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हमारी इंसानियत मर चुकी है, संवेदनाएं बची ही नहीं – खुद का इंसान होना भूल चुके है ?

कोई सड़क पर तड़प रहा है,.. किसी मजबूर को कोई ज़ालिम पीट रहा है,.. कोई मदद के लिए चिल्ला रहा है,.. और कोई महिला सड़क पर अचेत पड़ी है उसका मासूम बच्चा माँ माँ कहता हु भूख से बिलख रहा है,.. लेकिन इन सब की सहायता करना तो दूर हम अपने में ही मस्त अपना स्मार्ट फोन निकाल कर इन मजबूरों की वीडियो निकालते है, और फिर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर बड़े बड़े ज्ञानियों की तरह सिस्टम और जाने किस किस को कोसते है फिर शुरू होता है लाइक और कमेन्ट बाजी का दौर जिसमे आपकी सब वाहवाही करते है कोई अंगूठा उंचा करता है कोई ग्रेट जॉब कहता है तो कोई क्या ,.. लेकिन असल में आपने कितना घटिया और नीच काम किया है यह खुद कि आत्मा से नहीं पूछते। क्या हो जाता अगर उस मजबूर की मदद कर लेते बिना किसी सोशल मीडिया पर शेयर किये हुए एक इंसानियत के नाते एक इंसान होने का फ़र्ज़ निभा देते। लेकिन नहीं हमारी इंसानियत तो जैसे मर चुकी है और यह द्रश्य अब आम हो चुके है।

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