गांधी फेलोशिप की सिस्टम इमर्शन प्रकिया, जिसके अन्तर्गत प्रक्रिया के परिणामों को प्राप्त करने के उद्देश्य से हमें प्रखण्ड स्तरीय शिक्षा अधिकारियों के साथ परिचर्चा कर वैसे स्कूलों का चयन करना था, जिसका स्टूडेंट लर्निंग आउटकम कम हो। ऐसे ही एक प्राथमिक विद्यालय, गुलिउमर के समुदाय में कार्य करना सुनिश्चित किया गया। इसके लिए हमें उक्त स्कूल के समुदाय के सदस्यों से मिलकर उन्हें बच्चों के शिक्षण में उनकी सक्रियता को बढ़ाने का कार्य करना था, क्योंकि शिक्षा विद्यार्थी को जीवन जीने के लिए नई दिशा प्रदान करती है।
विद्यार्थी की शिक्षा अध्यापक और अभिभावक दोनों के दिशा-निर्देशन से ही संपूर्ण होती है। एक विद्यार्थी को शिक्षित करने में जितना योगदान एक गुरू का होता है उतनी ही भूमिका माता-पिता की भी होती है। इसलिए हर अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ गुणात्मक समय अवश्य बिताना चाहिए।
इस दरम्यान सबसे पहला कार्य हमारा डोर टू डोर विज़िट रहा अर्थात उक्त स्कूल में पढ़ने वाले हर एक बच्चों के माता-पिता एवं गांव के सक्रिय युवाओं से मिला। उनसे उनके बच्चों से सम्बन्धित बात करके उन्हें परिचर्चा हेतु एक निश्चित दिवस को निश्चित स्थान पर आमंत्रित किया।
परिचर्चा के लिए दो बैठक आयोजित की गई, प्रत्येक बैठक में चर्चा की शुरुआत अभिभावकों को अपने बच्चे के शिक्षण भाग में सक्रियता को लेकर शपथ के साथ शुरू हुई। वजह, बच्चों के प्रारम्भिक गुरू एवं स्कूल उनके अभिभावक और समुदाय ही होते हैं, इसलिए बच्चों के विकास में सबसे अहम योगदान अभिभावक एवं समुदाय का ही होता है।
दोनों चर्चा बैठक में उपस्थित माता-पिता एवं ग्रामीण युवाओं ने भरोसा दिलाया कि नए सत्र से हमारी पूरी सक्रियता रहेगी। अपने बच्चों के प्रति भी और वैसे अभिभावकों के प्रति भी जो सक्रिय नहीं हैं। दोनों परिचर्चा एवं करीब पचास बच्चों के होम विज़िट के दौरान बातचीत से जो निष्कर्ष निकाला वह यह था कि कैसे समुदाय और स्कूल को एक दूसरे के प्रति एवं अभिभावक और शिक्षक को एक दूसरे के प्रति सहयोगात्मक रुख अख्तियार करना चाहिए। जिसके लिए निम्न बिंदुओं पर कार्य करने एवं कराने की ज़रूरत है। जो निम्नवत है-
संचार (कम्युनिकेशन)- सभी माता-पिता स्कूल के कर्मचारियों के साथ सहज संचार कर रहे हैं। क्या स्कूल माता-पिता के संचार के पसंदीदा तरीकों को जानता है? स्कूल जिस भाषा का उपयोग कर रहा है वो माता-पिता और स्टूडेंट्स के लिए स्पष्ट और सुलभ है तथा सीखने के विकास, चुनौतियों से सफलता प्राप्त करने में सहायक है।
माता-पिता के साथ साझेदारी- सीखना कक्षा तक ही सीमित नहीं है। माता-पिता की मान्यताओं, अपेक्षाओं और अनुभव छात्रों की उपलब्धि में शक्तिशाली निर्धारक हैं। स्कूल के कर्मियों को ही नहीं अपितु समुदाय के बुद्धिजीवियों को भी पहल करनी चाहिए, अभिभावकों की भागीदारी बच्चों के शिक्षण भाग में सुनिश्चित करने के लिए।
सामुदायिक सहयोग- स्कूल अलगाव में मौजूद नहीं है। वे अपने समुदाय का केंद्र होते हैं। समुदाय के सदस्यों को स्कूल के साथ मिलकर काम करने के लिए अपनी स्थिति का लाभ उठाना चाहिए। छात्रों के सीखने, स्कूल में आने और सीखने में सक्षम होने की उनकी क्षमता का बेहतर समर्थन करने में मदद मिल सकती है।
विद्यालय की संस्कृति- एक ऐसी संस्कृति को पोषित करना जो पूरे स्कूल समुदाय के बीच अंतर और मूल्यों का महत्व रखता हो। स्कूली स्टूडेंट्स की अलग-अलग सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की सराहना करता हो और उन्हें महत्व देता हो, जिससे स्कूल अपने समुदाय में पारस्परिक रूप से सम्मानजनक रिश्तों का समर्थन और रख-रखाव कायम रख सकता है जो बच्चों के समावेशी जुड़ाव का समर्थन करने में महत्वपूर्ण है।