पतंगें उड़ाना और
झंडे फहराना
लम्बी गप्पों का फिर
सुनना-सुनाना
परेड की टिकटों का
जुगाड़ लगाना
ना मिलने पर फिर
एक छुट्टी मनाना,
यही है आज़ादी तो
तुम्हीं को मुबारक।
क्योंकि
कौन क्या खाये
वो तय कर रहे हैं
कौन क्या पहने
ये वो तय करें क्यों?
कौन क्या बोले
उसपर है शिकंजा
कौन क्या माने ये
उनके नियम हैं।
जो बोलता है
सरे राह मरता
गाय के नाम पर
इंसान कटता
संविधान जलाना
हुआ देशभक्ति
सही बात कहना
गहरा गुनाह है
शासन में ऐसे
दुशासन हैं बैठे
बलात्कार सहती
जिनका बेटियां हैं
ये कैसी आज़ादी
आयी है शहर में
गांव में लोगों का
दम घुट रहा है
हुक्मरान झूठे होते हैं
सभी पर, ये
झूठ बोलने का
नया ही शमा है।
लूटा हो देश जब
देशभक्ति के नाम पर
इतिहास ऐसा भी
रचा ही कहां है
है अगर ये आज़ादी
तो तुम्हीं को मुबारक।
धर्म चल रहा है
जाति भी बढ़ी है
मगर ये अचानक
वतन रुक गया है
वो हिन्दू हुए है
ये मुस्लमान बनेगा
वतन मर रहा है
वतन ही मरेगा
नये दौर के जो
नये कायदे हैं
ये भारत उनसे
वाकिफ ही कहां है
यहां तो सदा से
भाईचारा रहा था
अब गले लगाना भी
सियासत हुआ है
भूखी मरी हैं, कुछ
बच्चियां दिल्ली में
चायवाले का थोड़ा
महंगा नाश्ता है
बेरोज़गारी फैली है
बड़ा मुंह फाडे
विकास है कि
औंधे मुंह पड़ा है
सुना है उनका सीना
56 इंची है
वो जो झोला भर रहे हैं
वो कितना बड़ा है
अगर
यही है आज़ादी
तो तुम्हीं को मुबारक।