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एडल्ट्री लॉ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या होगा सामाजिक प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए इसे निरस्त कर दिया है। इसका मतलब यह है कि अब कोई भी शादीशुदा महिला या पुरुष अपने जीवनसाथी को छोड़कर अगर किसी और महिला या पुरुष के साथ संबंध बनाता है तो यह अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। साथ ही इसके लिए कोई कानूनी सज़ा का प्रावधान नहीं होगा।

आइए पहले हम इस सेक्शन को समझें।

1.  इसके तहत किसी शादीशुदा महिला से उसके पति की अनुमति के बगैर संबंध बनाने को अपराध करार दिया गया था। इसके तहत संबंधित पुरुष को पांच साल की कैद या जु़र्माना अथवा दोनों की सज़ा का प्रावधान था।

3. इस कानून ने किसी महिला को अपने पति द्वारा किसी और के साथ संबंध बनाने पर उसके खिलाफ शिकायत दर्ज करने की इजाज़त नहीं दी थी।

4. अगर यही काम महिला करती है यानी वो अपने पति की जानकरी के बिना किसी गैर मर्द से संबंध स्थापित करती है तो भी उस महिला को कोई कानूनी सज़ा नहीं मिलेगी। मतलब अगर पति को अपनी पत्नी के विवाहेतर संबंधों का पता चलता है तो वह अपनी पत्नी के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं दर्ज करा सकता है। अगर वो चाहे तो अपनी पत्नी के प्रेमी के खिलाफ केस दर्ज करा सकता है। इसके साथ ही अगर पत्नी किसी तरह पति को राज़ी कर ले और विवाहेतर संबंधों के लिए अनुमति ले ले तो पत्नी के प्रेमी को भी किसी कानूनी कार्यवाही का सामना नहीं करना पड़ेगा।

जैसा कि नज़र आ रहा है कि विवाहेतर संबंधों के लिए सिर्फ पुरुष को सज़ा मिल सकती है जबकि स्त्री को कोई कानूनी कार्यवाही नहीं झेलनी होगी। ये साफ तौर पर समानता के अधिकार का उल्लंघन है। औरत फ्री और आदमी को जेल ये ठीक नहीं हो सकता।

दूसरी बात, जैसा कि कहा गया है कि अगर पत्नी अपने पति से अनुमति लेकर विवाहेतर संबंध स्थापित करे तो उसके प्रेमी को कोई सज़ा नहीं होगी। यहां नज़र आता है कि औरत एक तरह से अपने पति की दासी और गुलाम है। मतलब ये कि औरत एक ऑब्जेक्ट है जिसका मालिकाना हक आदमी के पास है और वह जैसा चाहे उसका इस्तेमाल कर सकता है। औरत की इच्छा और आज़ादी मर्द की मुट्ठी में है। ये बात किसी भी इंसान की गरिमा के खिलाफ है।

अब फैसले की बुनियाद और उसके प्रभाव-

1. अगर कोई पुरुष और स्त्री शादी के बाद किसी गैर इंसान से संबंध स्थापित करते हैं तो यह उनका निजी चुनाव है। एक इंसान किसके साथ सेक्स करेगा, किसके साथ जीवन बिताएगा इसका अधिकार हर व्यक्ति को होना चाहिए। अब अगर कोई शादी के बाद अपना चुनाव करता है तो यह क्रिमिनल ऑफेंस नहीं हो सकता है। यह एक सिविल मैटर है जिसका फैसला पति-पत्नी को करना चाहिए। अगर वो चाहते हैं अलग होना तो वह तलाक ले सकते हैं। अगर कोई इंसान शादीशुदा होकर भी गैर स्त्री या पुरुष से संबंध स्थापित करता है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि या तो वह अपने मौजूदा जीवनसाथी से खुश नहीं है या वह कामुकता के चलते कहीं और जा रहा है।

2. अगर वह अपने जीवनसाथी के साथ खुश नहीं है तो उसे बातचीत के ज़रिए संबंधों को बेहतर करने का प्रयास करना चाहिए। इसके बाद भी बात नहीं बनती तो तलाक का रास्ता खुला हुआ है। अब इसको लेकर जेल भेजना किसी समस्या का निवारण नहीं है।

