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“सरकारी दमन को रोकने के लिए ज़रूरी है हमारा खुलकर बोलना और लिखना”

Freedom of expressionin India

Freedom of expression and present day politics in india.

अभिव्यक्ति की आज़ादी किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में जनता का आवश्यक मौलिक अधिकार है। यह लोकतंत्र का आधार है। तभी तो आज हम और आप खुले मन से संवैधानिक दायरे में रहकर अपने विचारों को व्यक्त कर पा रहे हैं। यह सब अभिव्यक्ति की आज़ादी की वजह से ही संभव हो पा रहा है। राजतंत्र में सही को सही और गलत को गलत कहने मात्र से राजा अगर चाहे तो आपको दंडित भी कर सकता था।

कई देश अपने नागरिकों को अपने विचार और अनुभूतियों को व्यक्त करने तथा उन्हें भावनात्मक रूप से जुड़ने के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी प्रदान करते हैं। यह नागरिकों के साथ-साथ मीडिया को भी राजनीतिक गतिविधियों पर टिप्पणी करने और जो उचित न लगे उस पर असंतोष व्यक्त करने की आज़ादी प्रदान करता है। इसके फायदों को देखते हुए अभिव्यक्ति की आज़ादी को भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार कानून का हिस्सा बना दिया गया है।

अभिव्यक्ति की आज़ादी लोगों को अपने विचारों को साझा करने और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की शक्ति प्रदान करती है। इस मूल अधिकार का हक हर नागरिक को मिलना चाहिए। यह स्वतंत्रता के अधिकार का ही एक हिस्सा है। यदि नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने से रोका जाए, तब न सिर्फ नागरिक के लिए मुश्किलें खड़ी होंगी, बल्कि राष्ट्र के विकास में भी बाधा उत्पन्न हो सकती है।

अभिव्यक्ति की आज़ादी के माध्यम से हम अपने अधिकारों के हो रहे हनन पर लिख या बोलकर अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं। यदि हमारे मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है और हमें उसका विरोध करना है, तो हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी का प्रयोग करना पड़ेगा। अभिव्यक्ति की आज़ादी स्वयं या नागरिकों के प्रति हो रहे अन्याय के खिलाफ व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से अपनी बात  कहने का अधिकार प्रदान करता है जो लोकतंत्र का मूल आधार है।

स्वतंत्रता का ये मतलब नहीं है कि कुछ भी लिख या बोल कर उसका दुरुपयोग करें। उसे कानून द्वारा परिभाषित दायरे में रह कर बोलना पड़ता है। नियमों का उलंघन किए जाने पर दंडित भी किया जा सकता है। लेकिन सरकार भी कभी-कभी सामाजिक अधिकारों की बात करने वाले लोगों या सत्ता के विचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले लोगों को इसका हवाला देकर उन पर कठोर कार्यवाई करती है। राष्ट्र के लोगों के हितों की बात करना, सरकार के द्वारा किए गए अनुचित कार्यों की आलोचना करना राष्ट्रद्रोह कैसे हो सकता है? क्या मौजूदा दौर में सत्ता पर बैठे लोग ही राष्ट्र हैं? यदि ऐसी बात है फिर तो जनता के मौलिक अधिकारों की कोई अहमियत ही नहीं।

अक्सर ऐसा देखा जाता है जब सत्ता में रहने वाली राजनैतिक पार्टी (सरकार) या उस सरकार से पोषित और सत्ता के सहयोगी लोग हमेशा अभियक्ति की आज़ादी पर सवाल खड़े करते हैं।  जब वहीं पार्टी विपक्ष में होती है, तब इस अधिकार को कायम रखना चाहती है।

विचारों के आदान-प्रदान से नागरिकों में राजनीतिक व्यवस्था के प्रति एक राय बनती है। कोई भी सत्ताधारी राजनैतिक पार्टी नहीं चाहती कि उसके कमकाज पर सवाल खड़े हो। मगर अप्रत्यक्ष रूप से जनता सरकार पर निगरानी ज़रूर रखती है। जब  जनता सरकार द्वारा उठाए जा रहे अनुचित कार्यों को चुनौती देती है या आलोचना करती है, तब सरकार को मजबूरन संविधान के दायरे में रह कर जनता के अनुरूप कार्य करना पड़ता है।

जनता की सोच और विचारों का स्वागत करना तथा बदलाव के लिए तत्पर रहना किसी भी देश की जनता के सुख-शांति एवं प्रगति के लिए आवश्यक है। विश्व में कुछ ऐसे भी देश हैं जहां अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है। वह अपने देश के नागरिकों को नियंत्रण में रखते है और अपने स्वार्थ को साधने के लिए नागरिकों के अधिकारों का दमन करते है। क्या आप चाहते कि आपके साथ हो रहे अन्याय के प्रति आप बोल भी न पाएं? ईश्वर के भरोसे बैठ कर यह सोचने लग जाएं कि कोई अवतार लेगा और फिर आपके सारे मौलिक अधिकार मिल जाएंगे। तो ऐसा नहीं है।

समाज के समग्र विकास के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उतनी ही ज़रूरी है, जितना जीने का अधिकार है। तभी सही अर्थों में समाज विकास की राह पर आगे बढ़ेगा। मीडिया को किसी विशेष राजनैतिक पार्टी के पक्ष और विपक्ष में खड़े होकर विचार व्यक्त नहीं करना चाहिए, उसे एकाग्र रहकर रिपोर्टिंग करनी चाहिए। तभी हम सब के हित की बात होगी और देश विकास की राह पर आगे बढ़ता चला जाएगा।

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