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10 मोहर्रम को कर्बला में ऐसा क्या हुआ?

10 मोहर्रम को कर्बला में ऐसा क्या हुआ?

कि मुसलमानों का एक बड़ा तबका सवा दो महीने तक खुशियाँ नही मनाता..!
कर्बला एक ऐसी शख्सियत(हज़रत इमाम हुसैन अ.स.) की कुर्बानियों की कहानी है,जिसके लिए मुसलमानों का प्रत्येक तबका यह मानता है कि हुसैन ने अपना सर कटाकर इस्लाम को बचा लिया. इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम को बचाने के लिए एक से बढ़कर एक कुर्बानी दी. इन्ही कुर्बानियों में उनके 18 साल के जवान बेटे(अली अकबर) की कुर्बानी भी शामिल है और सबसे छोटे बेटे(अली असगर) जिनकी उम्र केवल 6 माह थी उनकी भी कुर्बानी शामिल है. कर्बला में जिस हुसैन ने इतनी कुर्बानियां दी यह वही हुसैन है जो पैगंबर के नाती(नवासे) है, इसी हुसैन के लिए मोहम्मद साहब ने कहा था कि ‘हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से हूँ’ लेकिन फिर भी यजीद नाम के शख्स ने उनको क़त्ल करवा दिया. इसकी वजह यह थी कि यज़ीद चाहता था कि मेरी हर बात सही मानी जाये. यजीद के सामने बहुत से लोगों ने बैयत(अधीनता) की लेकिन हुसैन ने यजीद के बैयत कबूल नही की.
हुसैन कौन थे? मुसलमानों के चौथे खलीफ़ा और शिया मुस्लिम के पहले इमाम हज़रत अली के बेटे है हुसैन. पैगंबर साहब की बेटी फ़ातिमा ज़हरा स.अ. हुसैन की माँ है और पैगंबर मोहम्मद साहब हुसैन के नाना है. हुसैन को शिया मुस्लिम अपना तीसरा इमाम मानते है. इमाम हुसैन का जन्म इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से 3 शाबान सन 4हिजरी(8जनवरी सन 625) को सऊदी अरब के शहर मदीना में हुआ.
पैगंबर मोहम्मद साहब ने अल्लाह को पहचनवाया, लोगों को इस बात का यक़ीन दिलाया के अल्लाह एक है और वही इबादत के क़ाबिल है. उन्होंने इस्लाम फैलाना शुरू किया तब लगभग अरब के सभी क़बीलों ने मोहम्मद साहब की बात को मानकर इस्लाम धर्म अपनाया था. मोहम्मद साहब के साथ जुड़े क़बीलों की ताक़त देखकर उस वक़्त उनके दुश्मन भी उनसे आ मिले लेकिन दुश्मनी दिल में बनाये रखी.
यह दुश्मनी मोहम्मद साहब के दुनिया से चले जाने के बाद से ही सामने आने लगी. इसका पहला हमला उनकी बेटी फ़ातिमा ज़हरा पर किया गया,जब उनके घर को आग लगा दी और जलता हुआ दरवाज़ा फ़ातिमा पर गिरा और इसी में लगी चोट की वजह से 28अगस्त सन 632 में फ़ातिमा भी इस दुनिया से रुखसत हो गई. उस वक़्त हुसैन की उम्र लगभग 7साल थी.
फ़ातिमा के बाद उनके शोहर और मोहम्मद साहब के दामाद अली को भी नमाज़ अदा करते वक़्त दुश्मनों ने मस्जिद में क़त्ल कर दिया. यह दिन था 19वी रमज़ान का के जब इब्ने मुल्ज़िम नाम के शख्स ने तलवार से अली पर उस वक़्त हमला किया, जब वह नमाज़ पढ़ रहे थे. इस हमले में अली को ऐसा ज़ख्म मिला के 21 वी रमज़ान को अली दुनिया से सिधार गये. शिया मुस्लिम के मुताबिक अली के बाद उनके बड़े बेटे और दूसरे इमाम, इमाम हसन को भी उसी दुश्मनी में जो मोहम्मद साहब के दौर से चली आ रही थी उसी में ज़हर देकर मार दिया गया.
इन सबके बाद दुश्मन हुसैन पर दबाव बनाने लगा कि वह उस वक़्त के जबरदस्ती बने ख़लीफा यज़ीद(जो खुदको मुसलमान कहता था और रिसालत का मुनकिर था) का हर हुक्म माने.यज़ीद दबाव बनाने लगा कि हुसैन उसकी बैयत(अधीनता) कबूल करें लेकिन हुसैन जों कि इमाम अली और इमाम हसन के बाद तीसरे इमाम थे उन्होंने उसकी बैयत से इनकार किया. इसलिए ही यज़ीद चाहता था कि हुसैन अगर उसके साथ आ जायेंगे तो पूरा इस्लाम उसकी मुट्ठी में होगा और फिर जो भी यज़ीद चाहे वो आसानी से कर सकेगा परन्तु हुसैन ने उसकी अधीनता स्वीकारने से इंकार कर दिया.
