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समलैंगिकता को सम्मान देने की ज़िम्मेदारी अब सरकार और समाज की है

सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। सेक्शन 377 को रानी विक्टोरिया के ब्रिटिश शासन के दौरान सन् 1861 में जबरन लागू किया गया था। इसके तहत अगर कोई इंसान स्वेच्छा से अप्राकृतिक शारीरिक संबंध किसी महिला, पुरुष, या जानवर के साथ स्थापित करता है तो उसे 10 साल से लेकर आजीवन कारावास के साथ जुर्माने का भी प्रावधान है। सेक्शन 377 के अंतर्गत होमोसेक्शुएलिटी एक गैरज़मानती अपराध था।

चर्च और विक्टोरियन नैतिकता के दवाब से 16वीं सदी से चले आ रहे इस कानून से अमेरिका और यूरोप खुद को कई दशक पूर्व ही मुक्त कर चुका है लेकिन भारत और अन्य देशों में अब भी ये कानूनन अपराध बना हुआ था। एक रिपोर्ट के मुताबिक करीबन 72 ऐसे देश हैं जहां आज भी समलैंगिकता अपराध है। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया, सिंगापुर, मॉरिशस जैसे देशों में अभी भी समलैंगिकता को लेकर कड़े कानून मौजूद हैं।

भारत जैसे देश में इस तरह के कानून का 157 सालों तक बना रहना अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण था। समलैंगिकता को लेकर हमारे पूर्वज हमसे शायद ज़्यादा सहिष्णु थे। समलैंगिकता का उल्लेख हमारे कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। वात्सल्यन द्वारा रचित ग्रन्थ ‘कामसूत्र’ में बाकायदा इसको लेकर एक अध्याय लिखा गया है। साथ ही साथ कई प्राचीन मंदिरों की कलाकृतियों में समलैंगिकता का उदाहरण देखने को मिलता है अर्थात अतीत में भारत में समलैंगिकता को लेकर हम सहज थे तथा उनका भी समाज में एक सम्मानित स्थान था। ऐसे में आधुनिक समाज जो खुद को ज़्यादा शिक्षित और व्यवस्थित मानता है वहां ऐसे कानून का होना समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण था। भारत में समलैंगिकता को लेकर पहला मामला, अविभाजित भारत में सन् 1925 में खानू बनाम सम्राट का था। जिसमें यह फैसला दिया गया कि यौन संबंधों का मूल मकसद संतानोत्पत्ति है लेकिन अप्राकृतिक यौन संबंध में यह संभव नहीं है।

समय के साथ देश में समलैंगिकता को लेकर व्यापक बहस छिड़ी, मामला दिल्ली हाइकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक आया। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के समलैंगिक समुदाय के हक के फैसले को पलटते हुए इसे वापस से अपराध की श्रेणी में डाल दिया। समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के लिए सांसद शशि थरूर ने संसद में निजी बिल रखा। धीरे-धीरे मुखर होते आंदोलन में 2005 को गुजरात के राजपिपला के राजकुमार ने पहले शाही गे होने की घोषणा की। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री ने भी इस विषय के मद्देनजर ‘दोस्ताना’, ‘हनीमून ट्रैवल प्रा. लिमिटेड’ जैसी कई फिल्मों के द्वारा समर्थन जताया। पहली गे पत्रिका ‘बॉम्बे दोस्त’ की शुरुआत हुई।

समलैंगिकता को लेकर समाज में व्याप्त अवधारणाओं को समाप्त करते हुए आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने ‘नैतिकता बनाम समलैंगिकता’ की बहस को खत्म करते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से मुक्त कर दिया है। अब ये सरकार और समाज की ज़िम्मेदारी है कि इसे समाज में सही तरीके से अपनाया जाए और उनका सम्मान किया जाए।

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