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पेटेंटे के लोभ से ऊपर उठकर एक क्रिएटिव कॉमन समाज बनाने की ज़रूरत है

मेहनत का फल मेहनत करने वाले को मिलना चाहिए लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता। आजकल के सूचना क्रांति युग में जब ज्ञान और जानकारी लोगों को फायदा पहुंचा रही है तो इसे पैदा करने वालों को भी फायदा होना ही चाहिए, इसलिए इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट का काँसेप्ट जन्मा जिसमें ‘अर्जित ज्ञान’ को भौतिक वस्तुओं जैसी ओनरशिप दी गयी। लाइसेंसिंग, कॉपीराइट, रॉयल्टी और पेटेंट जैसी व्यवस्थाएं इसी का हिस्सा हैं।

लेकिन संपत्ति, फायदा, मुनाफा जैसी चीज़ों को ही जीवन का उद्देश्य समझने वालों से यह क्षेत्र भी नहीं बच पाया है। यही कारण है कि जहां ‘अल्फ्रेड नोबल’ जैसे साइंटिस्ट ने ‘डायनामाइट’ जैसे घातक विस्फोटक की खोज और ‘बोफोर्स’ जैसी मौत का सामान बनाने वाली कंपनियों से बिज़नेस एम्पायर खड़ा किया वहीं ‘जोनस साल्क’ और ‘टिम बर्नर्स ली’ जैसे इंवेंटर्स ने अपनी खोजों को पेटेंट करने से मना कर दिया ताकि आम इंसान को यह मुफ्त या बेहद सस्ती उपलब्ध हो। ‘जोनस साल्क’ ने ‘पोलियो की वैक्सीन’ और ‘टिम बर्नर्स ली’ ने ‘वर्ल्ड वाइड वेब’ बनाया था। ऐसे फैसले इन्होंने नफे-नुकसान, घाटा-मुनाफा, लालच जैसी बातों से बहुत ऊपर उठकर लिए थे ताकि मानवता की सेवा हो सके।

तरक्की और खुशहाली का रास्ता जीवन को बेहतर बनाने वाली नई चीज़ों और विचारों की खोज से होकर जाता है, यही तरीका है जो इंसान ने गुफा से चांद तक पहुंचने में अपनाया है। लेकिन हर जगह कब्ज़ा करने की होड़ मची है। कुछ भी नया खोजने में लंबा समय और मेहनत लगती है और जो ये मेहनत करता है उसे अपने व्यक्तिगत जीवन को चलाने के लिए निश्चित मात्रा में धन की आवश्यकता होती है जो या तो उसके काम में विश्वास करते हुए, (कई बार तमाम शर्तों के साथ) कोई संस्था उसे दे अन्यथा उसे अतिरिक्त काम कर के ही कमाना पड़ता है। क्योंकि ‘रिसर्च वर्क’, पूरा होने तक रिसर्चर को धन का फायदा नहीं पहुंचा सकता। बहुत से पायनियर्स ने स्वतंत्र रूप से काम करते हुए शोध का दुरूह रास्ता तय किया है। लेकिन वक्त के साथ इसका तरीका भी बदला है।

जहां तक मैं समझ पा रहा हूं, आजकल नई चीज़ें दो तरीकों से खोजी या बनाई जा सकती हैं। पहला तरीका जो कि अपने स्थायित्व के कारण सबसे ज़्यादा प्रचलन में है, वो है कि पहले से इकठ्ठा पूंजी को सरकारी या निजी संस्थाओं के माध्यम से शोध कार्यों में लगाया जाये और इससे प्राप्त उत्पाद को शोध की लागत और मनमाफिक मुनाफा जोड़कर कीमत अदा कर पाने वालों को ही दिया जाये। कार जैसी लग्ज़री आइटम के लिए ये व्यवस्था सही लग सकती है लेकिन जीवन रक्षक उपकरणों और दवाओं के लिए ये व्यवस्था अमानवीय है। इस व्यवस्था में काम करने वाले शोधकर्ता चाहकर भी खुद की विकसित की गई तकनीक पर अपना अधिकार नहीं जता सकते और इसे सार्वजानिक नहीं कर सकते क्योंकि जिन संसाधनों का उपयोग करके इन्होंने यह तकनीक विकसित की है उन संसाधनों पर पूंजी का कब्ज़ा है।

