Site icon Youth Ki Awaaz

‘राफेल डील’ कैसे बन सकता है मोदी सरकार का ‘बोफोर्स’?

भारत में रक्षा सौदे अपशगुन की तरह रहे हैं। राजीव गांधी की बहुमत की सरकार थी पर सबकुछ एक तोप खरीदने के कारण बर्बाद हो गया, उस तोप का नाम था बोफोर्स (स्वीडन की एबी बोफोर्स से 400 तोपें खरीदने का करार किया गया था)।

अब प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी एक बहुमत की सरकार चला रहे हैं और उन्होंने भी एक लड़ाकू विमान खरीदा है जिसका नाम है ‘राफेल’। काँग्रेस का सवाल यह है कि आखिरकार अनिल अंबानी की रिलायंस ग्रुप ने फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथी जूली गेयेट की फर्म रूस इंटरनैशनल के बीच एक फिल्म प्रोड्यूस करने का एग्रीमेंट क्यों किया था? राहुल गांधी खुलकर अनिल अंबानी का नाम ले रहे हैं जैसे कि वीपी सिंह अपनी सभाओं में कहते थे, “मेरी जेब में एक पर्ची है जिसमें उस खाते का नंबर लिखा है. जिसमें राजीव गांधी ने बोफोर्स से कमाए पैसे रखे हैं।”

मोदी सरकार से तीन सवाल जिस पर वह चुप हैं-

1. क्या दाम दिया आपने जहाज का?

2. क्या कैबिनेट से आपने इस बारे में पूछा था?

3.  हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से छीनकर इसे एक प्राइवेट कंपनी को क्यों दिया गया?

अब ये मुद्दा 2019 के चुनाव के लिए महत्त्वपूर्ण रहेगा, जहां काँग्रेस इस मुद्दे पर सरकार को घेरकर एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बनाना चाहेगी, वहीं बीजेपी इसे ठंडे बस्ते में डालना चाहेगी।

बीजेपी बार-बार ये कहने से नहीं थक रही है कि ये मॉडल अपग्रडेड है, जैसा कार के बेसिक और महंगे मॉडल में फर्क होता है वैसी ही बात इधर भी है।

यूपीए शासनकाल में राफेल को खरीदने की डील को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। राहुल गांधी ने मार्च में एक ट्वीट में आरोप लगाया था कि एनडीए सरकार ने प्रति विमान 1,670 करोड़ रुपये का भुगतान किया था, जबकि यूपीए सरकार ने 570 करोड़ रुपये की कीमत पर बातचीत की थी। इसके बाद एनडीए सत्ता में आई और 28 मार्च 2015 को अनिल अंबानी के नेतृत्व में रिलायंस डिफेंस कंपनी बनाई गई।

राफेल डील पर मचे घमासान के बीच अब फ्रांस्वा ओलांद ने नया खुलासा किया है। फ्रेंच अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस का नाम खुद भारत सरकार ने सुझाया था। हालांकि फ्रांस सरकार ने इससे किनारा किया है लेकिन विपक्ष के आरोपों को बल मिल गया है।

Exit mobile version