जिसकी वजह से यज़ीद ने हुसैन पर पाबंदियां लगानी शुरू की और 4 मई 680ई. को इमाम हुसैन को उनके वतन मदीना से निकाल दिया गया अब मदीना से हुसैन मक्का जाकर हज़ करना चाहते थे,तभी उन्हें पता चला के दुश्मन हाजियों के भेस में उनको क़त्ल करने के लिए आया हुआ है. हुसैन नही चाहते थे कि क़ाबा जैसे पवित्र स्थान पर खून ख़राबा हो इसलिए वो वहा से बिना हज़ किये ही चले गये. इमाम हुसैन नही चाहते थे के यज़ीद मेरा चुपके से क़त्ल करे क्योकि इमाम अली और इमाम हसन को यज़ीद के पूर्वजो ने बिना किसी बड़े और साफ़ सबूत के क़त्ल किया और लोगों में साफ़ सुथरे चरित्र के रहे.
मुस्लिम इतिहासकारों के मुताबिक हुसैन यह चाहते थे कि उनको क़त्ल किया जाये तो दुश्मन पूरी तरह बे-नक़ाब हो सके अर्थात किसने इमाम हुसैन को क़त्ल किया यह पूरी दुनिया देखे-समझे और सही कौन है और ग़लत कौन है इसको दुनिया पहचान सके. इसी लिए हुसैन एक ऐसी जगह और सहरा(मैदान) में पहुंचे जिसे कर्बला के नाम से जाना जाता है. कर्बला आज इराक का प्रमुख शहर है जो कि इराक कि राजधानी बग़दाद से 120किमी दूर है. कर्बला शिया मुस्लिम के लिए मक्का और मदीना के बाद दूसरी सबसे ख़ास जगह है क्योकि यह वही जगह है जहाँ इमाम हुसैन की कब्र है. दुनियाभर से शिया मुस्लिम ही नही बल्कि बाकी मुसलमान भी इस जगह जाते है.
अब तक जो भी बताया यह केवल यह समझाने के लिए के हुसैन कौन थे और क्या थे ताकि आगे समझने में आसानी हो जाये के आखिर कर्बला में ऐसा क्या हुआ और क्यों हुआ? जिसकी वजह से आज भी शिया मुस्लिम सवा दो महीने तक ख़ुशी नही मानते और इमाम हुसैन पर हुए ज़ुल्मों को याद करके मातम करते और रोते है.
मुसलमानों के मुताबिक हुसैन कर्बला अपना एक छोटा सा लश्कर लेकर पहुंचे थे, उनके काफिले में औरतें और बच्चे भी थे.हुसैन इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक 2 मोहर्रम को कर्बला पहुंचे थे. 7 मोहर्रम को उनके लिए यजीद ने पानी बंद कर दिया था और वो हर हाल में उनसे अपनी अधीनता स्वीकार कराना चाहता था. हुसैन किसी भी तरह उसकी बात मानने को राज़ी नहीं थे और इसलिए ही यज़ीद ने तय कर लिया कि अब हुसैन का कत्ल करना ही हल है. तब हुसैन ने यह समझ लिया के मेरी वजह से मेरा कोई साथी कत्ल न हो. इसलिए 9 मोहर्रम की रात इमाम हुसैन ने रोशनी बुझा दी और अपने सभी साथियों से कहा कि मैं किसी के साथियो को अपने साथियो से ज़्यादा वफादार और बेहतर नहीं समझता. कल के दिन हमारा दुश्मनों से मुकाबला है. उधर लाखों की तादाद वाली फ़ौज है, तीर हैं,तलवार हैं और जंग के सभी हथियार हैं. उनसे मुकाबला मतलब जान का बचना बहुत ही मुश्किल है. मैं तुम सब को बखुशी इजाज़त देता हूं कि तुम यहां से चले जाओ, मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं होगी, अंधेरा इसलिए कर दिया है कभी तुम्हारी जाने की हिम्मत न हो. यह लोग सिर्फ मेरे खून के प्यासे हैं. यजीद की फ़ौज उसे कुछ नहीं कहेगी, जो मेरा साथ छोड़ के जाना चाहेगा. कुछ देर बाद रोशनी फिर से रोशन कर दी गई लेकिन एक भी साथी इमाम हुसैन का साथ छोड़ के नहीं गया.
इसके बाद सुबह हुई और सारा दिन छिपने से पहले तक हुसैन की तरफ से 72 शहीद हो गए. इन 72 में हुसैन के अलावा उनके छह माह के बेटे अली असगर, 18 साल के अली अकबर और 7 साल के उनके भतीजे कासिम (हसन के बेटे) भी शामिल थे. इनके अलावा शहीद होने वालों में उनके दोस्त और रिश्तेदार भी शामिल रहे. हुसैन का मकसद था, खुद मिट जाएं लेकिन वो इस्लाम जिंदा रहे जिसको उनके नाना मोहम्मद साहब लेकर आए.