तो दूसरी व्यवस्था क्या हो सकती है? दूसरी व्यवस्था यह है कि आप अपने काम से जनता को प्रभावित करें और सीधे संवाद के ज़रिये जनता से पैसे मांगे और खोजी गई तकनीक सीधे जनता को समर्पित कर दें। इस व्यवस्था में काफी अनिश्चितता है लेकिन इस व्यवस्था में ‘खोजकर्ता’ पूंजी जनित बंधन से पूर्ण रूप से मुक्त होता है। क्राउड फंडिंग जैसी चीज़ हमें नई लग सकती है लेकिन ये इतनी भी नई नहीं है। ‘जोनस सल्क’ जब 50 के दशक में पोलियो वैक्सीन के शोध में लगे थे तो इससे जुड़ी संस्था National foundation for Infant paralysis के पास बहुत कम पैसे थे, लेकिन वैक्सीन के सफल प्रयोग और समाज में उसके असर को देखते हुए एक साल के भीतर 8 करोड़ लोगों ने उपरोक्त फाउंडेशन में डोनेट किया। इससे संस्था का बजट लगभग $3मिलियन से $50 मिलियन तक पहुंच गया, जिससे वैज्ञानिकों की एक पूरी पीढ़ी को पैसा मिल पाया। सल्क ने वैक्सीन का पेटेंट नहीं कराया इसलिए यह हमें मुफ्त उपलब्ध है, हालांकि खबर यह भी है कि सल्क की वैक्सीन पेटेंट पैरामीटर्स को मैच नहीं कर रही थी इसलिए उन्होंने इसके लिए आवेदन नहीं दिया।

अब मैं अपनी फील्ड की बात करता हूं। मैं 2d, 3d ग्राफ़िक्स इमेजरी के क्षेत्र में काम करता हूं। किसी भी विजुअल कंटेंट को तैयार करने के लिए ऑयल, वाटर कलर पेंटिंग, मूर्तिकारी या फिजिकल इंस्टॉलेशन मीडियम के उलट हम सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं जिसे कोई ना कोई कंपनी विकसित करती है जो कि इसकी बिक्री और लाइसेंसिंग करती है। फोटोशॉप जैसा सॉफ्टवेयर भी इतना महंगा (₹2030/माह) है कि कोई शुरुआती कंटेंट क्रिएटर लीगली इसे इस्तेमाल नहीं करना चाहेगा। 3d सॉफ्टवेयर की बात करें तो वो लाखों में है।

जहां अमेरिकन कंपनी autodesk की MAYA, या 3ds MAX ₹96,338/year (per PC)पड़ता है वहीं कैनेडियन कंपनी side effect inc. का huidini सॉफ्टवेयर ₹3,50,507/year और जर्मनी की MAXON कंपनी का cinema 4d सॉफ्टवेयर ₹2,46,302 (1-2 PC) का बाज़ार में उपलब्ध है। इन सबके स्टूडेंट वर्ज़न भी हैं जो या तो फ्री हैं या फिर कम दाम में हैं, लेकिन स्टूडेंट वर्ज़न पर बने किसी भी प्रोजेक्ट पर कम्पनियां बनाने वाले को कॉपीराइट नहीं देती, मतलब आप वैध रूप में उससे पैसे नहीं कमा सकते।

मैं इन सॉफ्टवेयर को सिर्फ सीखकर इस फील्ड में कोई छोटा लीगल स्टार्टअप शुरू करने का सपना भी नहीं देख सकता। इस फील्ड में स्टार्टअप शुरू करने के लिए PC की कीमत ही बहुत भारी पड़ती है, एक ढंग का सिस्टम कम से कम ₹1,50,000 का पड़ता है और दो लोगों की टीम भी हो तो ₹3,00,000 तो होते ही हैं, इसी में सब्सक्रिप्शन बेस्ड 3d सॉफ्टवेयर को जोड़ा जाये तो बजट बेकाबू हो जाता है और फिर प्रोजेक्ट मिलने न मिलने का जोखिम। ऐसी स्थिति में सॉफ्टवेयर सीखकर बड़ी कंपनियों में बिना शर्त मज़दूरी करने का ही विकल्प बचता है। ये कंपनियां भी यही चाहती हैं, ये प्रोफेशनल्स को स्वतंत्र नहीं होने देना चाहती, ये इस फील्ड पर एकाधिकार चाहती हैं, ये सिर्फ ऊंची कीमत अदा करने वालों को सफल होते देखना चाहती हैं। पूंजीवाद ऐसे ही तो काम करता है।

