1861 में रानी विक्टोरिया के ज़माने में तब की मानसिकता के हिसाब से समलैंगिकों के लिए जो कानून बनाया गया था उसे संस्कृति और सभ्यता के नाम पर आज तक हमारा समाज ढोने को मजबूर था। सालों से धारा 377 के नाम पर धर्म, सभ्यता, संस्कार के स्वघोषित रक्षक LGBTQ+ समुदाय का शोषण करते रहें। हास्यासपद तो ये है कि रानी विक्टोरिया के देश में भी इसे गैरकानूनी मान लिया गया था लेकिन हम वक्त से पीछे पाखंड और ढोंग का चोला ओढ़े थे।
लेकिन आज 6 सितंबर 2018 वो तारीख है जिसे भारतीय इतिहास में मानवाधिकारों के लिए तारीख रहने तक याद किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों मुख्य न्यायाधिश दीपक मिश्रा, जस्टिस इंदु मल्होत्रा, डी वाइ चंद्रचूड़ और रोहिन्टन एफ नरीमन की संवैधानिक पीठ ने धारा 377 पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है।
वे 7 ऐतिहासिक बातें जो पीठ ने फैसला सुनाते हुए कही-
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