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कार्ल सेगन दुनिया को जैसे नीले धब्बे की तरह देखते थे वो हमारे लिए भी ज़रूरी है

अभी हाल ही में मैंने मशहूर अमेरिकी वैज्ञानिक कार्ल सेगन की किताब ‘कॉसमॉस’ पढ़ी। समाज में फैल रहे तनाव के बारे में सोचते हुए जब मैंने उनकी दिल को छू लेने वाली एक कहानी, या कह सकते हैं एक सन्दर्भ को पढ़ा और उसे उनकी ही आवाज़ में सुना, तब मुझे एहसास हुआ की उनकी ये कहानी हम सबके लिए आज बेहद महत्वपूर्ण है।

मैंने हिंदी में इसके बारे में लिखने का प्रयास किया। हालांकि यूट्यूब पर हिंदी और उर्दू में कार्ल सेगन का अनुवादित भाषण उपलब्ध है पर फिर भी ये ज़रूरी है कि उनकी सोच और भी लोगों तक पहुंचे, इसलिए मैं यहां उनके उस भाषण का अनुवाद पेश कर रहा हूं, जो उन्होंने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में 1994 में दिया था।

सन्दर्भ- वायेजर 1 नामक एक अंतरिक्षयान ने धरती की एक तस्वीर उस वक्त खींची जब वह यान हमारे सौर मंडल से बाहर की अपनी यात्रा पर निकलने वाला था। इस तस्वीर में पृथ्वी एक फीके बिंदु सी नज़र आती है जो सूर्य की रेखा में चमक रही है।

“आप देख रहे हैं वो फीका नीला धब्बा? वो हम हैं, वो हमारी धरती है, हमारा घर है। हर वो इंसान जिससे आप प्यार करते हैं या नफरत करते हैं, हर वो इंसान जिसे आप जानते हैं या याद करते हैं, हर इंसान जो कभी भी हुआ था, उसने इसी फीके धब्बे पर अपना जीवन गुज़ारा।

हमारी तमाम उपलब्धियां और त्रासदियां, तमाम धर्म और दर्शन, सारी आर्थिक नीतियां, हर एक शिकारी और शिकार, हर एक नायक और कायर, सभ्यता का हर एक रक्षक और भक्षक, हर एक राजा और सेवक, हर एक वैज्ञानिक और खोजी, हर एक प्रेमी युगल, हर एक माता और पिता, आशा से भरपूर हर एक बच्चा, नैतिक मूल्यों का हर एक शिक्षक, हर एक भ्रष्ट नेता, हर एक ‘सुपरस्टार’, हर एक सर्वोच्च अधिकारी, मानव इतिहास में होने वाले हर एक साधु और संत, हर किसी ने इसी धरती पर होश संभाला है, इस छोटी सी धरती पर जो आसमान में एक बिंदु की तरह लगती है।

हमारी दुनिया इस विराट ब्रह्मांड में महज़ एक छोटा सा मंच भर है। ज़रा सोचें उन अंतहीन क्रूरताओं के बारे में जो इस छोटी से बिंदु में रहने वाले कुछ लोगों ने इसी बिंदु पर कहीं और रहने वाले कुछ दूसरे लोगों पर की है, जिनके बीच कुछ खास अंतर समझ नहीं आता। उनकी नासमझी कितनी व्यापक है, वो कितने गुरूर में हैं, एक दूसरे को मारने के लिए, उनकी घृणा कितनी उत्कृष्ट है।

सोचें खून की उन नदियों के बारे में जो बहाई गईं ताकि कोई सम्राट या सेनापति अपने क्षणिक विजय और महिमा को प्राप्त कर सके और जीत सके इस बिंदु नूमा धरती के किसी एक छोटे से कोने को।

हमारा दिखावा, हमारी आप महत्ता, ये भ्रम की हम इस ब्रह्माण्ड में खास हैं, ये सारी गलतफहमियां तब निरर्थक लगती हैं, जब हम दूर आसमान से दिखने वाले इस छोटे से बिंदु को देखते हैं जो हमारा घर है। विराट ब्रह्माण्ड की काली चादर में हमारी धरती एक अणु की तरह है। हमारे इस अकेलेपन में, इस अंधकार में, कोई और नहीं है जो हमें खुद से बचाएगा।

धरती एकमात्र ऐसी जगह है जहां जीवन हो सकता है। कम-से-कम हमारी जानकारी के मुताबिक, हम कहीं और नहीं रह सकते। घूम सकते हैं पर बसना, शायद अभी नहीं। हमें पसंद हो या ना हो, वर्तमान में बस एक पृथ्वी ही हमारा ठिकाना है।

ये कहा जाता है कि खगोलशास्त्र विनम्रता और चरित्र निर्माण का दायक है। हमारी सीमित सोच और मूर्खता को प्रत्यक्ष करने वाली शायद यही एक तस्वीर है जो हमें एक नया दृष्टिकोण दे सकती है। मेरे लिए ये तस्वीर हम इंसानों को हमारी ज़िम्मेदारी से अवगत कराती है। एक दूसरे के साथ मिलकर रहना और एक सम्पूर्ण विकास की कोशिश करना। ये हमें याद दिलाती है कि धरती को सुरक्षित और सुन्दर बनाए रखना ही हमारी मानवीय सभ्यता का प्रतीक है, वो धरती जो एक अत्यंत सूक्ष्म धब्बे सी मालूम होती है, वो धरती जो हम सबकी जननी है।”

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