Site icon Youth Ki Awaaz

यौन शोषण पर हमारी असंवेदनशीलता ही ऐसी घटनाओं को बढ़ावा दे रही

woman sitting for a protest with a placard saying 'Shamed'

महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर दिनों-दिन हम सबकी संवेदनाएं कम होते-होते अब खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं। दरअसल, इस बात का हमें एहसास ही नहीं है कि हम इन घटनाओं को कितनी सहजता से लेने लगे हैं। क्या हम सिर्फ सोशल मीडिया पर किसी घटना का विरोध करके ही अपने कर्तव्यों से कन्नी काटने में माहिर होने लगे हैं?

जिस औरत को देवी मानकर पूजा जाता हो, उस औरत को वस्त्रहीन करके सड़क पर खुलेआम घुमाया जाना क्या हमारी संवेदनाओं के अंत होने की निशानी नहीं है।

मां या बहन की तरफ आंख उठाने पर आंख नोच लेने का दावा करने वाला यह समाज उस समय कहां था जब बिहार के भोजपुर ज़िले में एक महिला को सड़कों पर खुलेआम उसके कपड़े उतरवाकर घुमाया जा रहा था। ऐसा करने के पीछे कारण था एक सनकी भीड़ का यह शक कि वह महिला एक युवक की हत्या में शामिल है।

क्या इस देश में अब भीड़ के शक के आधार पर ही फैसले होंगे? अगर भीड़ को ही फैसला करना है तो फिर इस पुलिस, अदालत, कानून और लोकतंत्र का ढोंग क्यों किया जा रहा है। बलात्कारियों के खिलाफ होने वाले प्रदर्शनों में फांसी-फांसी चिल्लाने वाले लोगों में से क्या कोई भी उस वक्त भोजपुर में नहीं था जो उस महिला को उन दरिंदों से बचा लेता। या फिर हम सबने सिर्फ बलात्कार होने के बाद ही रैलियों में चिल्लाने का ठेका लिया हुआ है।

अत्याचार सह रही महिलाओं को ना आपके कैंडल मार्च से कोई फर्क पड़ता है, ना आपके सोशल मीडिया पर क्रांतिकारी बन जाने से। उनकी तकलीफें तब कम होंगी जब आपकी मरी हुई संवेदनाएं जागेंगी। जब आप आसपास हो रहे महिलाओं के शोषण पर आवाज़ उठाएंगें।

हम उस दौर में जी रहे हैं जहां स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, धार्मिक स्थल तक में हर घण्टे, हर मिनट कोई ना कोई महिला यौन शोषण का शिकार हो रही हैं। एक पुरुष वह होता है जो शारीरिक रूप से उसका शोषण करता है, दूसरे वह होते हैं जो अपनी छोटी सोच, भद्दे विचारों और निचले स्तर की बातों से उसका शोषण करते हैं।

एक पुरुष शोषण करने वाला होता है तो दस पुरुष और महिलाएं उस शोषण को जस्टिफाई करने वाली होती हैं। जी हां, महिलाएं भी महिलाओं पर हो रहे शोषण को आमतौर पर जस्टिफाई करती पाई जाती हैं। मेरी एक मित्र के साथ उसके कॉलेज के ही एक लड़के ने अभद्र व्यवहार किया तो मामला कॉलेज की महिला विंग के पास गया। विंग की अध्यक्षा ने सबसे पहला प्रश्न उससे पूछा कि तुम शाम को 7 बजे बाहर घूम ही क्यों रही थी।

कई बार महिलाओं को पुलिस द्वारा भी इस तरह के सवालों का सामना करना पड़ता है। हमारा समाज सैंकड़ों सालों से महिलाओं से ही तो प्रश्न करता आया है। तकरीबन चार महीने पहले उत्तर प्रदेश में एक युवती का बलात्कार हो जाने के बाद वह हिम्मत करके पुलिस थाने पहुंचती है, जहां उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाती क्योंकि बलात्कार का आरोपी कोई आम आदमी नहीं बल्कि सत्ताधीश पार्टी का एक विधायक कुलदीप सिंह सेंगर था।

इसके बाद वह मुख्यमंत्री निवास जाती है, जहां उसे मुख्यमंत्री से नहीं मिलने दिया जाता। थक हारकर वह मुख्यमंत्री निवास के बाहर आत्महत्या की असफल कोशिश करती है, फिर भी मुख्यमंत्री योगी की संवेदना नहीं जागती कि उस लड़की को चार शब्द आश्वासन के बोल दें। इतनी देर में विधायक महोदय सक्रिय हो गएं। लड़की के पिता को रोककर धमकी देते हैं, दबंगों और पीड़िता के पिता के बीच बहस होती है।

इसके बाद पुलिस पीड़िता के पिता को विधायक से बहस करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लेती है। जी हां, ठीक सुना आपने, जो पुलिस बलात्कार पीड़िता की रिपोर्ट दर्ज करने को तैयार नहीं थी, उसने बलात्कारियों के एक इशारे पर पीड़िता के पिता की गिरफ्तारी कर दी। इसके बाद पीड़िता के पिता की कस्टडी में पीट पीटकर हत्या कर दी जाती है, जिसे मृत्यु का नाम दे दिया जाता है।

इस घटना की पुष्टि के लिए आप 9 अप्रैल 2018 के अखबार पढ़ सकते हैं। सवाल यह उठता है कि पुलिस और विधायक की सरेआम इस तरह की तानाशाही करने की हिम्मत कैसे हो गई? जवाब है हम सबकी संवेदनाओं के मर जाने के कारण। हमें ज़रूरत है महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने की या फिर महिला को देवी मानने के ढोंग को समाप्त करने की।

Exit mobile version