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“कॉंग्रेसी अहंकार और माया सम्मान के कारण अधर में ना रह जाए महागठबंधन”

बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने अजीत जोगी के साथ साझा प्रेस कॉंफ्रेंस में यह साफ कर दिया कि वह कॉंग्रेस पार्टी के साथ नहीं जाएंगी। आपको बता दें कि बीएसपी-कॉंग्रेस गठबंधन नहीं होने का सबसे ज़्यादा फायदा भाजपा को होगा, इस बात को जानते हुए भी कॉंग्रेस बीएसपी के साथ गठबंधन नहीं कर पाई। हम इसके पीछे के कारणों को टटोलने का प्रयास करेंगे।

बहुजन समाज पार्टी का जो कैडर वोट रहा है वह दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़े वर्गों के लोग रहे हैं। यही कारण है कि राष्ट्रीय दलों को बीएसपी प्रभावी राज्यों में गठबंधन करने में दिक्कते हैं। कॉंग्रेस यदि इन तीन राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीएसपी से गठबंधन करती तो भाजपा का सफाया इन तीनों राज्यों से लगभग निश्चित था लेकिन बीएसपी-कॉंग्रेस गठबंधन नहीं हो पाया।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बहुजन समाज पार्टी ने कॉंग्रेस से छत्तीसगढ़ में 15, मध्यप्रदेश में 40-50 और राजस्थान में 25 सीटों की मांग की थी जबकि कॉंग्रेस छत्तीसगढ़ में 9, मध्य प्रदेश में 20 से 22 सीटें देने को तैयार थी और राजस्थान में तो गठबंधन ही नहीं करना चाहती। अंततः यह हुआ कि बीएसपी अपनी सम्मानजनक सीट नहीं मिलने के कारण छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ चली गई और अन्य दो राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है।

यह तीनों राज्य जहां अभी विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां बहुजन समाज पार्टी की अपनी खास पकड़ है। छत्तीसगढ़ में बहुजन समाज पार्टी को औसतन 5 % वोट मिलते हैं और लगभग वह 25 सीटों पर अपना प्रभाव रखती है। राजस्थान में भी बीएसपी को 5% के लगभग वोट मिलते हैं और वह राजस्थान की 35 सीटों पर अपना प्रभाव रखती हैं। इसी तरह मध्यप्रदेश में बीएसपी का औसत वोट 8% है और वह मध्य प्रदेश के 75 विधानसभा सीटों पर अपना प्रभाव रखती है।

इन सबके बीच एक और बात गौर करने वाली है, इन तीनों राज्यों में भाजपा और कॉंग्रेस के बीच का जो मत प्रतिशत का अंतर है वह क्रमशः छत्तीसगढ़ में 1% राजस्थान में 4% मध्यप्रदेश में 5% है। बसपा का वोट प्रतिशत छत्तीसगढ़ में 5% राजस्थान में 5% और मध्य प्रदेश में 8% है। बीएसपी कॉंग्रेस गठबंधन की स्थिति में बीजेपी को करारी शिकस्त मिलती और कॉंग्रेस को अधिक फायदा होता।

“रस्सी जल गई अकड़ नहीं गई”, यही हालात हैं कॉंग्रेस पार्टी के। कॉंग्रेस ने बड़ा दिल नहीं दिखाया और बीएसपी कॉंग्रेस गठबंधन टूट गया। राजनीतिक पंडित यह बता रहे हैं कि कॉंग्रेस बीएसपी गठबंधन नहीं होने का सबसे बड़ा कारण है बहुजन समाज पार्टी का दलित आदिवासी और पिछड़े वर्गों में पैठ होना। स्वभाविक है कि बीएसपी कॉंग्रेस गठबंधन जीतती तो उस स्थिति में बीएसपी विस्तार करती, जो कॉंग्रेस को कतई मंजू़र नहीं है। वह जानती है कि बीएसपी का यदि विस्तार होगा तो वह कॉंग्रेस के मुस्लिम दलित वोट को ही निशाना बनाएगी।

आपको यहां पर एक बात बता दें कि उत्तर प्रदेश में पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के समय में कॉंग्रेस ने बीएसपी से गठबंधन किया और उस गठबंधन के बाद कॉंग्रेस उत्तर प्रदेश से लगभग समाप्त हो गई। दलित वोटर बीएसपी के पास ट्रांसफर हो गया, मुस्लिम समाजवादी पार्टी के पाले में चले गए, सवर्ण  पहले ही भाजपा के पाले में थे। इस तरह कॉंग्रेस का अस्तित्व सबसे बड़ा कारण है बीएसपी कॉंग्रेस गठबंधन नहीं होने का।

कॉंग्रेस आज भी अपने सवर्ण वर्चस्व के अहंकार की राजनीति के कारण भाजपा को रोकना नहीं चाहती। यदि कॉंग्रेस भाजपा को रोकने के लिए इतनी संवेदनशील होती तो वह अपना बड़ा दिल दिखाकर बसपा-कॉंग्रेस गठबंधन को मूर्त रूप देती, जो नहीं कर पाई।

बीएसपी-कॉंग्रेस गठबंधन नहीं होने की स्थिति में इन तीनों राज्यों में क्या स्थिति बनेगी ये जल्द ही देखने को मिलेगा। हालांकि राजस्थान में वर्तमान परिस्थिति के अनुसार कॉंग्रेस मज़बूत होती दिख रही है क्योंकि वसुंधरा राजे सिंधिया सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर बड़ी ज़ोर-शोर से चल रही है, इस कारण से कॉंग्रेस राजस्थान में वापस आ सकती है।

छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में स्थिति अलग होगी। छत्तीसगढ़ में बसपा और अजीत जोगी के गठबंधन के बाद अजीत जोगी के साथ दलित और आदिवासी का बहुत बड़ा जनसमर्थन है और बसपा के साथ दलित वोटों का अपना कैडर है। अब छत्तीसगढ़ में मुकाबला त्रिकोणीय होगा। मध्य प्रदेश में बीएसपी के अकेले लड़ने के कारण दलित और आदिवासी वोटों में भी टकराव होगा और इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा।

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