जहां पूंजीवाद हर तरह के संसाधन पर पूंजी का नियंत्रण चाहता है वहीं समाज के कुछ लोग हमेशा से ही संसाधनों को आम जनता के लिए ‘मुक्त’ करने की कोशिश में लगे रहते हैं। ये किसी भी रूप में हो सकता है पैसा, सूचना, वैक्सीन, वीडियो या फिर तकनीक। जोनस साल्क से लेकर बिल गेट्स, जूलियन असांजे, स्नोडेन, टिम बर्नर्स ली कुछ ऐसे ही नाम हैं। एक दूसरे की मदद और समाज को रेसीप्रोकेट करने की भावना ही इन्हें ऐसा करने को प्रेरित करती है। मल्टीमीडिया कंटेंट क्रिएशन के लिए क्रिएटिव कॉमन्स (cc) जैसे लाइसेंस एक दूसरे की मदद के लिए ही अस्तित्व में हैं क्योंकि अकेले आप सब कुछ नहीं बना सकते।

इस व्यवस्था में आप दूसरों की मेहनत का मुफ्त इस्तेमाल करते हैं, उससे खुद मेहनत करके कुछ बनाते हैं, पैसे भी कमाते हैं और ईमानदारी से अपनी मेहनत भी दूसरों के इस्तेमाल के लिए मुफ्त में आगे बढ़ाते हैं। ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे कि आप किसी वंचित बच्चे को मुफ्त किताबें दें, पढ़ाएं और वो बच्चा सफल होकर किसी और वंचित बच्चे के साथ ऐसा ही व्यवहार करे।

3d सॉफ्टवेयर की दुनिया में यह काम नीदरलैंड्स के सॉफ्टवेयर डेवलपर ‘टॉन रूसेन्डाल’ ने किया है। ‘टॉन रूसेन्डाल’ ने blender foundation की स्थापना की जो कि अपने बेहतरीन 3डी सॉफ्टवेयर ‘blender’ को हमेशा-हमेशा के लिए बिलकुल मुफ्त उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। यही नहीं कोई भी प्रोफेशनल, blender से तैयार प्रोडक्ट को किसी भी तरह इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र है। मशहूर एनीमेशन स्टूडियो PIXAR के अनुसार blender हर वो काम करने में सक्षम है जो PIXAR के इन हाउस सॉफ्टवेयर कर रहे हैं। ‘टॉन रूसेन्डाल’ ने इस सॉफ्टवेयर को क्राउड फंडिंग के द्वारा ही विकसित किया था और आज भी blender foundation आम जनता के डोनेशन से ही चल रहा है। मतलब blender आपको पैसे देकर नहीं खरीदना, आप मुफ्त में इसे डाउनलोड करिए, सीखिए, इस्तेमाल कीजिए, काम करिये, पैसे भी कमाइये फिर आप जितना सक्षम हो, डोनेट करिए!

यह तो बांग्लादेश के मो. यूनुस के माइक्रोक्रेडिट लोन से भी बढ़िया है। 3d सॉफ्टवेयर सिर्फ मनोरंजन के लिए ही नहीं इस्तेमाल हो रहे, बड़ी तेज़ी से 3d प्रिंटिंग तकनीक विकसित हो रही है और इस तकनीक के ज़रिये कृत्रिम हाथ पैर, सामान, पुर्ज़े और भी बहुत सारी चीज़ें 3d प्रिंट की जा रही हैं। 3d प्रिंटिंग मशीनों के लिए भी ‘टॉन रूसेन्डाल’ खास blender 101 विकसित कर रहे हैं, ये भी लोगों को मुफ्त ही उपलब्ध होगा।

मैंने blender इनस्टॉल कर लिया है और अपना बोरिया बिस्तर लेकर blender पर शिफ्ट हो गया हूं, और यहां से एक छोटे स्टूडियो का सपना देख सकता हूं।

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