या रिया दीदी ठीक कह रही थी। यह सोचते सोचते आधी रात हो चुकी थी। अमृता अपने बेटे को कस के पकड़ कर सोने की नाकाम कोशिश करने लगी, आंख लगी ही थी कि फोन बज गया। फोन की स्क्रीन पर नाम नहीं था, क्योंकि नंबर और नाम अमृता के दिलों दिमाग पर लिखा था। अमृता ने फोन उठाकर सिर्फ इतना कहा कि ये वक्त तुम्हारी बीवी का है, कल सुबह मेरा वक्त होगा। सुबह बात होगी, बार-बार फोन मत करना। सुबह 10 बजे मैं कॉल करूंगी। अब अमृता की आंखो में अंगड़ाई लेती नींद, अपने पूरे होशो हवास में आ चुकी थी। रात कब सुबह के इंतज़ार में बीत गई पता ही नहीं चला।

अगले दिन अमृता और आशीष की खूब बहस हुई। उसने मान लिया कि वो पहले से शादीशुदा था। 15 मिनट की अमृता और आशीष की वो शुरूआती मुलाकात, 5 महीने से गुजरती हुई दो घंटे की उस फोन वाली बातचीत पर गाली गलौच के साथ खत्म हुई।

एक ठहरी हुई खामोशी के बाद, अमृता की नमी से भरी आंखो ने मेरी तरफ देखा। चलिए चलते हैं स्वातिबेन के घर, आपको लेट हो रहा होगा। मेरी नोटबुक चुपचाप, खुद पर लिखी जाने वाली आखिरी लाइन के इंतज़ार में मेरे बैग में समा गई। टेबल पर रखा मोबाइल का रिकार्डर पौज़ वाले मोड में मेरी जेब में चला गया। सीढियों से उतरते हुए खामोशी पीछे-पीछे चलने लगी और सीधे बाहर निकलकर टूटी। मैं स्कूटी लेकर आती हूं, आप थोड़ा आगे चलिए-अमृता ने कहा। तुम स्कूटी तो चला लोगी ना, कहीं गिर तो नहीं जाओगी, मैंने थोड़ा मज़ाकिया लहज़े में कहा। नहीं सर, अब नहीं गिरुंगी। अमृता के एक जवाब में जैसे जिंदगी का सबक लिखा था।

स्कूटी अपनी रफ्तार में बढ़ रही थी, अमृता वडोदरा शहर के बारे में जितना जानती थी मुझे बताती चल रही थी। 20 मिनट में स्वातिबेन का घर आ चुका था। उतरते हुए मैंने पूछा, स्कूटी किसने सिखाई तुम्हें। जवाब आया, फौजी ने।

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