3. ठीक इसी तरह कोई अगर कामुकता के कारण किसी और इंसान की ओर रुख करता है तो यहां भी संवाद की ज़रूरत है। सीधे 5 साल की जेल तो संबंधों को तलाक की तरफ ले जाएगी।

4. आज हम जिस समाज में रहते हैं, जिस खुलेपन की वकालत करते हैं, वहां यह सेक्शन गैर ज़रूरी ही नज़र आता है। अगर किसी इंसान की शादी हो गयी और वह अपने जीवनसाथी से खुश नहीं है और इसके कारण उसने किसी और से प्रेम पाने की कोशिश की तो यह गुनाह नहीं हो सकता है। अगर पति-पत्नी संतुष्ट नहीं है तो फिर ऐसे रिश्तों को ढोने से क्या फायदा। कई बार देखा गया है कि इसी असंतुष्टि के चलते पति और पत्नी आत्महत्या कर लेते हैं, कई बार पति अपनी पत्नी का मर्डर भी कर देता है।

अब हर पक्ष के कुछ दूसरे पहलू भी हैं-

1. इस फैसले के बाद तलाक के मामलों में वृद्धि आएगी। इसको लेकर मैं यही कहूंगा कि एक जीवन है और उसे प्रेम के साथ जीने का अधिकार सबको है। अगर कुछ मनमुटाव और कामुकता के कारण कोई दूसरी ओर रुख करता है तो उसे एक मौका दिया जाना चाहिए। कोई फिर भी साथ नहीं रहना चाहता तो रिश्ते को ढोते रहना बेवकूफी है। अगर ऐसे रिश्ते की नियति तलाक है तो तलाक ही सही।

2. अगर तलाक के मसले बढ़ने लगे तो शादी की संस्था पर गहरी चोट लगनी शुरू हो जाएगी। मेरा ये मानना है कि कोई भी संस्था जो खोखली होने लगती है उसका खत्म होकर राख होना स्वाभाविक है। अगर शादी की संस्था हमारे समाज में खोखली हो चुकी है, उसमें प्रेम नहीं रहा, वह एक सेक्स पाने का ज़रिया बन चुकी है तो उसे खत्म ही हो जाना चाहिए और वह खत्म ही हो जाएगी।

3. इस तरह से तलाक का असर विवाहित जोड़ों की संतानों पर पड़ेगा। इस विषय में मैं यही कहूंगा कि पति-पत्नी छिपकर किसी गैर इन्सान के साथ जिस्मानी ताल्लुक इसलिए रखते हैं ताकि उनके बच्चों का भविष्य ना खराब हो। मतलब अगर उनके बच्चे ना हों और उनके भविष्य का सवाल ना हों तो पति-पत्नी विवाहित जीवन से असंतुष्ट होने पर फ्री सेक्स से परहेज़ ना करें। बच्चे ही वो कड़ी हैं जो पति-पत्नी को जोड़े रखती है और वह छिपकर अपनी सेक्स की कामना पूरी करते हैं।

इसका मतलब है कि यहां भी झूठ और मजबूरी का खेल खेला जा रहा है। झूठ और मजबूरी का खेल खत्म होकर रहता है, इसलिए यह समाज, सरकार, कोर्ट को देखना होगा कि किस तरह से ऐसे मामलों में विवाहित जोड़ों की संतानों पर इस फैसले का बुरा असर ना पड़े या कम-से-कम पड़े।

आप सभी और मैं आज कल बिना बातों की गहराई जाने बस किसी नतीजे पर पहुंच जाते हैं। इस नतीजे की बुनियाद हमारे पूर्वाग्रह होते हैं जो हम बचपन से लेकर चले आ रहे होते हैं, इसलिए मैंने यह लेख लिखा कि आप जान सकें कि धारा 497 क्या है, यह क्यों खत्म की गई है और कोर्ट के फैसले का क्या असर होगा।

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