अली असगर की शहादत को बड़े ही दर्दनाक तरीके से बताया जाता है. जब हुसैन के परिवार पर खाना पानी बंद कर दिया गया और यजीद ने दरिया पर फ़ौज का पहरा बैठा दिया, तो हुसैन के खेमों (जो कर्बला के जंगल में ठहरने के लिए टेंट लगाए गए थे) से प्यास, हाय प्यास…! की आवाजें गूंजती थीं. इसी प्यास की वजह से हुसैन के छह महीने का बेटा अली असगर बेहोश हो गया क्योंकि उनकी मां का दूध भी खुश्क हो चुका था. हुसैन ने अली असगर को अपनी गोद में लिया और मैदान में उस तरफ गए, जहां यज़ीदी फ़ौज का दरिया पर पहरा था.
हुसैन ने फ़ौज से मुखातिब होकर कहा कि अगर तुम्हारी नजर में हुसैन गुनाहगार है तो इस मासूम ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है. इसको अगर दो बूंद पानी मिल जाए तो शायद इसकी जान बच जाए. उनकी इस फरियाद का फ़ौज पर कोई असर नहीं हुआ. बल्कि यजीद तो किसी भी हालत में हुसैन को अपने अधीन करना चाहता था. यजीद ने हूरर्मला नाम के शख्स को हुक्म दिया कि देखता क्या है? हुसैन के बच्चे को ख़त्म कर दे.हूरर्मला ने कमान को संभाला. तीन भाल(धार) का तीर कमान से चला और हुसैन की गोद में अली असगर की गर्दन पर लगा. छह महीने के बच्चे का वजूद ही क्या होता है. तीर गर्दन से पार होकर हुसैन के बाजू में लगा. बच्चा बाप की गोद में दम तोड़ गया.
71 शहीद हो जाने के बाद यजीद ने शिम्र नाम के शख्स से हुसैन की गर्दन को भी कटवा दिया. बताया जाता है कि जिस खंजर से इमाम हुसैन के सिर को जिस्म से जुदा किया, वो खंजर कुंद धार का था और यह सब उनकी बहन ज़ैनब के सामने हुआ. जब शिम्र ने उनकी गर्दन पर खंजर चलाया तो हुसैन का सिर सजदे में था, यानी नमाज़ की हालत में.इमाम हुसैन को कत्ल करने के बाद यज़ीद ने हुसैन के परिवार को बंदी बना लिया और दो साल तक बन्दी ही रखा.क़ैद में ही हुसैन की सबसे छोटी बेटी सकीना जिनकी उम्र 4साल थी,उनकी मृत्यु हो गई. इमाम हुसैन के बाद उनके बड़े बेटे ज़ैनुलआब्दीन जो कि कर्बला में बीमार हो गए थे उनको क़ैदी बनाकर हज़ारों मील पैदल चलाया गया और परिवार की औरतों की चारदार छीन कर हाथों में रस्सियां बांधी गयी.
ज़ैनुलआब्दीन ही इमाम हुसैन के बाद चौथे इमाम बने कर्बला में आखरी वक़्त में खुद इमाम हुसैन ने ज़ैनुलआब्दीन को अपने बाद क़ायनात का इमाम मुन्तख़ब(बनाया)किया.

इमाम हुसैन की शहादत का सभी मुस्लिम गम मनाते हैं, मगर शिया मुस्लिम मातम करके रोते भी हैं और सवा दो महीने किसी तरह की कोई भी खुशी नही मनाते।
हुसैन की शहादत को याद करते हुए मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने लिखा है,

क़त्ले हुसैन असल में मरगे यज़ीद है
इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद

मुसलमान मानते हैं कि हुसैन ने हर ज़ुल्म पर सब्र करके ज़माने को दिखाया कि किस तरह ज़ुल्म को हराया जाता है. हुसैन की मौत के बाद अली की बेटी ज़ैनब ने ही बाकी बचे लोगों को संभाला था, क्योंकि मर्दों में जो हुसैन के बेटे जैनुल आबेदीन जिंदा बचे थे. वो बेहद बीमार थे. यजीद ने सभी को अपना कैदी बनाकर जेल में डलवा दिया था. मुस्लिम मानते हैं कि यज़ीद ने अपनी सत्ता को कायम करने के लिए हुसैन पर ज़ुल्म किए. इन्हीं की याद में शिया मुस्लिम मोहर्रम में मातम करते हैं और अश्क बहाते हैं. हुसैन ने कहा था, ‘ज़िल्लत की जिंदगी से इज्ज़त की मौत बेहतर है’.

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